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आइए संघर्ष की कहानी पढ़ें, लंग कैंसर से जीवन की ओर बढ़ें

रजनी गुप्ता |  फ़रवरी 15, 2025

ब्रेस्ट कैंसर और ओवेरियन कैंसर की जगह बीते 25 सालों में महिलाओं की जिंदगी में लंग कैंसर ने भी जगह ले ली है। हालांकि अब तक माना जाता रहा था कि लंग कैंसर की प्रमुख वजह स्मोकिंग है, लेकिन बीते कुछ सालों में ये बात सामने आई है कि इसकी कई और वजहें भी हैं। आइए जानते हैं कैंसर को मात देनेवाली महिलाओं के साथ लंग कैंसर से जुड़ी खास बातें। 

स्मोकिंग कल्चर और लंग कैंसर

गौरतलब है कि वर्ष 1900 की शुरुआत में, महिलाओं में लंग कैंसर की बीमारी काफी दुर्लभ हुआ करती थी और इसे पुरुषों की बीमारी मानी जाती थी। हालांकि इसकी वजह यह थी कि सामाजिक बंधनों के कारण महिलाएं सार्वजनिक रूप से स्मोकिंग नहीं करती थीं, और तंबाकू का उपयोग समाज में अधिकतर पुरुषों तक सीमित था। इसके अलावा मेडिकल फिल्ड की बात करें तो लंग कैंसर से जुड़ी अधिक जानकारी भी उपलब्ध नहीं थी, और इसे अक्सर तपेदिक (टीबी) या फेफड़ों से जुड़ी अन्य बीमारियां समझ ली जाती थीं। लेकिन वर्ल्ड वॉर 2 के दौरान जब महिलाएं भी स्मोकिंग करने लगीं तो वर्ष 1940 के दशक में अमेरिका में टोबैको कंपनियों ने महिलाओं को अपना टार्गेट कस्टमर बनाते हुए सिगरेट को ‘आजादी’ और ‘समानता’ का प्रतीक बनाकर पेश करना शुरू कर दिया। आखिरकार वही हुआ, जैसा वे चाहते थे और महिलाएं लगातार सिगरेट की तरफ आकर्षित होती चली गईं। 1950 के दशक में, पहली बार वैज्ञानिकों ने अपने रिसर्च में स्मोकिंग और लंग कैंसर के बीच सीधा संबंध स्थापित किया।

महिलाओं में लंग कैंसर के बढ़ते मामले 

हालांकि अब तक पुरुषों में नजर आनेवाले लंग कैंसर के लक्षण महिलाओं में भी नजर आने लगे थे और 1970 के दौरान महिलाओं में लंग कैंसर के मामले तेजी से बढ़ने लगे। हुआ यूं कि वर्ष 1987 में, ब्रेस्ट कैंसर की तुलना में लंग कैंसर महिलाओं की मृत्यु का प्रमुख कारण बन गया और इसने अधिक से अधिक महिलाओं की जान लेनी शुरू कर दी। हालांकि इसी दौरान, ‘पैसिव स्मोकिंग’ यानी दूसरों के कारण सिगरेट धुएं के संपर्क में आनेवालों के लिए भी खतरे उजागर हुए, जिससे यह बात समझ आई कि न सिर्फ स्मोकिंग करने वाली, बल्कि उनके आसपास रहने वाली महिलाओं को भी लंग कैंसर का खतरा हो सकता है। तभी वर्ष 2000 के करीब लंग कैंसर से जुड़ी लगातार हो रही रिसर्च में यह बात भी सामने आई कि स्मोकिंग के मामलों में महिलाओं के फेफड़े, पुरुषों की तुलना में अधिक सेंसिटिव होते हैं, जिससे वे जल्दी लंग कैंसर का शिकार हो जाती हैं। हालांकि इसी दौरान स्मोकिंग करनेवाली महिलाओं के साथ स्मोकिंग न करनेवाली महिलाओं में भी लंग कैंसर के मामले बढ़ने लगे और पैसिव स्मोकिंग के साथ वायु प्रदूषण, रेडॉन गैस का संपर्क, अनुवांशिक कारण (पारिवारिक कैंसर हिस्ट्री) और एस्ट्रोजन के कारण हार्मोंस में बदलाव शामिल होते चले गए। 

स्मोकिंग के अलावा लंग कैंसर की वजह

हालांकि महिलाओं को होने वाले दूसरे कैंसर की तरह लंग कैंसर के मामलों में भी कीमोथेरेपी और रेडिएशन थेरेपी से सुधार हुआ, लेकिन असली सफलता इम्यूनोथेरेपी और टार्गेटेड थेरेपी जैसी नई उपचार विधियों से मिली। स्मोकिंग के कारण लंग कैंसर में हो रही बढ़ोत्तरी का परिणाम था कि स्मोकिंग को लेकर कई देशों ने सख्त कानून लागू किए, जिसमें सार्वजनिक स्थानों पर स्मोकिंग पर रोक लगाई गई। साथ ही ‘क्विट स्मोकिंग’ जैसे अभियानों ने भी महिलाओं को जागरूक किया, जिससे महिलाओं में स्मोकिंग की दर घटी, लेकिन वायु प्रदूषण के साथ दूसरे कारणों से स्मोकिंग करनेवाली महिलाओं में लंग कैंसर के मामले बढ़ते रहे। आज, महिलाओं में सबसे आम लंग कैंसर ‘एडेनोकार्सिनोमा’ है, जो अक्सर नॉन-स्मोकर्स को प्रभावित करता है। हालांकि नए बायोमार्कर और जीन परीक्षण के कारण, महिलाओं में लंग कैंसर का पहले से बेहतर निदान किया जा रहा है और टीकाकरण के साथ दूसरे निवारक उपायों पर अधिक ध्यान देते हुए इस बीमारी से बचने की कोशिश की जा रही है। आज कई ऐसी महिलाएं हैं, जो अपने कैंसर पर विजय पाकर एक खुशहाल जिंदगी जी रही हैं।

