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होम / एन्गेज / स्वास्थ्य / रीप्रोडक्टिव-हेल्थ

मेनोपॉज के बाद परिवर्तन को करें स्वीकार, लेकिन डर से नहीं समझदारी से

प्राची |  मई 14, 2023

पीरियड्स हर महिला के जीवन में निराशा नहीं, बल्कि सेहतमंद रहने का अनमोल तोहफा है, इसकी कीमत तब अधिक पता चलती है, जब एक महिला मेनोपॉज  में कदम रखती हैं। अक्सर, आपने अपने घर में मां, दादी- नानी को जोड़ों के दर्द के साथ मोतियाबिंद के साथ कई सारी शारीरिक परेशानी का सामना करते हुए देखा होगा, लेकिन क्या आप जानती हैं कि अधिकतर महिलाओं में कैल्शियम और विटामिन डी की कमी की सबसे बड़ी वजह मेनोपॉज  को माना गया है। जाहिर सी बात है कि एक समय के बाद हर महिला को मेनोपॉज के साथ जीवन के नए पड़ाव में प्रवेश करना है। खासतौर पर 50 की उम्र पार होना महिलाओं के लिए मेनोपॉज के जीवन में प्रवेश करने का संकेत होता है। हालांकि, वर्तमान में 40 साल की उम्र तक पहुंचने के साथ भी महिलाएं मेनोपॉज की स्थिति का सामना करती हैं। इस बारे में विस्तार से जानकारी दे रही हैं, डॉक्टर पूजा गुप्ता, जो कि एक स्त्री रोग और इंफर्टिलिटी विशेषज्ञ हैं। डॉक्टर पूजा गुप्ता इस बात को स्पष्ट करती हैं कि  मेनोपॉज की असली परिभाषा बहुत कम लोगों को पता है, इसका मतलब यह है कि 12 महीने किसी महिला के जो पीरियड्स आते थे, उनका बंद होना। ऐसे में यह गौर करने वाली भी बात है कि  4 या 5 महीने पीरियड्स नहीं आना मेनोपॉज नहीं कहलाता है। ऐसे में जांच के साथ जागरूक होना और खुद पर ध्यान देना जरूरी है, जो कि किसी भी महिला के लिए मेनोपॉज  के सफर को आसान कर देती है।

मेनोपॉज के लक्षण को नजरअंदाज न करें

डॉक्टर पूजा गुप्ता कहती हैं कि मेनोपॉज एक महिला के जीवन में प्रजनन चरण का आखिरी चरण होता है। मेनोपॉज का मतलब,ओवरी के अंदर एग्स का खत्म होना, जिसकी वजह से शरीर में कई तरह के लक्षण दिखाई देते हैं, जैसे कि शरीर गर्म हो जाना, यौन संबंध बनाने में दिलचस्पी कम हो जाना और जोड़ों में दर्द, डायबिटीज, हार्टअटैक, स्ट्रोक आना। मेनोपॉज के आने से पहले एक चरण इसकी चेतावनी का भी होता है। इसे पहचानने का मतलब पीरियड्स आना कम हो जाता है, जिसकी वजह से महिलाओं में मानसिक और शारीरिक तौर पर कई सारे बदलाव दिखाई देते हैं और महिलाओं को समझ नहीं आता कि शरीर में क्या हो रहा है। नतीजा, यह होता है कि महिलाएं तनाव और घबराहट का सामना करती हैं। ऐसे में महिलाओं को मानसिक तौर पर खुद संभालना जरूरी हो जाता है, जिसमें डॉक्टर उनकी मदद कर सकती हैं।

मेनोपॉज के लिए सोयाबीन वरदान

डॉक्टर पूजा गुप्ता का कहना है कि मेनोपॉज के कारण शरीर में कैल्शियम और विटामिन डी की काफी कमी हो जाती है। इसके लिए मेडिकल थेरेपी प्रमुख है, लेकिन कुछ महिलाओं के लिए यह थेरेपी महंगी होती है। फिर हम उन महिलाओं को सलाह देते हैं कि सोयाबीन का सेवन करें। ज्ञात हों कि मेनोपॉज के लिए सोयाबीन वरदान है। वह आगे कहती हैं कि मेरा मानना है कि केवल मेनोपॉज के समय ही नहीं, बल्कि फ्लैक्स सीड्स और सोयाबीन के दूध को हर महिला को अपने खान-पान में शामिल करना चाहिए। शायद यही वजह है कि हमारी दादी-नानी को मेनोपॉज के कारण अधिक शारारिक समस्या नहीं होती थी, जितनी आज की महिलाओं को होती है। सोया और फ्लैक्स सीड खाने से मेनोपॉज से जुड़ी दवाईयां खाने की जरूरत कम पड़ती है। बता दूं कि सोयाबीन और फ्लैक्स सीड में भारी मात्रा में कैल्शियम और विटामिन डी पाया जाता है।

