भारतीय कला के क्षेत्र में महिलाओं का योगदान की तुलना नहीं की जा सकती है। महिलाओं को कुदरत की भेंट का दर्जा मिला है। जब यही भेंट कला के जरिए हम सभी के लिए कोई तोहफा बनाती है, तो उसकी तुलना करना जायज नहीं होता है। यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि भारतीय कला के इतिहास में महिलाओं का योगदान प्रमुख रहा है। मध्यकालीन काल से लेकर आधुनिक काल तक महिलाओं ने अपनी कला के जरिए अपनी प्रतिभा का अनोखा करिश्मा दिखाया है। आइए जानते हैं इस बारे में विस्तार से।
मूर्तिकला में महिलाएं

अजंता-एलोरा की गुफाओं में बनी कई सारी आकृतियां महिलाओं की स्थिति को दिखाते हैं। हालांकि किसने कब और कैसे इसे तैयार किया है, इसका नाम इतिहास में दर्ज नहीं है। लेकिन इतिहासकारों का मानना है कि कई सारी महिलाएं मूर्तिकार अजंता-एलोरा की गुफाओं में उस दौरान काम कर रही हैं। अजंता-एलोरा गुफाओं में महिलाओं के सौंदर्य, शक्ति और भावनाओं को भी दर्शाया गया है, जो कि बताता है कि महिला दृष्टिकोण कला का हिस्सा रहा है। इससे भङी सभी वाकिफ है कि भरतनाट्यम, कथक, ओडिसी जैसे पारंपरिक नृत्य शैलियों में महिलाएं नृत्यांगनाओं के रूप में अग्रणी रही थीं। दूसरी तरफ भक्तिकाल में मीराबाई, अक्का महादेवी जैसी कई संत कवयित्रियों ने अपने भक्ति भाव और काव्य प्रतिभा से साहित्य और समाज पर गहरा प्रभाव डाला है।
चित्रकला में महिलाओं का योगदान

अमृता शेरगिल,सुनयनी देवी और मृणालिनी मुखर्जी जैसी महिला कलाकारों ने आधुनिक भारतीय कला को एक नई दिशा दी। उन्होंने अपनी कला के माध्यम से सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों को भी उठाया है। मधुबनी, वारली, पिथोरा जैसी लोक कलाओं की परंपरा में महिलाओं की प्रमुख भूमिका रही है, जहाँ वे दीवारों पर धार्मिक और सामाजिक चित्र उकेरती थीं। अनजोली इला मेनन ने हमेशा से अपने चित्रों में धार्मिक, सामाजिक विषयों की झलक मिलती है। उन्होंने आधुनिक भारतीय कला को नई दिशा भी दी है। इसके अलावा अरुपा लाहिड़ी, गीता वाडेकर, भीना भालोडिया जैसे कलाकारों ने विभिन्न तकनीकों के जरिए स्त्री अनुभव को दिखाया है।
आधुनिक और समकालीन भारत में महिला कलाकार

आधुनिक और समकालीन भारत में भी कई सारी महिला कलाकार मौजूद रही हैं। इसमें पहला नाम शामिल है, भारती खेर का। भारती खेर ने बिंदी का प्रयोग करके अपनी कलाकृति का प्रदर्शन किया और इससे उनकी कला को नई पहचान मिली। दूसरी तरफ शिल्पा गुप्ता का नाम शामिल है, जो कि टेक्नोलॉजी, प्रदर्शन कला और राजनीतिक विचारों पर आधारित चित्र बनाती हैं। उनकी कला खासतौर पर सीमाओं, सेंसरशिप और सामाजिक संघर्षों की पड़ताल करती हैं। इसके साथ रेणुका कलट ने भी चित्रकारी में अपना कमाल दिखाया है। जहां पर सामाजिक विषयों और घरेलू जीवन की छवियां उनके काम में साफ तौर पर देखने को मिलती है।
भक्ति आंदोलन के दौरान महिलाएं

भक्ति आंदोलन के दौरान महिलाओं ने संगीत,कविता और डांस के जरिए लगातार आध्यात्मिक और सामाजिक संदेश दिए। इस दौरान महिलाओं ने संगीत और कविता के जरिए अपने विचार को व्यक्त किए। इतिहासकारों का मानना है कि राज दरबारों में राजकुमारी और रानियों ने भी सजावट और चित्रों के जरिए अपनी कला का परिचय दिया।राजस्थानी और मुगल चित्रकला में महिलाओं के विषय और उनकी उपस्थिति देखने को मिलती है।
थिएटर और सिनेमा के युग में महिला कलाकार

थिएटर के प्रारंभिक काल में कथकली, नाट्यशास्त्र जैसे कई सारे नाटक होते थे। इस दौरान महिलाओं की भागीदारी सीमित रही। पुरुष ही महिलाओं का किरदार निभाते थे। लेकिन 19 वीं सदी के अंत और 20 वीं सदी की शुरुआत में महिलाएं धीरे-धीरे मंच पर आने लगीं। पारुल घोष, सुमित्रा सेन, रूपा घोष जैसी कलाकारों ने रंगमंच को नया आयाम दिया।आधुनिक हिंदी और बंगाली नाटकों में महिलाओं ने नायिका की भूमिका निभाकर सामाजिक मुद्दों जैसे महिला अधिकार, घरेलू हिंसा, समानता आदि को उजागर किया। वक्त के साथ महिला थिएटर समूह और प्रोडक्शन हाउस स्थापित हुए, जैसे नाट्यशाला, संगिनी, जो महिलाओं की आवाज़ को मंच देते हैं। दक्षिणा कुमारी, राजकुमारी, और दीना पाठक जैसे कलाकारों ने महिलाओं के सशक्त चित्रण की शुरुआत की। इसके बाद भारतीय सिनेमा और थिएटर में महिला कलाकारों का आने का दौर शुरू हो गया।