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वे महिलाएं, जिन्होंने आंचल से परचम बनाकर बेबाकी से स्वीकारी चुनौतियां

रजनी गुप्ता |  जनवरी 31, 2025

“तिरे माथे पे ये आँचल बहुत ही ख़ूब है लेकिन, तू इस आँचल से इक परचम बना लेती तो अच्छा था” इसरार-उल-हक मजाज के मशहूर अशआर में से एक इस शेर में महिलाओं को बेबाक होने के लिए बड़ी ही खूबसूरती से प्रेरित किया गया है। फिलहाल आइए जानते हैं उन महिलाओं के विचार, जिन्होंने अपने आंचल से परचम बनाकर बड़ी बेबाकी से चुनौतियों को स्वीकारा है।

लोगों की बजाय अपने सपनों की करें फिक्र

अपने आपको ढूंढने के लिए जरूरी है, इस बात से पीछा छुड़ाना कि लोग क्या कहेंगे? फिर ये ‘लोग’ चाहे आपके फैमिली मेंबर्स हों, दोस्त हों, पड़ोसी हों, ऑफिस कलीग्स हों या फिर रिलेटिव्स हों। हालांकि देश-दुनिया में अब तक जितनी महिलाओं ने अपनी एक जगह बनाई है, वो अपने बेबाक और बिंदास इरादों से ही बनाई है। उन्होंने लोगों की फिक्र करने की बजाय अपने सपनों की फिक्र की। उसे संवारा-सजाया और उस मुकाम को हासिल किया, जहां वे आज हैं। हालांकि व्यक्तिगत तौर पर महिलाओं के बेबाक और बिंदास होने के साथ-साथ जरूरी है, कि देश में उनके लिए ऐसे हालात बनाए जाएं, जहां वे अपनी बेबाकी का मजा उठा सकें। 

जो चीजें पुरुषों के लिए सही, वे महिलाओं के लिए गलत क्यों 

इस सिलसिले में जानी मानी थियेटर आर्टिस्ट नेहा सिंह, जो व्हायलॉयटर नामक कैंपेन भी चलाती हैं, कहती हैं, “मुझे समझ नहीं आता कि जो चीजें पुरुषों के लिए सही है, वे महिलाओं के लिए गलत क्यों हो जाती हैं? पुरुष चाहें तो आधी रात को घर से निकल जाते हैं, लेकिन महिलाओं को सेफ्टी की दुहाई देकर शाम को भी घर से निकलने नहीं दिया जाता। क्यों? हमें किससे बचना है, पुरुषों से? यही वजह है कि पिछले 12 वर्षों से मैं व्हायलॉयटर कैंपेन चला रही हूं, जिसमें मैं अपनी सहेलियों के साथ आधी रात को यूं ही बाहर घूमने निकल जाती हूं। मुझे बचपन से रोक-टोक पसंद नहीं, बल्कि मैं काफी बिंदास स्वभाव की रही हूं। ऐसे में जो चीजें मुझे खटकती हैं या प्रतिबंधित करती हैं, मैं उन्हें तोड़ने का प्रयास करती हूं।” 

लोग पहले सवाल उठाते हैं, फिर अपनाते हैं

नेहा सिंह की बात का समर्थन करते हुए संजू पाण्डे कहती हैं, “अगर लाइफ का कोई भरोसा नहीं है, तो लाइफ को प्लान करके अपने अरमानों को सेक्रिफाइज करने का क्या मतलब है? दूसरी बात अगर लोगों को हमारी बातें या हमारे सपने बेबुनियाद लगती हैं, तो हम उनकी बातों को क्यों इतना दिल से लगा लेते हैं। वैसे भी लोगों की आदत है कि पहले वे आपके इरादों और विचारों पर सवाल उठाते हैं और बाद में उसे एक्सेप्ट कर लेते हैं। इसलिए एथिक्स को अपनाते हुए जो चीजें आपको सही लगती है, वो कीजिए। मेरी लाइफ का फंडा हमेशा से यही रहा है, कि अपने दिल की सुनों और लोगों की इलॉजिकल वैल्यूज को इम्पोर्टेंस मत दो।” 

