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बा, बहू और डिजिटल एजुकेशन : उम्रदराज महिलाओं ने छोड़ी कल की बातें, संभाल लिया है डिजिटल रिमोट

अनुप्रिया वर्मा और शिखा शर्मा |  नवंबर 06, 2022

अभी से कुछ सालों पहले की बात रही होगी, जब दादी मां बाजार गयी थीं और उन्होंने जब हर दुकान में ऑनलाइन पेमेंट वाली बोर्ड देख कर, सीधे तौर पर डिमांड की थी कि यह आजकल श्रीयंत्र अलग तरह का आने लगा है और सबके पास है, उन्होंने शिकायती लफ्जे में कहा था कि यह हमारे पास क्यों नहीं है, मुझे भी आज ही यह घर में चाहिए, इसमें जरूर अधिक शक्ति होती होगी। फिर दादी को बड़े प्यार से बात समझायी, तो वह और हैरान हो गई थी कि ऐसे कैसे दूसरे को तुम लोग एक कागज के भरोसे पैसे दे देते हो। लेकिन वहीं दादी मां के मोबाइल को हाल ही में जब हाथों में लिया तो देखा, अब वह यूपीआई की मदद से और एप्प की मदद से पैसे लेन-देन करना शुरू कर दिया है। उनके फोन के होम स्क्रीन को देख कर हैरानी तब हुई, जब उसमें कई सारे जरूरी एप्प दिखे हैं। दरअसल, यह कहानी सिर्फ एक घर की नहीं है, अब इंटरनेट और सोशल मीडिया युवाओं के ही नहीं बड़े-बुजुर्गों की मुट्ठी में आ चुका है और यह एक अच्छे बदलाव है, क्योंकि यह बदलाव बड़े-बुजुर्गों को न केवल समय के साथ चलने के लिए तैयार कर रहे हैं, बल्कि उनकी मेंटल हेल्थ को भी बेहतर रखने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। तो आइए जानें, बड़े-बुजुर्ग और खासतौर से बढ़ती उम्र के साथ, महिलाओं ने डिजिटल माध्यम के साथ बढ़ कर क्या हासिल किया है। कुछ वास्तविक अनुभव के आधार पर हमने जानने की कोशिश की है।

अब बैंकिंग के काम भी निबटा लेती हूं फोन पर  : इंद्रावती दुबे, जौनपुर, उत्तर प्रदेश 

उत्तर प्रदेश से संबंध रखने वालीं 62 वर्षीय इंद्रावती दुबे, इन दिनों मुंबई में रहती हैं। उन्होंने अपने डिजिटल डर को बखूबी कम किया है। पहले उन्हें यह किसी रॉकेट साइंस से कम नहीं लगता था। वह खुद बताती हैं कि कैसे डिजिटल की दुनिया की बारीकियां सीख कर, वह समय के साथ चलने की कोशिश कर रही हैं। वह कहती हैं, एक समय था कि बच्चे मुझे कह कर थक जाते थे कि मैं स्मार्ट फोन लूं, तो मुझे यही लगता था कि इसकी जरूरत क्या है। यह सब नए जमाने की बात है। लेकिन मेरे घर के बच्चों ने ही इस बात पर प्रेशर दिया, फिर मैंने धीरे-धीरे सीखना शुरू किया। अब तो मुझे इसमें मजा आने लगा है। पहले कॉल के अलावा कुछ नहीं कर पाती थी। अब तो फेस टाइम कर लेती हूं। कोई भी रेसिपी देखने के लिए अब मुझे मेरी डायरी भी खोलनी नहीं पड़ती है, यूट्यूब खोलते ही सबकुछ मिल जाता है और सबसे अच्छी बात है कि बच्चों ने मेरे बैंक अकाउंट को भी ऑनलाइन कर दिया है, तो अब बैंक जाने की जरूरत नहीं पड़ती है। सारे काम इस पर ही कर लेती हूं। मुझे खुशी है कि बच्चों ने मेरी जिंदगी को काफी आसान बना दिया है। 

