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इन महिलाओं ने हुनर के जरिए तलाशी ‘सेल्फ लव’ की ताकत, बन गईं मिसाल

प्राची |  जनवरी 20, 2025

‘सेल्फ लव’ एक ऐसा एहसास है, जिसका अनुभव होना हर महिला के लिए जरूरी है। खुद को सेलिब्रेट करना। खुद के वक्त और हालात को अपनाना। यह सोचना कि आपको दुनिया के सर्टिफिकेट की जरूरत नहीं है। खुद को खुशी से अपनाना ही सेल्फ लव की सही परिभाषा को दर्शाता है। अक्सर जिंदगी में कई ऐसे हालात पैदा हो जाते हैं, जहां पर सेल्फ लव के रास्ते पर मुश्किलें दस्तक देती हैं। इस दौरान हुनर एक ऐसी सकारात्मक सोच बनकर उभरता है, जो कि हमें फिर से सेल्फ लव के रास्ते पर लौटने में मदद करता है। आइए ऐसी महिलाओं से मुलाकात करते हैं, जो कि अपने हुनर के जरिए फिर से खुद से प्यार करने की शक्ति को जुटा पाई हैं।

संगीत से मिली हिम्मत-धनाश्री गणात्रा

फिल्ममेकर धनाश्री गणात्रा कहती हैं कि साल 2000 में मुझे ब्रेन में ब्लड क्लॉट आया था। मेरे गाने की तैयारी चल रही थी। यह तैयारी मुझे पुणे के एक संगीत कॉन्सर्ट में गाने के लिए थी। उसमें मैं गाने वाली थी। तभी मुझे ब्रेन में ब्लड क्लॉट हुआ और वो फट गया। इसकी वजह से मुझे लकवा का अटैक भी आया था। सबसे बुरा यह था कि मेरी आवाज चली गई थी। लेकिन मैंने अपने हुनर को अपनी ताकत बनाया। मुझे अस्पताल में लेकर गए। इस वक्त भी खुद के संगीत पर मेरा भरोसा कायम रहा। ओमकार साधना के जरिए और मेरी आवाज वापस आ गई। डॅाक्टर ने कहा था कि आप सोचना मत गाने के लिए। लेकिन मैं इस हादसे के तीन महीने बाद मैं  स्टेज पर गा रही थी। संगीत ने मुझे पॅावर दी। मेरी जिंदगी में कुछ है नहीं। मैं जब अस्पताल में थी, तो वहां पर तानपुरा सुनने के लिए पिताजी से मंगवाती थी। अस्पताल में भी मैं संगीत को सुनती रहती थी और फिर से खड़े रहने की मुझे हिम्मत वहीं से मिली है।

लेखन से लौटी मेरी जिंदगी-जान्हवी राऊल

ब्रांड गुरू जान्हवी राऊल ने बताया कि  मैं एक तरह की बीमारी से पीड़ित हूं। मेरी बीमारी का जब पता चला और मैं अस्पताल में एडमिट होने वाली थी, तब मुझे अहसास हुआ कि आपको जिंदगी जो दे रही है, उसे आपको अपनाकर आगे बढ़ना चाहिए। क्योंकि जिंदगी आपको बहुत कुछ सिखाती है और मैं कम उम्र में जिंदगी की कीमत को अनुभव कर चुकी हूं। बीमारी के दौरान मुझे एहसास हुआ कि सिर्फ मुझे मां या बेटी बनकर इस दुनिया से नहीं जाना है। मुझे अपनी बुनियाद को मजबूत करना है। मेरी बीमारी को मैं सकारात्मक तौर पर लेती हूं। मुझे लगा कि बीमारी के बारे में सोचने की बजाय मैं खुद के ज्ञान को बढ़ाऊं। मुझे बीमारी के कारण बेचारी बनकर नहीं रहना है। मैं बीचारी नहीं हूं क्योंकि किसी को नहीं पता कि किसको कब मौत आनी है। खैर, मुझे लिखना बहुत पसंद है। लोगों की काउंसलिंग करना पसंद है। 15 साल से मैं लोगों की काउंसलिंग कर रही हूं। मैंने इसके लिए फिर किताब लिखने का सोचा। मैंने ब्रैंड गुरू नाम से किताब लिखी। आज मुझे सब किताब के नाम से पहचानते हैं। 

