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कुनबी समुदाय की परंपरा का प्रतीक हैं कुनबी साड़ियां

रजनी गुप्ता |  अगस्त 24, 2024

संस्कृति, व्यवहार और आचार-विचार से जुड़े परिधान भारतीय परिवेश को न सिर्फ उजागर करते हैं, बल्कि उनकी पहचान को भी संजोकर रखते हैं। इसी कड़ी में आइए जानते हैं गोवा की कुनबी हैंडलूम साड़ियों के बारे में।

गोवा की श्रमिक महिलाओं के लिए थी सुविधाजनक 

चावल की खेती से संबंध रखनेवाली गोवा की दो मूल जनजातियां कुनबी और गौड़, गोवा की पहाड़ी इलाकों के आस-पास रहती थी। विशेष रूप से अपने कपड़े गंदे किए बिना, घरेलू कामों और खेती में अपना पूरा योगदान देनेवाली इस समुदाय की स्त्रियां ऐसी साड़ियां पहनती थीं, जो लंबाई में छोटी हों और कुनबी साड़ियां इस पर खरी उतरती थीं। आज समय के साथ इनका उपयोग काफी कम हो चुका है, किंतु इन आदिवासी समूहों की संस्कृतियों की याद दिलाती हैंडलूम साड़ियां, कुनबी साड़ियों के नाम से इतिहास में दर्ज हो चुकी हैं। हालांकि लाल चेक वाली ये चमकदार साड़ियां, ग्रामीण गोवा की कुछ कृषक और श्रमिक महिलाओं द्वारा अभी भी पहनी जाती हैं, लेकिन इनकी संख्या बेहद कम हैं। परंपरागत रूप से सिर्फ लाल और सफेद रंगों से बुनी यह साड़ियां, आज समय के साथ कई रंगों में उपलब्ध हैं। गोवा की शहरी महिलाओं द्वारा अब ये साड़ियां विशेष अवसरों या लोक प्रदर्शन के लिए ही पहनी जाती है। 

जीवन की जीवंतता का प्रतीक हैं कुनबी साड़ियां 

गौरतलब है कि कुनबी साड़ियों में इस्तेमाल किये गए रंग जीवन का प्रतिक रहे हैं, जैसे लाल रंग प्रजनन शक्ति के साथ जीवन की जीवंतता का प्रतिक है। दिलचस्प बात यह है कि यह रंग गोवा के जंगलों में पाए जानेवाले एक जापानी फल से लिए जाते थे। पीली कुनबी साड़ियों के लिए हल्दी का प्रयोग किया जाता था, जो विशेष रूप से विधवा औरतें पहनती थी। जैविक रूप से प्राप्त होनेवाले इन रंगों के कारण, यह साड़ियां त्वचा के लिए काफी फायदेमंद मानी जाती थी। महाराष्ट्रियन नऊवारी (9 गज) साड़ियों के मुकाबले, कुनबी साड़ियां, महिला की कद-काठी अनुसार बनाई जाती थी। कद-काठी से मजबूत सुगठित औरतों के लिए 10 वारी यानी 10 गज की साड़ी बनती थी, तो छोटी महिलाओं के लिए चावरी यानी चार गज की छोटी चौड़ाई की साड़ियां बनती थी। इन साड़ियों के साथ फूलों की वेणियों (गजरा) से सजे उनके जूड़े और माथे पर चमकती बिंदी महिलाओं के सौंदर्य को दोगुना कर देती हैं।

सादगी से भरपूर इन साड़ियों के  पैटर्न 

Image Courtesy : @pinterest.com

सादगी से भरपूर इन कुनबी साड़ियों में केवल चौकोर और चेक के पैटर्न होते हैं, जो समुदाय-दर-समुदाय अलग होता है। जैसे ईसाई गौड़ा समुदाय की महिलाएं बड़े चौकोर की साड़ियां पहनती हैं, तो अन्य जनजातियों की महिलाओं के लिए छोटे चौकोर की साड़ियां थीं। धार्मिक अनुष्ठानों का हिस्सा रही ये कुनबी साड़ियां, शिग्मो उत्सव के दौरान मार्च-अप्रैल में होनेवाले वीरभद्र अनुष्ठान का अभिन्न हिस्सा रही हैं। इस समुदाय की ऐसी मान्यता रही है कि शुद्धता, पवित्रता, शुभता और शक्ति से भरपूर इस कपड़े के बिना देवताओं को प्रसन्न नहीं किया जा सकता। सिर्फ यही नहीं धार्मिक अनुष्ठानों के साथ ढालो और फुगड़ी जैसे नृत्यों के लिए भी चेरी लाल कुनबी साड़ियां बहुत जरूरी थीं। गौरतलब है कि 1940 के दशक तक यह साड़ियां, बिना ब्लाउज के पहनी जाती थीं, लेकिन पुर्तगाली सरकार द्वारा एक कानून के तहत ब्लाउज पहनना अनिवार्य हो गया। 

कुनबी साड़ियों के बुनकरों का कोई रिकॉर्ड नहीं 

गोवा में बसा कुनबी समुदाय 11वीं शताब्दी के दौरान गुजरात के रास्ते खानदेश में आए और खेती करके अपना भरण-पोषण करने लगे। हालांकि राजपूतों के कारण यह क्षेत्र छोड़कर वे नागपुर, बरार और वर्धा में बस गए। गोवा के साथ पूरे भारत में बस चुका यह समुदाय भारत के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है, जैसे दक्षिण में इन्हें कुनबी या कुलंबी तो दक्षिण कोंकण में कुलवाड़ी, गुजरात में कनबी तो बेलगाम में कुल्बी कहा जाता है। ये अफसोस की बात है कि अपनी सभ्यता के लिए अलग पहचान रखनेवाली इन कुनबी साड़ियों के बुनकरों का कोई रिकॉर्ड, इतिहास में दर्ज नहीं है, जिन्होंने पहली बार इन साड़ियों को बुना था। हालांकि कुछ जानकारियों के अनुसार 1930 से 1950 के दौरान इन साड़ियों के व्यापार पर कैंडोलिम के शेट्टीगार, बस्तोरा के रस्किन्हास और कामत, इन तीन परिवारों का एकाधिकार हुआ करता था।   

गोवा की बजाय दक्षिण भारतीय बुनकर बनाते हैं अब 

image coutersy : @ kunbi.co.in

पहले इन कुनबी साड़ियों के रंग जापान में बनाए जाते थे, जिन्हें पुर्तगाली आयात करते थे। इससे बुनकरों को कच्चे माल के साथ प्रोत्साहन भी मिलता था, लेकिन 1950 में जब भारत ने पुर्तगालियों से गोवा को छीनकर उस पर कब्जा कर लिया, तो बुनकरों ने कर्नाटक में कच्चे माल की तलाश शुरू कर दी। हालांकि समय के साथ सस्ते रेडीमेड कपड़ों ने हाथ से बुनी यह साड़ियां बाजार गायब कर दी। आज आलम यह है कि गोवा में कुनबी साड़ी बुननेवाला कोई बुनकर मौजूद नहीं है। इन साड़ियों की बुनाई अब दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों में की जाती हैं। हालांकि कुनबी साड़ियों की सभ्यता को पुनर्जीवित करने के लिए गोवा के फैशन डिजाइनर वेंडेल रॉड्रिक्स ने 2000 के दशक में काफी प्रयास किया था, जिसके लिए उन्हें वर्ष 2014 में पद्म श्री से सम्मानित भी किया गया था। 

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