बैंकिंग फ्रॉड से अब चकमा नहीं खाती हूं : कुमकुम, मुंगेर, बिहार  

बिहार की रहने वाली 53 वर्ष की कुमकुम का कहना है कि उनके तीन बच्चे हैं और बिहार से बाहर ही नौकरी करते हैं। ऐसे में एक समय था कि उनको देखे बिना काफी बेचैनी होती थी, लेकिन अब दूरियां डिजिटल दुनिया के कारण कम हो गई है। साथ ही और भी कई फायदे हुए हैं। वह बताती हैं आज से कुछ साल पहले की बात करूं, तो मुझे जरूरत नहीं पड़ती थी स्मार्ट फोन की। लेकिन बहुओं की जिद्द की वजह से स्मार्ट फोन का इस्तेमाल शुरू किया, तब भी सिर्फ फोन पर बातचीत ही करती थी। ऐसे में एक समय ऐसा आया था कि कई फ्रॉड कॉल्स आने लगते थे और एक बार तो मैंने गलती से पासवर्ड शेयर भी किया था। लेकिन फिर जान-पहचान के बैंक के मैनेजर थे तो उन्होंने फौरन संभाल लिया था। उस वक्त से मैं डर गयी थी स्मार्ट फोन इस्तेमाल करने से, लेकिन लॉक डाउन के कारण दो साल से मेरा छोटा बेटा वर्क फ्रॉम होम कर रहा है, तो उसने मुझे पूरे ट्रिक्स समझाए, सावधानियां समझायी और अब मैं आसानी से इसे इस्तेमाल करती हूं। फ्रॉड करने वाले कॉल्स को खूब खरी-खोटी भी सुनाने में नहीं हिचकती हूं। मेरे फोन में मुझे किस तरह से पासवर्ड लॉक रखना है, इस बात का भी मुझे पूरा ख्याल रहता है। अब मैं इस बात से भी वाकिफ हुई हूं कि ट्रूकॉलर जैसे एप्प से फ्रॉड कॉल आ रहे हैं, तो उसे समझ लेती हूं। मेरा एक बेटा विदेश में एयरलाइन में नौकरी करता है है, मुझे सुकून मिलता है कि उतनी दूर बैठ कर भी मैं उसे यहां के सारे पर्व-त्यौहार दिखा देती हूं। अभी छठ आने वाला है, लेकिन स्मार्ट फोन चलाना सीख लेने से मुझे तसल्ली है कि छठ का लाइव मैं मेरे बेटे को विदेश में बैठ कर भी दिखा पाऊंगी। भविष्य में मैं और अधिक इसकी बारीकियों को सीखना चाहूंगी। मेरे किचन में अब मेरा टीवी भी होता है इसी स्मार्ट फोन पर, कोई शो छूट गया तो उसका इंटरनेट वर्जन देख लेती हूं। जामताड़ा शो भी मैंने जब ओटीटी पर देखा, तो इसमें यही था कि कैसे उम्रदराज लोगों को ही टारगेट करते हैं, ऐसे में मेरा दिमाग और स्पष्ट हो गया है कि मुझे क्या नहीं करना है। एक अच्छी बात यह हो गई है कि मैं खुद में आत्म-निर्भर भी बनी हूं, बैंक के काम के लिए या घर के सामान मंगवाने पर अब कैश का इंतजार नहीं करना पड़ता है और न ही किसी पर निर्भर रहना पड़ता है। 

मैं अब अपने बिजनेस का विस्तार कर पा रही हूं डिजिटल दुनिया में : कांता, मुंबई, महाराष्ट्र  

60 वर्षीय कांता स्वयं उद्यमी हैं, परिवार की जिम्मेदारियों को पूरा करते हुए उन्होंने अपने शौक को भी जिंदा रखा और हमेशा आगे बढ़ने के बारे में सोचा है । यही वजह है कि वह छोटे स्तर पर ही सही, लेकिन घर से अपना छोटा सा व्यवसाय चला रही हैं। डिजिटल दुनिया के बारे में उनका कहना है कि मेरे बच्चों ने खासतौर से मेरी बेटी, जो मीडिया फील्ड से जुड़ी हुई है और सोशल मीडिया पर भी काफी एक्टिव है, उसने मुझे इस बात के लिए प्रेरित किया कि मैं ऑनलाइन मार्केटिंग से जुड़ूं और अपने व्यवसाय को विस्तार दूं। फिलहाल छोटे स्तर पर ही सही, इससे मुझे फायदा हो रहा है। मैं कपड़े, चादर और ऐसी कई चीजें हैं, जिसकी मार्केटिंग आसानी से इस पर कर पा रही हूं, सबसे बड़ी बात है कि पूरी दुनिया से जुड़ने में मुझे आसानी हो रही है, अब मैंने चैटिंग करना सीखा है। शुरू में किसी को भी किसी और का मेसेज भेज देती थी। लेकिन अब धीरे-धीरे बेटी ने सिखाया है कि किन बातों का ध्यान रखना है। अब मेरे लिए यह ‘हउआ’ नहीं रह गया है। मैं हर दिन अब एक नयी चीज सीखने की कोशिश करती हूं। इंटरनेट की दुनिया से जुड़ कर जान पाई हूं कि मेरे जैसी कितनी महिलाएं इस तरह के छोटे-छोटे काम कर रही हैं और लोगों तक अपने काम को पहुंचाने का कितना आसान माध्यम है। 