शिक्षा मेरे जीवन की लाठी-कल्पना बेडेकर 

शिक्षिका कल्पना बेडेकर कहती हैं कि मेरा जन्म सातवें महीने में हुआ है। मुझे नौवें दिन से नौ महीने तक पैर में प्लास्टर रहा है। फिर नौं महीने से नौ साल तक पैर का इलाज चलता रहा। मेरे दोवों पैरों को घुटनों में कटोरी नहीं है। मेरा घुटना सपाट दिखता है। 12 साल तक की उम्र तक मैंने लोहे के फ्रेम का जूता पहना है। मेरा दायां पैर बाएं की तुलना में पतला है। साथ एक पैर दूसरे पैर से लंबाई में भी कम है। मुझे हमेशा आगे बढ़ना और पढ़ाई करने का हौसला रहा है। मैं बचपन में बाहर जाकर भी खेलती थीं। मैंने कभी हार नहीं मानी। मैंने शिक्षा को अपना हथियार बनाया। मैंने ग्रेजुएशन के बाद एम ए की डिग्री हासिल की। उच्च श्रेणी शिक्षिका के पद पर मध्य प्रदेश के कटनी शहर में मैंने पढ़ाना शुरू किया। 6 साल बाद मेरी शादी हुई।  एक बार शादी के दौरान मुझे लड़के के परिवार ने कहा कि नौकरी छोड़नी पड़ेगी। मैंने उनसे कहा कि पति नहीं मिलेगा, तो चलेगा लेकिन मैं नौकरी नहीं छोड़ूंगी। फिर 1991 में मेरी शादी हुई। जहां पर पूरे दिल के साथ मुझे अपनाया गया।  इसके बाद फिर मेरा पढ़ाई करने का और पढ़ने का सफर जारी रहा। स्कूल में पढ़ाना, बच्चों को जीवन की सीख देना मेरा मकसद रहा है। मैं उन्हें साफ-सफाई और खुद को प्यार करने की सीख देती थी। मैं स्कूल में लड़कियों को कहती थी कि आप घर से अच्छे से तैयार होकर आना है। इससे आपको खुद भी अच्छा महसूस होगा। मैं खुद अपने स्कूल में चूड़ी पहनकर और अच्छे से तैयार होकर जाती थी। खुद से प्यार करने की सीख मैंने अपने विद्यार्थियों को भी देती रही हूं। रिटायरमेंट के बाद भी मैं खुद की कला की क्रिया में व्यस्त रखती हूं। मैंने कपड़े से कई सारी गुड़ियां और खिलौने तैयार किए हैं। यहां तक कि मैं अपनी बेटी के भी कपड़े खुद सिला करती थी। सिखना हमेशा से मेरा शौक रहा है। भविष्य में मेरी ख्वाहिश अब गाड़ी चलाना सीखना है। साथ ही मुझे संगीत भी सिखना है।

भाषा मेरी ताकत-उषा साहो

उषा साहो कहती हैं कि 2007 में मैंने कैंसर बीमारी के कारण अपने परिवार के सदस्यों को खो दिया थी। मुझे कैंसर बीमारी से डर लगने लगा था। अगर मैं कैंसर बीमारी से जुड़ी कोई खबर पढ़ लेती थी या फिर कोई वीडियो देखती थी, तो मुझे घबराहट होने लगती थी।इसका इलाज सेल्फ काउंसलिंग हैं। हमें ऐसा कुछ करना होता है ताकि हम खुद ही घबराहट और परेशानी की लगातार हो रही समस्या से बाहर आ सकें।  साल 2007 में मैंने यह तय किया कि मुझे नयी भाषा सीखनी है। मेरे लिए नई भाषाएं सीखना नए अनुभव की तरह रहा है। नई भाषा सीखने के बाद धीरे-धीरे वक्त के साथ मैं घबराहट और परेशानी वाले अहसास से बाहर आ पाई हूं।

कुल मिलाकर देखा जाए, तो अपने-अपने क्षेत्र में माहिर यह सभी प्रेरणादायक महिलाएं अपने जीवन के अनुभव से यह सीख देती हैं कि जिंदगी जीने का नाम है। खुद को सेलिब्रेट करना का नाम है। असली सेहत सेल्फ लव और खुद की कदर से आती है।

 

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