स्टेज 4 के लंग कैंसर को हराकर मैराथन दौड़नेवाली कुसुम

हालांकि सभी इतनी खुशकिस्मत नहीं होतीं। कुछ कुसुम मलिक तोमर जैसी भी होती हैं, जो खुद को जलाकर दूसरों की राहें रोशन कर जाती हैं। मैराथन दौड़ने का सपना देखनेवाली कुसुम मलिक तोमर को वर्ष 2012 में स्टेज 4 का लंग कैंसर डिटेक्ट हुआ था और वे पैरालाइज्ड हो गईं थीं। हालांकि ये दौर उनके पति विवेक तोमर और 3 वर्षीय इकलौते बेटे के लिए बेहद मुश्किलों भरा था। डॉक्टरों के अनुसार उनके पास जीवित रहने के लिए सिर्फ छः महीने का समय था, लेकिन अपने साहसी इरादों और हौंसलों से वे न सिर्फ 7 वर्ष तक जिंदा रहीं, बल्कि मैराथन भी दौड़ी। हालांकि वर्ष 2019 में उनकी मृत्यु हो गई, लेकिन जाने से पहले अनगिनत कैंसर कैंपेन के जरिए वे ये संदेश दे गई कि यदि वे स्टेज 4 के कैंसर को मात दे सकती हैं, तो दूसरे क्यों नहीं। 

जिंदगी को नहीं, कैंसर को हराया निशा मिश्रा ने

इसी तरह माउथ कैंसर पर विजय पा चुकीं निशा मिश्रा भी जिंदगी को हर बीमारी से ऊपर मानती हैं। वर्तमान समय में अपने तीन बच्चों के साथ सास-ससुर की सेवा में लगी निशा मिश्रा कहती हैं, “वर्ष 2012 में जब मुझे मेरे डॉक्टर ने बताया कि मुझे माउथ कैंसर हुआ है, तो मेरे पैरों तले जमीन निकल गई। हालांकि बीस साल पहले जब मुझे टीबी की बीमारी हुई थी, तब से मुझे फेफड़े की शिकायत है, लेकिन कैंसर बहुत बड़ी बात थी हम सबके लिए। मेरी तो समझ में ही नहीं आ रहा था कि अगर मुझे कुछ हो गया तो मेरे तीन छोटे-छोटे बच्चों का क्या होगा। अंदर-ही-अंदर मैं परेशान थी, लेकिन घर में बच्चों के सामने मुस्कुराती थी, कि वे निराश न हों। हालांकि मैंने फैसला कर लिया था कि चाहे जो हो जाए मुझे ठीक होना है और मैंने भायखला में कैंसर के लिए प्रसिद्ध डॉक्टर गोरे से ट्रीटमेंट लेना शुरू किया। लगभग छः महीने तक चले कीमोथेरेपी और रेडिएशन का वो दौर मेरे लिए काफी मुश्किलों भरा था, क्योंकि वहां से लौटकर मुझे घर का काम करने के साथ बच्चों को भी संभालना होता था। पूरे परिवार का मॉरल सपोर्ट मेरे साथ था, लेकिन शारीरिक तकलीफ सिर्फ मेरी थी। मैं बहुत रोती थी, लेकिन फिर अपने आपसे कहती थी कि मुझे जिंदगी को नहीं, बल्कि कैंसर को हराना है। ये मेरा और मेरे परिवार का भरोसा है कि मैं आज भी हूं और काफी स्वस्थ हूं। हालांकि इस दौरान बहुत कुछ बातें सुनी मैंने। जो मुझे जानते हैं, उन्होंने मुझसे कभी ऐसा कुछ नहीं कहा, लेकिन जो नहीं जानते वो मुझसे पूछते थे कि क्या मैं गुटखा-तंबाकू खाती हूं? मैं उन्हें शांति से न कह देती लेकिन सोचती कि ये कैसी सोच है लोगों की।”

एक्सपर्ट की राय

इस सिलिसिले में डॉक्टर बीनू एंथनी का कहना है “महिलाओं में लंग कैंसर एक सीरियस हेल्थ इश्यू है, जिसका इलाज सर्जरी, कीमोथेरेपी और रेडिएशन के साथ अन्य उपचारों से किया जा सकता है। वैसे पुरुषों की तुलना में महिलाओं के लिए अच्छी बात यह है कि उनके पास ट्रीटमेंट के कई ऑप्शंस के साथ बेटर रिस्पॉन्सिव बॉडी है। फिर भी उन्हें चाहिए कि यदि वे स्मोकिंग करती हैं तो न करें और दूसरों को भी समझाएं। हालांकि कुछ महिलाएं ऐसी भी हैं जो स्मोक नहीं करतीं, फिर भी लंग कैंसर का शिकार हो जाती हैं। उन्हें सावधानी रखने की जरूरत है। इसके अलावा मैं यही कहूंगी कि यदि लंग्स से जुड़ी कोई परेशानी आ रही हो तो उसे अनदेखा न करें, बल्कि जल्द से जल्द अपने डॉक्टर से कॉन्टैक्ट करें।”

 

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