ओटीटी पर देखती हूं बहुत कुछ, इंटरनेट को करती हूं एक्सप्लोर : राशिदा नलवाला, मुंबई, महाराष्ट्र 

70 वर्षीय राशिदा नलवाला कहती हैं कि अब उनके लिए टीवी दूर की बात हो गई है, वह अपने कम्फर्ट के अनुसार पूरी तरह से स्मार्ट फोन पर निर्भर रहने लगी हैं। वह कहती हैं कि डिजिटल स्पेस से रूबरू होकर एक चीज जो मैंने महसूस की है कि यहां ज्ञान का भंडार है। इंटरनेट पर इतना कुछ है नॉलेज के लिए, पूरे विश्व से जुड़े इतने सारे विषय है, जिस पर आर्टिकल्स होते हैं, जिन्हें खंगाल कर पढ़ने पर बैठे-बैठे ही आप कितना कुछ जान पा रहे हैं दुनिया को। साथ ही अब मैं केवल सैटेलाइट चैनल पर घिसे-पिटे शोज नहीं देखती, बल्कि ओटीटी की दुनिया में हर भाषा के शोज देखना पसंद करती हूं और सबकुछ अपने स्मार्ट फोन पर बड़े ही सहूलियत के साथ। डिजिटल दुनिया में आकर मुझे कई नयी चीजें सीखने को मिली है, ऐसे कई एप्प हैं, जो हर दिन अंग्रेजी सिखाते हैं, तो मेरी कोशिश होती है कि मैं हर दिन कम से कम पांच शब्द सीखूं। 

सोशल मीडिया मेरे लिए बन गया है एक दोस्त : नीलम, जमशेदपुर, झारखंड 

52 वर्षीय नीलम का कहना है कि उनके लिए सोशल मीडिया एक दोस्त बन गया है। मैं मेरे दो बेटे के साथ रहती हूं। बड़ा बेटा नौकरी करता है और छोटा वाला बेटा अभी पढ़ाई कर रहा है। ऐसे में दोनों व्यस्त रहते हैं। मैं शुरुआत में जब बिहार से यहां जमशेदपुर रहने आयी, तो काफी अकेलापन लगता था। इंसान टीवी भी कितना देखेगा। ऐसे में छोटे बेटे ने मुझे सोशल मीडिया से रूबरू कराया, फेसबुक और इंस्टाग्राम पर मेरे अकाउंट बना दिए और इसके बाद, अब मैं इस पर अपने परिवार के लोगों के साथ-साथ, देश दुनिया की तमाम चीजें देखती हूं। मेरा एक तोता है, उसकी एक्टिविटी मैं शेयर करती हूं और लोग जिस तरह से कमेंट करते हैं, तो लगता है कि यह अपने ही लोग हैं, पहले-पहले मुझे इसको लेकर हिचक थी, मुझे याद है कई बार तो मैं कुछ और ही कर देती थी, लेकिन धीरे-धीरे इससे यूज टू हो गई हूं तो अच्छा लग रहा है। मेरे अकेलेपन को दूर करने में यह एक अहम किरदार निभा रहा है। मेरा मानना है कि मानसिक रूप से यह आपको इन्वॉल्व रखता है, तो आपके दिमाग में फालतू की चीजें नहीं आती हैं। 