बहनजी-ओल्ड फैशन कहने से फर्क नहीं पड़ता   

बेबाकी के साथ अपने इरादों पर यकीन करनेवाली साधना तिवारी कहती हैं, “मॉडर्न दिखने के लिए अक्सर लोग हाई हील्स पहनते हैं। स्पेशियलि हमारा ऑफिस काफी हाई-फाई किस्म का है, जहां अधिकतर लड़कियां मॉडर्न कपड़ों के साथ हाई हिल्स पहनकर आती है, लेकिन मुझे हाई हील्स पहनना पसंद नहीं है। मैं हमेशा फ्लैट चप्पलें और स्लीपर्स पहनती हूं, क्योंकि इन्हें पहनने से मेरे पीठ और घुटनों में दर्द होता है। हालांकि इसके लिए मेरे ऑफिस में कई लोग मुझे बहनजी और ओल्ड फैशन भी कह चुके हैं, लेकिन मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। मेरे लिए फैशन से बढ़कर मेरा हेल्थ और कंफर्ट है। वैसे भी ये बात हम सब जानते हैं और ये बात रिसर्च में भी साबित हो चुकी है कि हाई हील्स पहनने से पैरों के साथ हमारी स्पाइन को काफी नुकसान पहुंचता हैं।”

घरवालों की फिक्र करना जरूरी है, बस

साथ ही मनाली मिश्रा कहती हैं, “मैं बचपन से ही काफी बेबाक किस्म की रही हूं, जिसे घरवालों ने भी एक्सेप्ट कर लिया है। लेकिन मुझे याद है जब मैंने बुद्धिस्ट मीटिंग्स में जाना शुरू किया था और उसकी चैंटिंग शुरू की थी, तो घरवालों ने इसका बहुत विरोध किया था। उनके विरोध की वजह बड़ी सीधी सी थी कि मैं ब्राह्मण परिवार से होकर बुद्धिस्ट नियमों और उसकी चैंटिंग कैसे कर सकती हूं? हालांकि मैंने उन्हें समझाने की बहुत कोशिश की कि मैं कोई धर्म परिवर्तन नहीं कर रही हूं और न ही ये धर्म है। ये सिर्फ जीवन जीने और खुद को समझने का एक जरिया है। मेरे लाख समझाने पर भी वे जब नहीं समझें, तो मैंने उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया। मैं पिछले 18 साल से अपनी राह पर हूं और हर रोज सुबह उठकर चैंटिंग करती हूं, फिर मंदिर में पूजा भी करती हूं। जब घर में कोई आता है तो उसे आश्चर्य होता है, लेकिन मां-पापा समझ चुके हैं कि मुझे इससे ही शांति मिलती है तो मुझे किसी और को नहीं समझाना। मुझे जो अच्छा लगता है, मैं वही करती हूं।”  

महिलाओं को होना ही होगा बेबाक

इस सिलसिले में क्लिनिकल सायकोलॉजिस्ट हिरल खिमानी कहती हैं, “महिलाओं के लिए बेबाकी का मतलब है बिना किसी मानसिक बाधाओं के जीवन से प्यार करना और अपने अस्तित्व का सम्मान करना।” इसमें दो राय नहीं है कि भारत को महिलाओं के लिए एक चिंतामुक्त और सुरक्षित देश बनाने में कई कदम उठाने की जरूरत है, लेकिन उससे भी ज्यादा जरूरत है स्वयं महिलाओं के मुखर होकर आगे आने की। समाज के तथाकथित नियमों को पीछे छोड़कर उन्हें जिया जालंधरी की इस बात को सच करके ही दिखाना होगा कि “हिम्मत है तो बुलंद कर आवाज़ का अलम, चुप बैठने से हल नहीं होने का मसला।”

 

 

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