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ये हैं सिंगल मां के कानूनी अधिकार

टीम Her Circle |  मई 31, 2024

सिंगल मदर यानी अकेले अपने बच्चे की देखभाल और परवरिश करना एक मां की बड़ी जिम्मेदारी है, आइए जानते हैं विस्तार से कि भारत में सिंगल मदर को लेकर क्या-क्या कानून बने हैं।

क्या कहते हैं आकड़े 

संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में करीब 4.5 प्रतिशत ऐसे हैं परिवार हैं, जिनकी कमान सिंगल मदर्स ने बखूबी संभाल रखी है। बता दें कि रिपोर्ट के अनुसार देश में लगभग 13 मिलियन सिंगल मदर्स हैं, जिनका परिवार पूरी तरीके से सिर्फ और सिर्फ उन पर निर्भर करता है। साथ ही यह भी बात सामने आई है कि 32 मिलियन सिंगल मदर्स ऐसी हैं, जो संयुक्त परिवार में रह रही हैं। यह आंकड़ा दिखाता है कि भारत में अकेली मांओं की संख्या अच्छी खासी है। लेकिन अच्छी बात यह है कि यहां सिंगल मॉम के लिए काफी संरक्षण का अधिकार भी है।

संरक्षकता का अधिकार

 

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि सामान्यतः पांच वर्ष की आयु तक मां बच्चे की स्वाभाविक संरक्षक होती हैं, लेकिन उसके बाद पिता ही स्वाभविक रूप से संरक्षक होता है। इसके अलावा, पिता की मृत्यु के बाद, मां को पूर्ण संरक्षकता अधिकार प्रदान किया जाता है। संरक्षकता और वार्ड अधिनियम वर्ष 1890 और हिंदू अल्पसंख्यक और संरक्षकता अधिनियम और 1956 (एचएमजीए), दो प्रमुख अधिनियम हैं, जो माता-पिता या किसी अन्य व्यक्ति के संरक्षकता के अधिकार को विनियमित करते हैं। एचएमजीए की धारा 6 में कहा गया है कि विवाहित जोड़े के मामले में पिता बच्चे का स्वाभाविक संरक्षक है और पिता के बाद मां का अधिकार मान्यता प्राप्त है। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने "नाजायज" शब्द के इस्तेमाल को रद्द कर दिया, क्योंकि किसी भी बच्चे को नाजायज नहीं माना जाना चाहिए।

जन्म देने का अधिकार 

सिंगल मां यानी एकल मां को हर हाल में अपने बच्चे को जन्म देने का अधिकार है। अगर कोई महिला गर्भवती है, तो उसकी मर्जी के बिना कभी भी अबॉर्शन नहीं कराया जाना चाहिए। अगर कोई जबरदस्ती उनके साथ ऐसा करता है, तो उन्हें आईपीसी की धारा 313 की तरफ से सजा का प्रावधान है। साथ ही दोषी पाए जाने पर 10 साल तक की जेल हो सकती है। 

बच्चे का सरनेम 

अगर कोई महिला सिंगल मदर है और वो अपने बच्चे के साथ अगर पिता का नाम नहीं जोड़ना चाहती है, तो उसे इसके लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है। केरल हाई कोर्ट ने यह फैसला दिया था। हर सिंगल मां को हक है कि वह अपने बच्चे का सरनेम रख सकती हैं। बच्चे के जरूरी दस्तावेजों पर महिला के हस्ताक्षर मान्य होंगे। 

निजता का अधिकार

भारत में एकल माताओं से जुड़ी यह जानकारी तो आपको होनी ही चाहिए कि एकल माताओं को निजता का अधिकार दिया जाता है, अगर वे बच्चे के पिता के नाम का खुलासा नहीं करना चाहती हैं, तो उन्हें इसके लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है। बता दें कि आर राजगोपाल बनाम तमिलनाडु राज्य और अन्य के मामले में यह माना गया था कि "निजता का अधिकार इस देश के नागरिकों को अनुच्छेद 21 द्वारा गारंटीकृत जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार में अंतर्निहित है। उन्हें "अकेले रहने का पूर्ण अधिकार" है। कानून मानता है कि एक मां अपने बच्चे के लिए क्या अच्छा है, क्या नहीं, पूर्ण रूप से जानती हैं। ऐसे में अगर पिता के नाम का खुलासा करने से बच्चे का कल्याण प्रभावित होता है, तो इसका खुलासा न करने का उनको हक है।

*All pictures are used for representation purpose only

 

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