क्रिएटिव दुनिया है डिजिटल माध्यम की : वंदना देशमुख,नागपुर, महाराष्ट्र 

52 वर्षीय वंदना देशमुख का मानना है कि डिजिटल मीडियम उन्हें क्रिएटिव मीडियम लगता है। वह कहती हैं कि शुरू से मुझे बुनाई, सिलाई, कढ़ाई जैसी चीजों में दिलचस्पी रही है। घर को सजाने में भी काफी दिलचस्पी रही है। जैसे-जैसे मैं डिजिटल दुनिया के करीब आई हूं, मैंने महसूस किया है, यहां लोग कितनी क्रिएटिविटी दिखाते हैं, मुझे तो DIY देख कर, उन्हें आजमाना काफी अच्छा लगता है। डिजिटल वर्ल्ड से कनेक्ट होकर छोटे स्तर पर ही सही, लेकिन मुझे ऐसा महसूस होता है कि मैं समय के साथ चल रही हूं। साथ ही मुझे जो सबसे अच्छी बात लगती है कि घर पर कोई न भी रहे, तो ऑनलाइन के माध्यम से घर के सारे काम आसानी से हो जाते हैं। हर चीज के लिए एप्प है, साग-सब्जी से लेकर, सबकुछ मैं ऑनलाइन मंगाती हूं और ऑनलाइन ही पेमेंट भी कर देती हूं, तो कैश निकालने के लिए भी घर से दूर नहीं निकलना पड़ता है। सच कहूं, तो लॉक डाउन के बाद से मैंने डिजिटल वर्ल्ड के महत्व को समझा और खुद को इसे लेकर फ्रेंडली बनाया और उसके फायदे अब मैं महसूस कर पा रही हूं। साथ ही मैं अब सोशल मीडिया से ही इस बात को लेकर अवगत हो पाई हूं कि जो फोर्वर्ड्स मेसेज होते हैं, वह सही नहीं होते हैं और उन्हें और लोगों को भेजने से कुछ नहीं होता है, तो मैं मानती हूं कि अब मैं पहले से अधिक जागरूक हुई हूं चीजों को लेकर। 

यंग जनरेशन ऐसे करें हौसला अफजाई

वाकई, इन महिलाओं से बातचीत करने के बाद, यह बात तो सामने आई है कि धीरे-धीरे ही सही डिजिटल वर्ल्ड की दुनिया में बढ़ती उम्र की महिलाओं के एक नए रास्ते खोले हैं, जरूरी नहीं कि कोई माध्यम अगर किसी महिला को रोजगार नहीं दिला रहा तो वह किसी और तरीके से महिलाओं की जिंदगी में योगदान नहीं दे रहा है। हकीकत यह है कि छोटे स्तर पर ही सही, उम्रदराज महिलाओं को दुनिया से कदमताल रखने के लिए तैयार कर रहा है यह। ऐसे में यंग जनरेशन के लिए बस यह जरूरी है कि वह घर की ऐसी महिलाओं की हौसलाअफजाई करें और उन्हें कुछ बेहतर सिखाने की कोशिश करें, न कि उनका मखौल उड़ाएं। जैसे, जेहन से इस बात को खत्म कर दें कि ये तो बुजुर्ग हैं, हमेशा किचन में रही हैं, इनको क्या सीखा पाएंगे या ये क्या सीख पाएंगी। इस सोच को सबसे पहले खत्म करें और उन्हें बेझिझक करें, सहज महसूस कराएं। धैर्य के साथ उन्हें टिप्स दें, शॉर्ट कट्स बताएं। हो सकता है कि शुरुआत में वे आपको ही अधिक मेसेज करें, तो इसमें उनकी दखल अंदाजी समझने की बजाय, उनकी जिज्ञासा को समझने की कोशिश करें। यही सोचें कि उनका बचपन वापस आया है और आप बड़े हो गए हैं, उन्होंने आपको बचपन में किस तरह सिखाया होगा, अब आपकी बारी है। अगर उनसे गलतियां हो भी जा रही हैं, तो भी उन पर चिल्लाए नहीं। बैंकिंग सिखाते समय उन्हें पासवर्ड और बाकी डिटेल्स को कैसे प्राइवेट रखना है, इन सबके ट्रिक्स समझाएं, ताकि वे कोई गलती न कर बैठें। अगर वे कुछ नया शुरू करना चाहती हैं, तो भी उन्हें सपोर्ट करें, याद रखें, अकेलापन अपने आप में कई बीमारियां लाता है, ऐसे में सोशल मीडिया या ओटीटी से वह खुद को एंगेज रखती हैं, तो यह बड़ी बात है। आप इसे उनकी थेरेपी के रूप में लें। यह भी संभव है कि इन माध्यमों से उनके कोई पुरुष दोस्त बनें, तो इसमें दकियानूसी सोच को हावी न होने दें, बल्कि उनकी मदद करें, ताकि वे एक अच्छा दोस्त ढूंढ पाएं। हर दिन कोशिश करें कि आधा घंटा ही सही, उनके साथ बैठें और उन्हें सोशल मीडिया से अवगत कराएं, बारीकियों और सावधानियों को समझाएं। यकीन मानिए, कई मायनों में एक नयी दुनिया की तलाश कर सकती हैं फिर उम्रदराज महिलाएं। 