मेनोपॉज के बाद हर साल मेडिकल जांच जरूरी

क्या मेनोपॉज से किसी गंभीर बीमारी का खतरा हो सकता है, इस बारे में चेतावनी देते हुए डॉक्टर पूजा कहती हैं कि मेनोपॉज के बाद हर साल महिलाओं को गर्भाशय के कैंसर की जांच करानी चाहिए। गर्भाशय का कैंसर काफी खतरनाक होता है। यह डरावनी बात है कि गर्भाशय का कैंसर महिलाओं को सबसे अधिक होता है। वहीं कई बार मेनोपॉज में वजन भी बढ़ने लगता है, जो कि महिलाओं के ब्रेस्ट टिशू पर हमला करता है, जिससे ब्रेस्ट कैंसर की संभावना बढ़ती है। इसलिए, मेनोपॉज के बाद हर महिला को साल में एक बार खुद का परीक्षण करना चाहिए। खास तौर से मैमोग्राफी, शुगर,हाइपरटेंशन, कोलेस्ट्रॉल चेकअप कराना भी बहुत जरूरी है, ताकि हार्ट अटैक की संभावना न हो। इसे न भूलें कि मेनोपॉज के बाद मोतियाबिंद की भी समस्या हो सकती है। ध्यान दें कि आंखों की जांच के साथ हड्डियों से जुड़ी भी जांच साल में एक बार जरूरी करानी चाहिए, क्योंकि, मेनोपॉज के वक्त घर के कामों में व्यस्त होकर महिलाएं खुद का ध्यान नहीं रख पाती हैं। नतीजा यह होता है कि कमर और पैर की हड्डियां घिसने लगती हैं। 

योग और मेडिटेशन के साथ व्यायाम

डॉक्टर पूजा ने मेनोपॉज की शुरुआत होने के साथ ही व्यायाम, योग और मेडिटेशन को मुख्य कारण बताया है। उनका कहना है कि कई बार मेनोपॉज डिप्रेशन लेकर आता है, शरीर में होने वाले बदलाव मानिसक तौर पर घबराहट पैदा करते हैं। साथ ही खुद को शारीरिक तौर पर सक्रिय रखना चाहिए। इसलिए आवश्यक है कि हर दिन भोजन करने के बाद 10 से 15 मिनट चलना चाहिए या फिर अगर कोई महिला हैं, जो कि किसी वजह से चल नहीं पाती हैं। जो महिलाएं चलने में असमर्थ हैं, उन्हें बैठे-बैठे भी हाथों और पैरों को हिलाना चाहिए और एक्सरसाइज करनी चाहिए। 

नजरअंदाज न करें प्रीमैच्योर मेनोपॉज

डॉक्टर पूजा गुप्ता इस पर सभी महिलाओं को ध्यान देने की कड़ी हिदायत देती हैं कि प्रीमैच्योर मेनोपॉज की अनदेखी न करें। उनका कहना है कि 40 साल से कम की महिलाओं में प्रीमैच्योर मेनोपॉज होना सामान्य हो चुका है। लेकिन महिलाएं इससे अनजान होती हैं, उन्हें लगता है कि पीरियड्स न आना खून की कमी या फिर वजन बढ़ने के कारण हो रहा है। ऐसी महिलाएं मां नहीं बन पातीं और फिर वह आईवीएफ को अपनाती हैं। उन्हें कई सारी बीमारियां का सामना करना पड़ता है। इसलिए प्रीमैच्योर मेनोपॉज को लेकर जागरूकता होनी चाहिए। अगर कोई महिला किसी वजह से प्रीमैच्योर मेनोपॉज पर गई है, तो भी उन्हें कैल्शियम और विटामिन डी के साथ कैंसर से जुड़ी जांच करानी चाहिए। डॉक्टर पूजा अंत में कहती हैं कि मेनोपॉज हर महिला के जीवन का ऐसा हिस्सा है, जिसके लिए पूरे आत्मविश्वास के साथ तैयार रहना चाहिए। मेनोपॉज का सभी महिलाओं को स्वागत करना चाहिए। यह उनके जीवन की शुरुआत है अंत नहीं।

 

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