मां के हिस्से में जिम्मेदारी गर्भ में बच्चे के होने से शुरू हो जाती है। अक्सर ऐसा होता है कि बच्चे के जीवन को संवारने की जवाबदेही एक मां को उसके सपनों से दूर कर देती हैं। हालांकि ऐसा करना सही नहीं होता है। अपने सपने को जीना और खुद को आर्थिक तौर पर बल देना हर औरत का अधिकार होता है। इस अधिकार से महिलाएं न चाहते हुए भी कई बार अपना मुंह मोड़ लेती हैं। क्या मां बनने के बाद खुद के पैरों पर खड़ा होना सही फैसला है? इसे लेकर कई महिलाओं ने अपने विचार हमारे साथ साझा किए हैं। आइए जानते हैं विस्तार से।

जेएलेस बेवी महिला ग्रुप की सदस्य वर्षा सक्सेना कहती हैं कि जब बच्चे छोटे थे, तो उनके छोड़ कर जाना और उनका ध्यान रखना और साथ में नौकरी को भी संभालना था। उस समय बहुत मुश्किल लगता था। घर की जिम्मेदारी के साथ ऑफिस की जिम्मेदारी निभाना संघर्ष लगता था। लेकिन अब ऐसा लगता है कि सब ठीक से हुआ। बच्चे बड़े हो गए, तो सफर बहुत अच्छा रहा है। मैंने उस वक्त अपने सपनों को महत्व दिया। लेकिन अपने बच्चों की सही परवरिश को प्राथमिकता दी। वक्त लगा, संघर्ष लंबा रहा। लेकिन आज जब पीछे मुड़ कर देखती हूं, तो सुकून इस बात का है कि मैंने अपने बच्चों को भविष्य को संवारने के लिए खुद के सपनों के साथ समझौता नहीं किया। मैंने खुद को मजबूत बनाया और अपने बच्चों को भी वही संस्कार दिए।

अंजना अग्रवाल बताती हैं कि बचपन से मुझे पढ़ाने का शौक था। ग्रेजुएशन और शादी के बाद यह मेरा फूल टाइम प्रोफेशन हो गया था। लेकिन शादी के बाद मुझे ब्रेक लेना पड़ा। बच्चे जब 10 साल के हुए, तो मैंने स्कूल में पढ़ाना शुरू किया। बच्चों को नौकरी करते हुए संभालना मुश्किल था। मैंने फिर से नौकरी छोड़ दी और फिर घर पर ही ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया। मैं खुश हूं पत्नी औऱ मां होने के साथ अपनी हिंदी क्लासेस और हैंडराइटिंग क्लासेस भी लेती हूं। मैं बहुत खुश हूं कि मैं अपने आप के लिए जीने की शुरुआत कर पाई हूं।

मालती श्रीयन ने अपने बीते दिनों को याद कर कहती हैं कि 23 साल की उम्र में मेरी शादी हुई। फिर मेरी बेटी का जन्म हुआ। मैंने शादी जब तय हुआ था, तब मैंने अपनी नौकरी छोड़ दी है। शादी के तीन महीने पहले मैंने अपना काम छोड़ दिया। शादी के एक साल बाद मैं मां बनीं। मेरी बेटी पल्लवी 2 महीने की थी, तभी मैंने एलआईसी का एजेंसी। इसके साथ मैंने अपनी दिलचस्पी के अनुसार फैशन डिजाइनिंग का कोर्स किया। मैंने अपनी डिजाइन बनाना शुरू किया। अपने कपड़ों को बेचना शुरू किया। पीछे मुड़ कर देखती हूं, तो पाती हूं कि मैंने अपने बच्चों के साथ खुद के जीवन भी प्रकाश लाया है।

डॉ ममता झा ने कामकाजी महिलाओं की चुनौती पर अपने विचार साझा करते हुए कहा है कि मां बनना अपने आप में एक सुखद अनुभूति है, लेकिन उसके लिए अपनी नौकरी छोड़ना और करियर को दांव पर लगाना बुद्धिमता का काम नहीं है। करियर और मां की जिम्नेदारी संभालनके के बाद जीवन साथ मिलकर चलता है, तो सही मायने में आप अपना जीवन जीती हैं और यह बड़ी बात है। हर कामकाजी महिला इस चुनौती को समझती है। और उस चुनौती को लेकर चलते हुए अपने जीवन में आनंद की अनूभुति करती हैं।
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