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भारतीय शिक्षा को आकार देती महिला शिक्षिकाएं

रजनी गुप्ता |  अक्टूबर 09, 2024

कुछ महिला शिक्षिकाओं का मातृ स्वरूप और सौम्य स्वभाव छात्रों के दिल और दिमाग पर इस कदर अंकित हो जाता है, कि वे बड़े होने के बाद चाहकर भी उन्हें भूल नहीं पाते। आइए जानते हैं ऐसी कुछ महिला शिक्षिकाओं के बारे में, जिन्होंने लोगों के दिलों के साथ समाज को भी प्रभावित किया। 

प्रेरणा और मार्गदर्शक के साथ मां स्वरूपा

हमारे देश में लगभग 70प्रतिशत महिला शिक्षक हैं। यूं कहें तो गलत नहीं होगा कि पुरुष शिक्षकों के मुकाबले महिला शिक्षकों की संख्या अधिक है। ऐसे में हम सभी के जीवन में स्कूल या कॉलेज में ऐसी कोई शिक्षिका अवश्य रही होंगी, जिनसे हम प्रभावित हुए बिना नहीं रहे होंगे। और आज भी उनकी छाप हमारे दिल में अंकित है। मार्गदर्शक के साथ हमारी तरह कई लोगों की प्रेरणा रही ये महिला शिक्षिकाएं स्वस्थ समाज का दर्पण हैं, जो विविधता का जश्न मनाते हुए न सिर्फ लैंगिक रूढ़िवादिता को चुनौती देती हैं, बल्कि समान अवसरों को भी बढ़ावा देती हैं। हमारे समाज में ऐसी ही कुछ शिक्षिकाएं हुईं, जिन्होंने न सिर्फ समाज में शिक्षा की नींव डाली बल्कि महिलाओं के लिए भी शिक्षा की राहें आसान की।    

भारतीय समाज में महिला शिक्षिकाएं 

आज के समाज में महिला शिक्षिकाओं की आवश्यकता अधिक है, क्योंकि सौम्य और दयालु होने के साथ-साथ वे न सिर्फ सहानुभूति, करुणा, धैर्य और भावनाओं से जुड़ी होती हैं, बल्कि विभिन्न पृष्ठभूमि से आए छात्रों की क्षमता और उनकी परेशानियों को भी समझने में कुशल होती हैं। इसके अलावा वे युवा लड़कियों के लिए शक्तिशाली रोल मॉडल बनकर उनके सपनों को आगे बढ़ाने के साथ सामाजिक मानदंडों को भी चुनौती देती हैं। हमारे देश में सावित्रीबाई फुले, एनी बेसेंट, फातिमा शेख, पंडिता रमाबाई और बेगम रुकैया सखावत हुसैन जैसी सशक्त प्रेरणादायी महिलाएं हुई हैं, जिन्होंने स्त्री शिक्षा के लिए अपना सर्वस्व समर्पित कर दिया। वर्ष 1831 में महाराष्ट्र में जन्मीं सावित्रीबाई फुले ने वर्ष 1848 में सामाजिक चुनौती देते हुए महिलाओं की शिक्षा का मार्ग प्रशस्त किया था। भारत में लड़कियों के लिए पहले स्कूल की स्थापना करने के साथ न सिर्फ बाल विवाह जैसी प्रथाओं को समाप्त करने की दिशा में कई काम किये, बल्कि विधवा पुनर्विवाह के लिए अपनी आवाज भी बुलंद की। 

महिला शिक्षा को सशक्त करनेवाली आंदोलनकारी शिक्षिकाएं

सावित्रीबाई के साथ मुस्लिम महिलाओं की शिक्षा के लिए सारी बाधाओं को तोड़ते हुए फातिमा शेख ने वर्ष 1846 में मुंबई में मुस्लिम लड़कियों के लिए न सिर्फ एक धर्मनिरपेक्ष स्कूल की स्थापना की, बल्कि महिला  अधिकारों के लिए अभियान चलाते हुए महिला शिक्षा के खिलाफ बरसों से चली आ रही सामाजिक पूर्वाग्रहों के खिलाफ लड़ाई भी लड़ी। 19वीं सदी में भारत की महिलाओं की शिक्षा और सशक्तिकरण के लिए आंदोलन का नेतृत्व करनेवाली महिलाओं में एक नाम पंडिता रमाबाई का भी आता है, जिन्होंने 1889 में मुक्ति मिशन की स्थापना करके विधवा और निराश्रित महिलाओं को आश्रय के साथ शिक्षा की सौगात दी। इन सशक्त महिलाओं में एक नाम बेगम रुकैया सखावत हुसैन का भी आता है, जिन्होंने बंगाल में सखावत मेमोरियल गर्ल्स स्कूल की स्थापना के साथ मुस्लिम महिलाओं को उनके अधिकारों से परिचय करवाया। गौरतलब है कि बंगाल में मुस्लिम महिलाओं के लिए सबसे पहला स्कूल यही था। सिर्फ यही नहीं स्कूल की स्थापना करने के अलावा वे सदैव अपने लेखन से भी महिला अधिकारों अधिकारों की वकालत करती रहीं।     

शिक्षा के साथ रोजगार भी          

भारी सामाजिक चुनौतियों और विरोध के बावजूद इन महिलाओं ने न सिर्फ स्त्री शिक्षा को महत्व दिया, बल्कि उन्हें रोजगार के अवसर भी दिए। इन महिलाओं में सबसे पहला नाम आता है, अनुसूया साराभाई का। 1947 में देश की आजादी के साथ महिलाओं की आजादी की नींव रखते हुए उन्होंने अहमदाबाद टेक्सटाइल रिसर्च एसोसिएशन की स्थापना की और महिलाओं को व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदान करने का बीड़ा उठाया। अगर यह कहें तो गलत नहीं होगा कि गुजरात में महिला शिक्षा और महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने में उनकी बहुत बड़ी भूमिका है। इसी के साथ सरला देवी चौधुरानी ने वर्ष 1910 में भारत स्त्री महामंडल की स्थापना के साथ महिला शिक्षा और सामाजिक सुधारों को बढ़ावा देने के लिए एक संगठन का निर्माण किया। उन्होंने भी विधवाओं के उत्थान की दिशा में काफी सकारात्मक भूमिका निभाई। ये इन्हीं महिला शिक्षिकाओं की दूरदृष्टि और अथक परिश्रम का नतीजा है कि भारतीय महिलाओं की पीढ़ियां शिक्षा और रोजगार के अवसर पाने के साथ पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं।   

भारतीय शिक्षा की रीढ़ हैं महिलाएं

वर्तमान समय में हमारे भारतीय स्कूलों में लगभग 50प्रतिशत महिला शिक्षक हैं, जिनमें केरल और मिजोरम जैसे राज्यों के शिक्षण संस्थानों में लगभग 80प्रतिशत से अधिक महिलाएं हैं। ऐसे में यह कहना कतई अतिश्योक्ति नहीं होगी की महिलाएं भारतीय शिक्षा की रीढ़ हैं। हालांकि मानवीय गुणों के साथ उनका ममत्व, उनकी मल्टीटास्किंग एबिलिटी, उनका को-ऑपरेटिव एटीट्यूड और उनकी रोल मॉडलिंग जैसी उनकी विशेषताएं भी उन्हें खास बनाती हैं। उनके सफल और नये तरिके, उनका स्नेह और उनकी प्रेरणा की बदौलत बदल रहे भारतीय स्कूलों का स्वरूप, सबूत है इस बात का।   

 

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