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हिंदी भाषा का विकास के बारे में जानें विस्तार से

टीम Her Circle |  जनवरी 20, 2024

हिंदी भाषा को भारतीय अस्मिता की भाषा माना जाता है और हो भी क्यों न हिंदी हैं हम और वतन हिंदुस्तान है हमारा। जी हां, हिंदी एक ऐसी मात्र भाषा है जो कि किसी भी देश या फिर राज्य में अपना वर्चस्व जरूर दिखाती है। जब आप विदेश जाते हैं, तो हिंदी को सबसे मीठी बोली में गिना जाता है, वहीं देश में हिंदी देश की गौरव भाषा है। यहां पर मराठी बोलने वाला भी हिंदी बोलता है। गुजराती, तमिल, तेलुगू  से लेकर हर प्रांत से जुड़े लोग हिंदी को अपनी भाषा मानते हैं। हिंदी भाषा का इतिहास भी एक हजार साल पुराना है। साहित्य में हिंदी ने खुद को कई तरह से पुख्ता और लोकप्रिय किया है, हालांकि हिंदी भाषा का विकास साल 1800 के दौरान अंग्रेजी द्वारा कलकत्ता में स्थापित फोर्ट विलियम कॉलेज से शुरू हुआ, जहां पर पहली बार हिंदी में अनुवाद किए गए। इसके साथ ही हिंदी को गद्य का स्वरूप दिया गया। इसी के साथ हिंदी ने विकास की तरफ अपना कभी न खत्म होने वाला सफर शुरू किया और सतत खुद को प्रगति पथ पर आगे बढ़ाया। आइए विस्तार से जानते हैं हिंदी भाषा के विकास के बारे में।

हिंदी भाषा के विकास की तीन धाराएं

हिंदी भाषा का विकास तीन काल में हुआ है। सबसे पहले आदिकाल। यह समय देश में तब था, जब धर्म के साहित्य ने अपना वर्चस्व बना रखा था। आदिकाल में हिंदी भाषा कई तरह से कोशिश करके अपनी जगह को तलाश रही थी, खुद को भाषाओं की दुनिया में खड़ा करने के लिए निरंतर संघर्ष कर रही थी। इसके बाद बारी आती है, आधुनिक काल की और मध्य काल में भी हिंदी ने अपनी पहचान तलाशने की शुरुआत की। 

जानिए कैसा रहा है -हिंदी का मध्यकाल 

यह जान लें कि हिंदी भाषा का मध्यकाल 15 वीं से 19 वीं सदी तक के वक्त हिंदी भाषा का मध्यकाल कहा जाता है। इस वजह से अंग्रेजों के कारण तुर्की, अरबी, फारसी, पुर्तगाली, फ्रांसीसी, स्पेनी और अंग्रेजी के साथ अन्य भाषाओं के शब्द भी हिंदी में इस्तेमाल किए जाने लगें, हालांकि इस युग में हिंदी ने साहित्य में अपनी जगह को पूरी तरह से स्थापित कर दिया। 20 वीं सदी में मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, माखनलाल चतुर्वेदी, मैथलीशरण गुप्त, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, सुमित्रानंदन पंत और अन्य रचनाकारों ने हिंदी को साहित्य में विस्तार देने के साथ हिंदी भाषा के कद को भी बढ़ाया। 

हिंदी भाषा का आधुनिक रूप

अठारवीं शताब्दी के अंत में और उन्नीसवीं शताब्दी के शुरुआत में हिंदी भाषा का आधुनिक रूप कई तरह से देखने को मिला। अंग्रेजों ने इस दौरान अपने धर्म प्रचार और लोगों से जुड़ने के लिए फोर्ट विलियम कॅालेज की स्थापना की, हालांकि हिंदी को स्वरूप मिलने में वक्त लगा। साल 1850 के करीब हिंदी भाषा को आगे बढ़ने के लिए दिशा दिखाई देने लगी। भारतेंदु हरिशचंद्र, महावीर प्रसाद द्विवेदी और उनके बाद के सभी रचनाकारों ने हिंदी को साहित्य में प्रवेश दिया। कई कविताएं और कहानियां हिंदी भाषा में लिखी जाने लगीं। 

आजादी के बाद और आजादी के दौरान हिंदी भाषा का विकास

आजादी के दौरान हिंदी भाषा का विकास तेजी से गति पकड़ने लगा। आजादी से जुड़े नारों से लेकर क्रांति लाने तक यहां तक कि देशभक्ति गीतों में भी हिंदी दिखाई दी। आम लोगों तक पहुंचने और उनसे संवाद करने के लिए हिंदी सबसे सरल और सहज भाषा के तौर पर विकसित हुई और इसी के साथ यह भी सोचा जाने लगा कि हिंदी को देश की राष्ट्र भाषा के तौर पर प्रयोग किया जाने लगा। हिंदी एक ऐसी भाषा बन गयीं, जिसके साथ कोई भी सहजता से अपनी बात रख सकता था, अपनी बात को समझता सकता था, वहीं आजादी के बाद देश में हिंदी की स्थिति पर ध्यान देने के लिए महात्मा गांधी और यूआर अनंतमूर्ति ने एक खास भूमिका निभायी और विश्व में हिंदी के महत्व को समझाने में अपना सबसे बड़ा योगदान दिया। ऐसी ही एक घटना रही है, जब महात्मा गांधी ने अपने पहले साक्षात्कार में एक नामी पत्रकार को कहा था कि पूरे विश्व से कह दो कि गांधी को अंग्रेजी नहीं आती है। महात्मा गांधी ने हिंदी को मातृभाषा बनाने के लिए वकालत की। महात्मा गांधी का मानना था कि हिंदी के जरिए ही देश की संस्कृति और विरास को सुरक्षित किया जा सकता है। महात्मा गांधी का मानना था कि राष्ट्र के विकास के लिए भाषा सबसे बड़ा हथियार है और हिंदी के माध्यम से देश का विकास किया जा सकता है।

