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वो महिलाएं, जिन्होंने साबित किया कि डर के आगे जीत है

रजनी गुप्ता |  जनवरी 03, 2025

हम सबके जीवन में कई ऐसे डर होते हैं, जो न सिर्फ हमारे व्यक्तित्व को प्रभावित करते हैं, बल्कि हमारे अस्तित्व को भी धूमिल करते हैं। ऐसे में उस डर को पीछे छोड़कर एक नई शुरुआत करना बेहद जरूरी है। आइए जानते हैं ऐसी ही कुछ जांबाज महिलाओं के अनुभव, जिन्होंने साबित किया कि डर के आगे ही जीत संभव है।   

अपने डर पर जीत हासिल करना है, सबसे बड़ी जीत

अवंतिका कहती हैं, “पापा को बाइक चलाता देख, मुझे बचपन से बाइक चलाने का बेहद शौक था। पापा से जिद करके मैंने बाइक सीख भी ली, लेकिन भीड़ में चलाने का साहस नहीं था। मुझे याद है, एक दिन हिम्मत करके मैं जब गई भी तो हड़बड़ी में किसी गाड़ी को टक्कर मार दी। मुझे लगा मेरा डर सही था और मैं निराश होकर घर आ गई। घर आने के बाद जिस बात ने मुझे सबसे ज्यादा परेशान किया, वो था टक्कर के दौरान कुछ लोगों की हंसी जो मुझ पर हंस रहे थे। सच, कहूँ तो उस हंसी ने कुछ रातों तक मुझे बेहद परेशान किया। मेरा डर अब मेरी निराशा में बदल चुका था, जिसे सब ऑब्जर्व कर रहे थे। फिर एक दिन पापा ने पास बिठाकर मुझे समझाया कि अभी तो बहुत सी चीजें जिंदगी में आनी बाकी हैं। अगर अपने इन छोटे-छोटे डर से तुम नहीं निपटोगी तो कैसे चलेगा? बात सिम्पल सी थी, लेकिन दिमाग में घर कर चुकी थी। डर से डरना नहीं, लड़ना है। बस फिर क्या था, मैंने बाइक बाहर निकाली और निकल पड़ी। वो दिन है, और आज का दिन है। मुझे देखकर आज मेरी कॉलोनी में कई लड़कियां बाइक चलाती हैं और मुझे अपना इंस्पिरेशन बताती हैं।” 

लोग क्या कहेंगे के घेरे से बाहर निकलिए 

सुनीता कहती हैं, “घर में अक्सर मम्मी-पापा को कहते सुना था कि चार लोग क्या कहेंगे, और उन चार लोगों की बातों से हम इतने ज्यादा डरे रहते थे कि न कभी उन्हें अपने मन की करते देखा और न हम कर पाए। कॉलेज के बाद जब घरवालों की तरफ से शादी का प्रेशर आने लगा तो मैंने अपनी पसंद बता दी। जब फिर मेरे घरवालों को उन चार लोगों की चिंता सताने लगी, तो मैंने उन्हें साफ-साफ कह दिया कि जिन चार लोगों की उन्हें चिंता है, उन्हें हमारी कोई चिंता नहीं है, इसलिए बेहतर होगा कि हम भी उनकी चिंता न करें। आखिरकार मुझे जिससे शादी करनी थी, मैंने की और सभी मेरी शादी में हंसी-खुशी शामिल हुए। मैं आज भी सोचती हूं कि लोग क्या कहेंगे इस डर से हम अपना कितना कुछ दांव पर लगा देते हैं। मैं अब इस डर से पूरी तरह उबर चुकी हूं और मुझे लगता है अब सोसायटी को भी इस डर से उबर जाना चाहिए।” 

खुशबू कहती हैं, “जब मैंने अपने घर से थोड़ी दूर कॉलेज जाना शुरू किया तो मेरे लिए अकेले ट्रावेल करना, नए दोस्त बनाना, अजनबी लोगों से बात करना और क्लास में खड़े होकर सवाल पूछना चुनौती जैसा था। स्पेशली नए लोगों से बात करने में मुझे बहुत डर लगता था, लेकिन समय के साथ मैंने न सिर्फ नए लोगों से बात करनी शुरू की, बल्कि अपनी बहुत सारी प्रॉब्लम्स खुद ही सॉल्व करनी शुरू कर दी। अभी मैं फर्स्ट ईयर स्टूडेंट हूं और मुझे लगता है इन दो सालों में मैं काफी मजबूत, मेच्योर और कॉंफिडेंट हो गई हूं। मुझे लगता है अपने डर पर विजय पाने के लिए जरूरी है कि हम उसका सामना करें, उससे लड़ें। तभी हम अपने डर पर जीत हासिल कर सकते हैं।” खुशबू की तरह ही सुगंधा का कहना है, “मैं लोगों के सामने बात करने से बहुत डरती थी और कई बार इसकी वजह से मैंने अपना काफी नुकसान भी करवा लिया। अपने इस डर के साथ-साथ इस डर के कारण हुए नुकसान से मैं काफी परेशान थी, तब मेरी एक फ्रेंड ने इसमें मेरी मदद की। उसकी वजह से आज न सिर्फ मैंने अपने डर पर काबू पा लिया है, बल्कि मार्केटिंग फिल्ड में बहुत अच्छा काम कर रही हूं।” 

इस सिलसिले में थेरेपिस्ट सोनाली भोंसले कहती हैं, ‘’सबसे पहले तो हमें ये समझना होगा कि हमारी जिंदगी में जो डर है, वो हमें किस तरह प्रभावित कर रहा है? किसी चीज से डरना कई बार आपको सचेत करता है, लेकिन अक्सर डर से डरना आपके व्यक्तित्व को बदतर बना देता है। ऐसे में जरूरी है, कि आप अपने डर को समझते हुए उस पर काबू पाने की कोशिश करें। इसके लिए सबसे पहले आप उन लोगों के साथ रहें, जो आपके डर या आप पर हंसने की बजाय आपको प्रोत्साहित करते हैं। हो सकता है आपको अपने डर से उबरने में काफी वक्त लगे, लेकिन आप अपना धैर्य मत खोइए। जहां तक संभव हो अपने डर की बजाय सफलता के बारे में सोचिए। अगर बहुत कोशिशों के बावजूद आपको लग रहा है कि कुछ कमी है तो ऐसी स्थिति में किसी थेरेपिस्ट से बात कीजिए। ये चीजें आपको जरूर मदद करेंगी।”

 

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