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हिंदी कविताओं से सदाबहार रहा है, हिंदी साहित्य का चेहरा

टीम Her Circle |  जनवरी 24, 2024

हिंदी कविता और हिंदी का नाता अटूट रहा है। यह माना जाता है कि साहित्य की पहली कलम जब भी चली थी, तो उससे सबसे पहले कविताओं की रचनाएं ही की गई थीं। कई ऐसे लेखक रहे हैं, जो कि अपने मन के भावों को पन्नों पर उतारने के लिए कविता की दो पंक्ति का सहारा लेते थे। आइए इस बातचीत को आगे बढ़ाते हुए हिंदी साहित्य में कविताओं का अमूल्य योगदान देने वाले कवियों के बारे में जानते हैं विस्तार से।

सुभद्रा कुमारी चौहान 

कविताओं का जिक्र हो और सुभद्रा कुमारी चौहान की बात न हो, भला ऐसा कैसे हो सकता है। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की प्रमुख कवयित्रियों में से एक रही हैं, सुभद्रा कुमारी चौहान। उन्होंने अपनी कविताओं के जरिए स्वतंत्रता संग्राम में अपना प्रमुख योगदान दिया था। उनकी प्रमुख कविताओं की बात की जाए, तो ‘झांसी की रानी’, ‘मेरा नाम’, ‘राख की रस्मी’ और ‘वीरांगना’ उनकी प्रमुख कविताओं में से एक हैं। उनकी कविताओं में राष्ट्र प्रेम के साथ नारी सम्मान की भावनाओं की झलक साफ तौर पर दिखाई देती है। उनका जन्म 16 अगस्त , 1904 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद ( प्रयागराज) में हुआ था। उनकी कई सारी कविताओं में से एक कविता यहां पढ़ें। 

वीरों का कैसा हो वसंत

आ रही हिमालय से पुकार

है उदधि गरजता बार बार

प्राची पश्चिम भू नभ अपार

सब पूछ रहे हैं दिग-दिगन्त

वीरों का कैसा वसंत…

महादेवी वर्मा

महादेवी वर्मा की कविता ने ऐसा जादू बिखेरा कि उन्हें आधुनिक युग की मीरा भी कहा जाता है। अपनी कविता के लिए उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है। ‘यह मंदिर का दीप’, ‘जो तुम आ जाते एक बार’, ‘मैं नीर भरी दुख की बदली’, मैं अनंत पथ में लिखती जो, महादेवी वर्मा की लोकप्रिय कविताएं हैं। यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि महादेवी वर्मा की काव्य यात्रा आज की पीढ़ी के कई लेखकों के लिए प्रेरणा है। महादेवी वर्मा की कई सारी कविताओं में से एक कविता यहां पढ़ें। 

मधुबेला है आज

अरे तू जीवन-पटल फूल, 

आई दुख की रात मोतियों की देने जयमाल, 

सुख की मंद बतास खोखली पलकें देदे ताल, डर मत रे सुकुमार, 

तुझे दुलराने आये शूल, 

अरे तू जीवन-पाटल फूल, 

भिक्षुक सा यह विश्व खड़ा है पाने करुणा प्यार, 

हंस उठ रे नादान खोल दे पंखुरियों के द्वार, 

रीते कर ले कोष नहीं कल सोना होगा धूल। 

अरे तू जीवन-पाटल फूल। 

अनामिका

बिहार की रहने वालीं अनामिका में लिखने और पढ़ने का शौक बचपन से ही था। उनका पहला काव्य-संग्रह ‘गलत पत्ते की चिट्ठी’ को 1978 में प्रकाशित किया गया। उनकी प्रमुख कविताओं के नाम इस प्रकार है- ‘बीजाक्ष’र, कविता ‘मैं औरत खुरदरी हथेलियां’ और दूब-धान आदि। अनामिका ने अपनी कविताओं में घर की रसोई में काम करने वालीं महिलाओं के साथ खेती का हिस्सा रहीं महिलाओं के जीवन का भी वर्णन बखूबी किया है। साल 2021 में उन्हें ‘टोकरी में दिगंत’ नामक काव्य संग्रह के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार भी प्रदान किया गया। अनामिका की कई सारी कविताओं में से एक कविता यहां पढ़ें। 

पढ़ा गया हमको

पढ़ा गया हमको, जैसा पढ़ा जाता है कागज, बच्चों की फटी कापियों का, चनाजोर गर्म के लिफाफे बनाने के लिए, देखा गया हमको, जैसे की कुफ्त हो उनींदे, देखी जाती है कलाई घड़ी अलस्सुबह अलार्म बजने के बाद,सुना गया हमको यों ही उड़ते मन से, जैसे सुने जाते हैं फिल्मी गाने, भोगा गया हमको बहुद दूर के रिश्तेदारों के दुख की तरह, एक दिन हमने कहा, हम भी इंसान है।

भवानी प्रसाद मिश्र  

भवानी प्रसाद मिश्र उन गिने-चुने कवियों में थे, जो कविता को ही अपना धर्म मानते थे और आम जनों की बात उनकी भाषा में ही रखते थे। भवानी प्रसाद मिश्र  पुस्तक ‘बुनी हुई रस्सी’ के लिए उन्हें 1972 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। भवानी प्रसाद मिश्रा विचारों और कर्मों में गांधीवादी थे। अपनी कविताओं के जरिए उन्होंने आम-सी भाषा में सबक और सीख वाली बातें लिखी हैं, जिसका अनुसरण हमेशा किया जाता है। उनकी एक कविता आप भी पढ़ें।

जीभ की जरूरत नहीं है

जीभ की जरूरत नहीं है

क्योंकि

कहकर या बोलकर

मन की बातें जाहिर करने की

सूरत नहीं है

हम

बोलेंगे नहीं अब

घूमेंगे-भर खुले में

लोग आँखें देखेंगे हमारी

आँखें हमारी बोलेंगी

बेचैनी घोलेंगी

हमारी आँखें

वातावरण में

जैसे प्रकृति घोलती है

प्रतिक्षण जीवन

करोड़ों बरस के आग्रही मरण में

और सुगबुगाना पड़ता है उसे

संग से शरारे

छूटने लगते हैं

पहाड़ की छाती से

फूटने लगते हैं झरने !

अमृता प्रीतम 

अमृता प्रीतम कहानीकार होने के साथ कवयित्री भी रही हैं। अमृता प्रीतम की कविताओं में महिला सशक्तिकरण और सामाजिक मुद्दों की जलती हुई आग दिखाई पड़ती थी। अमृता प्रीतम की प्रमुख कविताओं में ‘कागज तेरे नाम’, ‘पिंजर’,  और ‘आधा उजाला’ आदि शामिल हैं। अमृता प्रीतम ने अपनी कविताओं में अपने खुद के व्यक्तिगत अनुभवों और जीवन को शामिल किया, जो कि आज भी कई महिलाओं के लिए प्रेरणा बन चुकी हैं। यहां पढ़ें उनकी कई सारी कविताओं में से एक कविता

मेरा पता

आज मैने 

अपने घर का नंबर मिटाया है

और गली के माथे पर लगा 

गली का नाम हटाया है

और हर सड़क की

दिशा का नाम पोंछ दिया है

पर अगर आपको मुझे जरूर पाना है

तो हर देश के, हर शहर की, 

हर गली का द्वार खटखटाओ

यह एक शाप है, यह एक वर है.

और जहां भी

आज़ाद रूह की झलक पड़े

समझना वह मेरा घर है 

 

 

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