हिंदी भाषा के विकास में तकनीकी पक्ष

हिंदी भाषा के विकास में तकनीकी ने अहम भूमिका निभाई है। हिंदी को पढ़ना और हिंदी से जुड़ना पहले के मुकाबले काफी सरल हो गया है। मोबाइल और इंटरनेट ने हिंदी के विकास को पहले की अपेक्षा बढ़ाया है। देखा जाए, तो इंटरनेट पर काफी बड़ी संख्या में गुणवत्तापूर्ण ऐसी सामग्री मौजूद है, जो कि हिंदी में मौजूद है। यहां तक कि हिंदी साहित्य की कई सारी लोकप्रिय किताबें भी हिंदी में पढ़ने और सुनने को मिल जाती हैं। हिंदी में आप जो भी खोज करेंगे इंटरनेट पर उसी से जुड़ी सामग्री के अनगिनत उदाहरण मिल जायेंगे। हिंदी में खोजे गए हर सवाल के अनगिनत जवाब भी आपको हिंदी में मिलेंगे। पहले जहां कंप्यूटर और मोबाइल पैड केवल रोमन लिपि को समझ पाते थे, वहीं अब हिंदी उनके लिए भी परिचित और जरूरी हो गई है। हिंदी में लिखने की सुविधा ने तकनीकी पक्ष  से हिंदी के विकास का एक और बेहतरीन उदाहरण पेश किया है। हिंदी में लिखते हुए लोग हिंदी में समाचार से लेकर रेलवे टिकट बुक कराने की सुविधा तक हिंदी का इस्तेमाल कर रहे हैं। आप किसी भी वेबसाइट पर चले जाएं, आपको अंग्रेजी के साथ हिंदी भाषा को चुनने का और उसमें अपनी मनपंसद सामग्री खोजने का पर्याय आसानी से मिल जाता है। तकनीकी पक्ष मजबूत होने के कारण ही प्रयोगकर्ता हिंदी सामग्री को खोजने और लिखने का काम कुछ सेकंड में कर सकते हैं। 

देश और दुनिया में लोकप्रिय हिंदी के बारे में दिलचस्प जानकारी

भारत के संविधान में 14 सितंबर 1949 को देवनागरी में लिखी गई हिंदी को राष्ट्रभाषा के तौर पर अपनाया गया। इसी के साथ हिंदी को भारत की आधिकारिक भाषा का सम्मान प्राप्त हुआ है। इसी वजह से भारत में पहला हिंदी दिवस 14 सितंबर 1953 को मनाया गया। आपको यह भी बता दें कि देश में 25.79 करोड़ के करीब भारतीय हिंदी भाषा का इस्तेमाल मातृभाषा के तौर पर करते हैं। देश में सबसे अधिक बोलचाल के लिए हिंदी भाषा का उपयोग किया जाता है। उल्लेखनीय है कि भारत के अलावा मॉरीशस, फिजी, सूरीनाम, गुयाना, त्रिनिदादा, टोबैगो और नेपाल जैसे देश में हिंदी भाषा का इस्तेमाल बढ़े स्तर पर किया जाता है। भारत में सबसे पहले भाषाएं भिन्न तरीके से बोली गई हैं। संस्कृत के बाद लोग पालि भाषा बोलते थे और फिर प्राकृत और इसके बाद अपभ्रंश और फिर हिंदी भाषा को बोली के तौर पर बोलने की शुरुआत की गई। डॉ राममनोहर लोहिया ने सातवें दशक में यह प्रस्ताव रखा था कि गर्मी की छुट्टियों में अध्यापकों को अनुवाद के काम में लगा देना चाहिए। इससे हिंदी की किताबों को तेजी से तैयार किया जा सकेगा। डॉ लोहिया ने कहा था कि हमें अंग्रेजों को हटाना है इसलिए अदालतों, दफ्तरों के साथ देश के हर सार्वजनिक काम से मातृभाषा हिंदी को जोड़ा जाए। 

विदेश में हिंदी के विकास से जुड़े जरूरी तथ्य

यह हिंदी का विकास ही है कि हिंदी न केवल भारत में, बल्कि दुनिया में 10 वीं सबसे अधिक लोकप्रिय भाषा है। विदेश के पटल पर हिंदी अपने देश को भी प्रस्तुत कर रही है। हिंदी के कारण लोग भारत की संस्कृति उसकी सभ्यता की पहचान करते हैं। इसलिए हिंदी को माटी की भाषा कहते हैं। यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि आने वाले सालों में हिंदी अपने विकास को और भी विस्तार देगी और देश की अपनी भाषा होने के गौरव को साल दर साल पुख्ता करती जाएगी। 

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