विकल्प ही विकल्प हैं 

ऐसी कई उम्रदराज महिला इन्फ्लुएंसर हैं, जो कमाल का काम कर रही हैं, तो कोई स्वयं उद्यमी बन कर, ऑनलाइन के माध्यम से अपने लिए रस्ते और अवसर तालाश रही हैं, हो सकता है कि इस उम्र में आकर आपके परिवार की उम्रदराज महिलाओं को यह महसूस हो कि उनको कुछ नया करना चाहिए, हो सकता है कि संडे किचन जैसा ही वह कुछ शुरू कर दें, ऐसे और भी कई विकल्प हैं, जो तलाशे जा सकते हैं। अपनी चाहतों को उम्रदराज महिलाएं नया आकाश दे सकती हैं। इस बात का भी ख्याल रखें कि जरूरत से ज्यादा एप्स उनके मोबाइल की होम स्क्रीन पर न रखें, ताकि वह कंफ्यूज न हो जाएं। उन्हें सामान्य टिप्स बताने की कोशिश करें और साथ ही इस जल्दबाजी में न रहें कि वह एक ही दिन में सबकुछ सीख जाएं। 

महिला और तकनीक के बारे में भ्रम तोड़ते हैं आंकड़े

अधिक उम्र के जिन लोगों का भी जवाब सामने आया है, उनका कहना है कि तकनीक उनके मानसिक स्वास्थ्य और शांति में सहायता करती है, जबकि मिलेनियल्स के 82% और जेन जेड और 87 प्रतिशत की तुलना में तकनीक उनके मानसिक स्वास्थ्य और शांति में सहायता करती है। इस रिपोर्ट के अनुसार 20 प्रतिशत वरिष्ठ लोग एक दिन में लगभग तीन से चार घंटे सोशल मीडिया पर देते हैं। जानकारों का यह भी मानना है कि वरिष्ठ लोग ऑनलाइन गेम और सामग्री में अधिक रुचि ले रहे हैं। ई-पत्रिकाएं भी इन्हें आकर्षित करने के लिए अच्छा माध्यम बन गई हैं। अब अखबार की जगह ज्ञान और प्रासंगिक वस्तुओं का खजाना भी उन्हें ऑनलाइन पर मिलने लगा है। वरिष्ठ नागरिक अपनी आवश्यकताओं के अनुरूप विभिन्न प्रकार की सेवाओं के साथ-साथ सामाजिक, भावनात्मक, शारीरिक, मनोवैज्ञानिक और आध्यात्मिक कल्याण में समृद्ध जीवन शैली की तलाश में हैं।

महिलाएं हैं अधिक टेक्नो सेवी

एक दिलचस्प बात जो इस शोध से सामने आती है कि तकनीक को लेकर जेहन में पहले पुरुषों की अधिक संख्या की बात आती है, लेकिन शोध के परिणाम के अनुसार जब 60 से अधिक व्यक्तियों की बात आती है, तो महिलाएं अधिक तकनीक-प्रेमी नजर आती हैं । केवल 11% पुरुषों की तुलना में 34% वरिष्ठ महिलाएं फेसबुक, व्हाट्सएप और ट्विटर जैसे प्लेटफॉर्म पर प्रतिदिन चार घंटे से अधिक समय बिताती हैं। सोशल मीडिया पर प्रतिदिन चार घंटे से अधिक समय बिताने वाली 60 से अधिक महिलाओं का प्रतिशत मिलेनियल और जेन जेड पुरुषों (22%) की तुलना में अधिक है और मिलेनियल और जेन जेड महिलाओं (15%) की तुलना में लगभग दोगुना है। बता दें कि केवल 21% पुरुषों की तुलना में, 37% महिलाएं इस बात से पूर्ण रूप से सहमत हैं कि तकनीक उनके मानसिक स्वास्थ्य और शांति में मदद करती है। भले ही दोनों तकनीक से होने वाले लाभों में विश्वास करते हैं, लेकिन  पुरुषों की तुलना में, बुजुर्ग महिलाएं तकनीक पर आधारित या जुड़ी जीवन शैली के लाभों के बारे में अधिक सहज महसूस करती हैं। 

 

 

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