यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि भारत में महिलाएं सस्टेनेबल कला और कार्य के क्षेत्र में खास भूमिका निभाती रही हैं। महिलाएं खासतौर पर सामाजिक रूप से जिम्मेदार व्यवसायों की अगुआई भी करती रही हैं। यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि सस्टेनेबल कला को जीवित रखने में महिलाओं की भूमिका अतुलनीय रही है। दादी और नानी के जमाने से महिलाएं खेती करने और घर का काम संभालने के साथ बुनाई का काम करती रही हैं। मिट्टी के खिलौने बनाने से लेकर कपड़े का पंखा बनाने तक। महिलाओं ने हमेशा से ही सस्टेनेबल कला और कार्य के पीछे अपनी साफ और बड़ी भूमिका रखी है। आइए जानते हैं इस संबंध में विस्तार से।
महिलाओं ने कैसे पारंपरिक हस्तकला और कारीगर को जीवित रखा

महिलाओं ने पीढ़ी दर पीढ़ी कला से जुड़े अपने ज्ञान को फैलाया है। महिलाओं ने पारंपरिक कढ़ाई, बुनाई, बुनकर कला, मिट्टी के बर्तन , मधुबनी कला और आदि कला के जरिए अपनी कला को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचाया है। यह बिल्कुल मां के हाथ के स्वाद की तरह है, जो कि नानी से मां की रसोई और मां की रसोई से बेटी की रसोई तक पहुंचा है।
महिलाओं ने बनाया घरेलू उद्योग

सस्टेनेबल बिजनेस के जरिए महिलाओं ने खुद के लिए रोजगार के अवसर खोज निकाले हैं।कई ग्रामीण और शहरी इलाकों में महिलाएं स्वरोजगार समूह बनाकर कारीगरी को व्यवसाय का रूप देती हैं। वे अपने घरों में ही हस्तकला का काम कर उत्पाद बनाती हैं, जिससे पारंपरिक शिल्प जीवित रहता है और आर्थिक लाभ भी होता है। साथ ही इससे एक नहीं बल्कि कई महिलाओं को रोजगार मिलता है।
गांव के मेले और प्रदर्शनी में भागीदारी

पहले जहां महिलाओं की कला केवल घर की चारदीवारी को सजाती रही है, वहीं महिलाओं ने अपनी कला को मंच देने का फैसला किया और महिलाएं राज्य और राष्ट्रीय स्तर के मेलों में भाग लेकर अपने उत्पाद को बेचने का काम करती है और खुद को आर्थिक तौर पर मजबूत करती रही हैं। इससे कहीं न कहीं उनकी कला को पहचान मिली है और समाज में उन्हें प्रबल वर्ग में शामिल किया गया है। आप देश में घूमकर किसी भी मेले का हिस्सा बन जाइए, आपको बुनकर साड़ी, डेकोरेशन आइटम, कपड़े का पंखा, बिछोना के साथ फैशन से जुड़े कई स्टाइलिश सस्टेनेबल प्रोडक्ट आसानी से मिल जाते हैं।
कच्चे माल का उपयोग

घर के सामान में बेकार पड़ी चीजों को महिलाओं ने खास स्थान दिया है। कच्चे और बेकार पड़े हुए सामानों का उपयोग कर नई चीज को जन्म दिया है। महिलाएं पारंपरिक तकनीकों के साथ स्थानीय और प्राकृतिक संसाधनों (जैसे सूती कपड़ा, प्राकृतिक रंग, बाँस, पत्ते) का उपयोग करती हैं, जिससे शिल्प की मौलिकता बनी रहती है।
आधुनिक तकनीक और डिजाइन के साथ तालमेल

महिलाओं ने बदलते वक्त के साथ डिजिटल युग के साथ खुद को भी काफी बदला है। कई महिलाओं ने पारंपरिक हस्तकला को आधुनिक डिजाइनों और फैशन के साथ जोड़ते हुए बाजार के कदम से कदम मिलाते हुए आगे बढ़ रही हैं। विदेश में भी उनके बनाए गए सामान की मांग भी बढ़ रही है और आनलाइन शाँपिंग के जरिए इसे पहुंचाया भी जा रहा है।जैसे – मधुबनी कला को आज कपड़ों, बैग आदि पर देखा जा सकता है।
हमारे देश की महिलाएं और उनकी कला
आपको बता दें कि हर राज्य की महिलाओं की कला वहां की संस्कृति का बखान करती रही है। राजस्थान की महिलाएं लहरिया,बंधेज और कठपुतली कला में निपुण हैं। बिहार की महिलाएं मधुबनी चित्रकला की परंपरा को सहेज कर रखने में सफल हुई हैं। उत्तर प्रदेश में चिकनकारी और जरदोजी का काम महिलाएं आज भी करती हैं। दूसरी तरफ नागालैंड और असम की महिलाओं ने पारंपरिक बुनाई को आज भी जीवित रखा हुआ है।