घर हो, बाहर हो या वर्कप्लेस हो, उम्र के कारण होनेवाला भेदभाव सिर्फ आपके आत्मसमान को ही नहीं, बल्कि आपके मेंटल और फिजिकल हेल्थ को भी अफेक्ट करता है। विशेष रूप से अनुभवों को दरकिनार करते हुए उम्र को महत्व देना, मन को ज्यादा कचोटता है। आइए जानते हैं इससे निपटने के तरीके।
78 प्रतिशत लोगों के साथ उम्र के आधार पर भेदभाव

बढ़ती उम्र के कारण वर्कप्लेस पर आपकी काबिलियत पर सवाल उठाए जाते हों, आपको अन्य कर्मचारियों से कमतर समझा जाता हो, आपको उचित अवसर नहीं दिए जाते हों या घर पर आपको बेकार समझा जाता हो। ये सभी बातें आपको अपमानित करने के साथ-साथ आपके अंदर निगेटिविटी को बढ़ाते हैं और कई बार ये भी देखा गया है कि इसके कारण आप सेल्फ डाउट का भी शिकार हो जाती हैं, जो आपकी मेंटल हेल्थ के लिए नुकसानदेह है। गौरतलब है कि लिंगवाद और नस्लवाद के मुकाबले आयुवाद की समस्याएं काफी जटिल हैं। इसके परिणाम स्वरूप एक रिसर्च के अनुसार 78 प्रतिशत लोगों ने इस बात का दावा किया है कि वर्कप्लेस पर उम्र के आधार पर उनके साथ भेदभाव होता रहा है। हालांकि एक और रिसर्च के अनुसार ये बात भी साबित हो चुकी है कि जो लोग आयुवाद का शिकार होते हैं, उनमें मृत्यु दर सबसे अधिक होती है, क्योंकि दूसरों की तुलना में स्वयं को वे कमतर आंकने लगते हैं और उनकी जीने की इच्छा खत्म हो जाती है, जिसका प्रभाव उनके स्वास्थ्य पर पड़ता है।
सेल्फ डाउट और बीमारियों के साथ अनहेल्दी आदतें
उम्रवाद से जूझ रहे लोगों में समय के साथ कई परेशानियां जन्म ले लेती हैं, जिनमें सेल्फ डाउट और बीमारियों के साथ अनहेल्दी आदतें आम बात हैं, जैसे उम्रवाद से उबरने के लिए स्मोकिंग, ड्रिंकिंग का सहारा लेना और अपने खान-पान और दवाइयों का ख्याल नहीं रखना। ये आदतें उनके हेल्थ को समय से पहले खराब करने लगती हैं। इसके अलावा, घर-परिवार में अपनों द्वारा बोले गए कटु वचनों के साथ अपने कलीग्स की छींटाकशी से भी वे इस कदर प्रभावित हो जाते हैं कि कई बार डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं। हालांकि डब्ल्यूएचओ के अनुसार पूरी दुनिया में लगभग 6 मिलियन लोग उम्रवाद का शिकार हैं, जो एक गंभीर आंकड़ा है। लेकिन अब ऐसे में सवाल ये उठता है कि इन सभी चीजों से अफेक्ट होने की बजाय इनसे निपटें कैसे?
आत्मविश्वास के साथ पहचानें अपनी क्षमताओं को

खुद में आत्मविश्वास बनाए रखते हुए अपनी क्षमताओं और अनुभवों को पहचानें। इसके अलावा कोशिश करें कि आप नई चीजों को सीखते रहें, जिससे आप कॉम्पटीशन में बने रहें। साथ ही मॉडर्न टेक्नोलॉजी और डिजिटल स्किल्स में खुद को अपडेट रखें, जिससे यदि कोई आपकी उम्र को लेकर टिप्पणी करे, तो आप उन्हें अपनी स्किल से जवाब दे सकें। यह बात बिल्कुल सही है कि हर जगह चिल्लाना सही नहीं है, लेकिन हर जगह खामोश रहना भी गलत बात है। विशेष रूप से जब लोग आपके उम्र को लेकर आपकी काबिलियत को निशाना बना रहे हों, तो आपको उसका विरोध करना ही चाहिए। अपने अलावा यदि आप किसी और के साथ भी ऐसा कुछ देखें, तब भी आवाज उठाना आपका कर्तव्य है। इसके अलावा, कानूनी अधिकारों और नीतियों की जानकारी होनी भी बेहद जरूरी है, सो आप इन सबसे भी खुद को अपडेटेड रखें।
बढ़ती उम्र को अवसाद की बजाय अवसर बनाएं
उम्र कोई कमजोरी नहीं, बल्कि आपके अनुभव और मेच्योरिटी की निशानी है और यह बात आप कभी न भूलें। इसके अलावा, यह भी याद रखें कि सकारात्मक सोच, बड़ी से बड़ी परेशानियों को चुटकियों में हल करने का माद्दा रखती है। ऐसे में सकारात्मक सोच अपनाते हुए अपना आत्म-सम्मान बनाए रखें। हालांकि मेंटली फिट रहने के साथ ये भी जरूरी है कि आप फिजिकली भी फिट रहें और डेली एक्सरसाइज के साथ अच्छा खान-पान अपनाएं। दिल और दिमाग के लिए मजबूत सोशियल नेटवर्क भी बहुत जरूरी है, इसलिए अलग-अलग उम्र के लोगों के साथ संवाद करती रहें और सोशियली एक्टिव रहें। साथ ही अपनी बढ़ती उम्र को अवसाद (डिप्रेशन) की बजाय अवसर बनाएं और खुद कुछ नया सीखते हुए, दूसरों को भी कुछ नया सिखने के लिए प्रेरित करें। एक बात का विशेष ख्याल रखें कि जिस तरह हर लड़ाई लड़नी और जीतनी जरूरी नहीं, उसी तरह अपने पर हो रहे हर कमेंट का जवाब देना और उसे पर्सनली लेना भी जरूरी नहीं।
एक्सपर्ट की राय

इस सिलसिले में साइकोलॉजिस्ट हिरल खिमानी कहती हैं, “बुजुर्गों को उनकी उम्र के लिए प्रताड़ित किए जाना कोई नई बात नहीं है और जगह-जगह बने वृद्धाश्रम इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण हैं। हालांकि घर-परिवार के साथ वर्कप्लेस में भी बढ़ती उम्र की अनुभवों को दरकिनार करते हुए उनकी उम्र को महत्व देना, हमारे समाज की सबसे बड़ी विफलता है। फिलहाल मैं उन सभी लोगों से यही कहना चाहूंगी कि बढ़ती उम्र को अपने चश्मे से देखने की बजाय उम्रवाद का चश्मा उतारकर देखें। तब आपको पता चलेगा कि उनके अनुभव, आपकी उम्र पर कितने भारी हैं।”