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होम / एन्गेज / स्वास्थ्य / न्यूट्रिशन

स्वास्थ्यवर्धक गुणों से भरपूर मिलेट्स

रजनी गुप्ता |  फ़रवरी 08, 2025

भारतीय आहार परंपरा में मिलेट्स यानि पौष्टिक अनाज ज्वार, बाजरा, रागी, कंगनी, कोदो, सावां, चेना और कुटकी की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। प्राचीन खाद्य अनाजों में से एक इन पौष्टिक अनाजों को मोटा अनाज भी कहते हैं। आइए जानते हैं ग्लूटेन फ्री और पोषण से भरपूर मिलेट्स के स्वास्थ्यवर्धक फायदे। 

एनर्जी के साथ पोषण की पहचान है मिलेट्स

पुरानी कहावत है कि ‘जैसा खाएंगे अन्न, वैसा रहेगा मन’, और आज के समय में ये बात सौ फीसदी सच साबित हो रही है, यही वजह है कि हेल्थ के साथ हेल्दी लाइफ स्टाइल को प्राथमिकता देनेवाले इनकी तरफ आकर्षित होते जा रहे हैं। इसमें दो राय नहीं है कि संतुलित और पौष्टिक भोजन, उत्तम स्वास्थ्य का मूल मंत्र रहा है। यही वजह है कि वर्षों से और आज भी भारत के ग्रामीण भागों में ये न सिर्फ प्रमुख आहार के रूप में इस्तेमाल होते आए हैं, बल्कि उनकी आय का प्रमुख सोर्स भी हैं। इसके अलावा भारत के साथ पूरे विश्व में मिलेट्स, एनर्जी के साथ पोषण की पहचान बन चुके हैं। मिलेट्स को लेकर डाइटीशियन आंचल आर्या कहती हैं, “आज की लाइफस्टाइल में मिलेट्स को आप हेल्थ का सबसे अच्छा दोस्त कह सकती हैं, क्योंकि इसमें फाइबर, अमिनो और फैटी एसिड, विटामिन-बी और ई के साथ मिनरल्स, आयरन, मैग्नीशियम, फॉस्फोरस और पोटैशियम सबसे ज्यादा होता है। ग्लूटेन फ्री होने से ये डाइजेशन में आसान होता है और आपको वजन कम करने में भी मदद करता है। इसके अलावा मिलेट्स का सबसे बड़ा फायदा यह भी है कि इसे खाने के बाद लंबे समय तक आपको भूख का एहसास नहीं होता।” 

पौष्टिक तत्वों से भरपूर ज्वार और बाजरा 

गेहूं, ओट्स, मकई और जौ के बाद पांचवे नंबर पर सबसे ज्यादा पैदावार ज्वार की होती है। मूल रूप से ज्वार के आटे से रोटियां बनाई जाती हैं। भारत के कुछ भागों में इसे कूटकर दलिया, खिचड़ी या भात भी बनाई जाती है। फाइबर के साथ-साथ इसमें कई पौष्टिक तत्व होते हैं, जो डायबिटीज, ब्लड प्रेशर और कैंसर के साथ कोलेस्ट्रॉल कम करने में सहायक है। गौरतलब है कि 160 ग्राम ज्वार में लगभग 17 ग्राम प्रोटीन होता है, जो शाकाहारियों के लिए प्रोटीन का अच्छा सोर्स है। ज्वार के बाद बाजरा का भी भारतीय खाद्यान में विशेष स्थान है। हालांकि प्रोटीन, फाइबर, मिनरल्स और विटामिन से भरपूर बाजरा का एक नाम श्री अन्न भी है, जो भारतीय किसानों के लिए वरदान है। बाजरा एकमात्र ऐसा अनाज है, जिसकी पैदावार गर्मी और सूखे की स्थिति में भी अच्छी होती है। यही वजह है कि सीमित वर्षा वाले क्षेत्रों के साथ-साथ कम उपजाऊ जमीनों के लिए मशहूर राजस्थान में बाजरे की खेती सबसे ज्यादा होती है। रागी, कंगनी, कुटकी, सांवा और चेना, बाजरा के ही प्रकार हैं। 

बाजरा के प्रकार और उपयोग

फिंगर मिलेट के नाम से पहचाना जानेवाला रागी, बाजरा का एक लोकप्रिय प्रकार है, जो अधिकतर दक्षिण भारत में खाया जाता है। कैल्शियम और आयरन से भरपूर रागी से रोटियों के अलावा मुद्दे, डोसा और इडली बनाई जाती है। फॉक्सटेल बाजरा यानी कंगनी, छोटा सा पीले-भूरे रंग का अनाज होता है। यह भी दक्षिण भारत में ही उगाया जाता है और इससे उपमा, पोंगल और खीर जैसे व्यंजन बनाये जाते हैं। इसके विपरीत छोटा बाजरा यानि कुटकी उत्तर भारत के पहाड़ी इलाकों में उगाया जाता है और इसका उपयोग रोटियों के साथ खिचड़ी और खीर जैसे व्यंजनों को बनाने में किया जाता है। व्रत के चावल के नाम से मशहूर सांवा या वरी भी बाजरा का ही एक प्रकार है। इसे भी आम तौर पर भारत के पहाड़ी इलाकों में उगाया जाता है और इससे खिचड़ी, डोसा, इडली, खीर और भात जैसे खाने की चीजें बनाई जाती हैं। प्रोसो बाजरा, जिसे आम तौर पर चेना के नाम से पहचाना जाता है, भारत के उत्तरी और पश्चिमी इलाकों में उगाया जानेवाला अनाज है। इसका उपयोग भी रोटी, खिचड़ी और खीर बनाने के लिए किया जाता है। 

‘गरीब का चावल’ कोदो है औषधीय गुणों से भरपूर

मिलेट्स या मोटे अनाज में इन अनाजों के साथ एक और अनाज कोदो भी आता है। धान की तरह दिखनेवाला यह अनाज डाइटरी फाइबर के साथ आयरन, एंटीऑक्सीडेंट और औषधीय गुणों से भरपूर होता है, जिसका उपयोग अस्थमा, माइग्रेन, ब्लड प्रेशर, हार्ट अटैक, एथेरोस्क्लेरोसिस, डायबिटीज और महिलाओं को होनेवाली पोस्टमेनोपॉजल के इलाज में किया जाता है। कोदो की खासियत यह है कि यह लंबे समय तक खराब नहीं होता। कोदो की खेती करने के लिए बेहद कम पानी की जरूरत होती है। यही वजह है कि यह कम पानी वाले सूखाग्रस्त और बंजर इलाकों में उगाया जाता है। इतना ही नहीं जिस जमीन पर कोई फसल नहीं उग पाती, वहां कोदो बारह महीने उगाई जा सकती है। यही वजह है कि इसे 'अकाल का अनाज' या 'गरीब का चावल' भी कहा जाता है। कोदरा, वरगु, गाय घास, चावल घास, खाई बाजरा और देसी पास्पलम के नाम से पूरे भारत में पहचाने जानेवाले कोदो की खेती पूरे भारत के साथ पाकिस्तान, फिलीपींस, इंडोनेशिया, वियतनाम, थाईलैंड और पश्चिमी अफ्रिका में की जाती है।

 

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