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5 महिलाएं जो बनीं ‘नेकी कर और दरिया में डाल’ की मिसाल का बड़ा उदाहरण

प्राची |  नवंबर 30, 2023

देश की आजादी के साथ से ही महिलाओं ने अपने गौरव की गाथा लिखी है, लेकिन क्या आप जानती हैं कि उन सारी महिलाओं में से कई सारी महिलाएं ऐसी हैं, जिन्होंने खुद को देश के लिए समर्पित कर दिया। जो अपने जीवन को दूसरे की प्रगति, दूसरों के जीवन में उजाला लाने के लिए अपने जीवन को न्योछावर कर चुकी हैं। ऐसी ही महिलाओं के बारे में आज हम बात करने जा रहे हैं, जो कि कल, आज और कल में अपने नाम की गौरवमयी पताका को लहराते हुए समाज को यह संदेश दे रही हैं कि कर नेकी कर और दरिया में डाल। ऐसी महिलाएं, जिन्होंने हमेशा देने में यकीन किया है लेने में नहीं। आइए जानते हैं विस्तार से।

मदर टेरेसा

साल 1980 में मदर टेरेसा को भारत रत्न सम्मान से नवाजा गया। मदर टेरेसा विश्व की मां रही हैं। मदर टेरेसा ने अपने जीवन को गरीब और अनाथ लोगों के लिए समर्पित कर दिया। इसी वजह से उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया जा चुका है। भारत को अपनी कर्मभूमि बनाते हुए उन्होंने समाज में प्रेम और मानवता का संदेश फैलाया। मदर टेरेसा न सिर्फ अनाथ बच्चों का सहारा बनीं, बल्कि उन्होंने दुखियारों और जरूरतमंदों की सेवा की। कुष्ठ रोगियों और अनाथों की सेवा में अपनी पूरी जिंदगी लगा दी। 

सिंधुताई सपकाल

पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित सिंधुताई सकपाल को माई कहकर पुकारा जाता था। सिंधुताई अनाथों की माई थीं। 1400 से अधिक बच्चों को पालने वाली सिंधुताई ने समाज में यह संदेश दिया कि स्नेह मानवता की निशानी है, फिर चाहे वह किसी भी रूप में क्यों न हो। सिंधुताई ने एक गौशाला में अपने बच्चे को जन्म दिया। ट्रेन में गाना गाकर वह अपने बच्चे को दो वक्त का खाना भी मुश्किल से खिलाती थीं। ऐसे में उन्हें अहसास हुआ कि ऐसे सैकड़ों बच्चे हैं, जिन्हें मां की आवश्यकता है। इसके बाद उन्होंने अनाथ बच्चों को गोद लेना शुरू किया और उनके उज्जवल भविष्य के लिए नया रास्ता बनाया।

सावित्रीबाई फुले

भारत की पहली महिला शिक्षक सावित्रीबाई फुले ने समाज के खिलाफ खुद को शिक्षित किया और दूसरी तरफ उन महिलाओं और लड़कियों को भी शिक्षित करने के लिए कदम उठाएं। उस दशक में उन्होंने लड़कियों की शिक्षा के लिए कार्य किया, जब महिलाओं को पढ़ना गलत माना जाता था। समाज की महिलाओं को शिक्षा करने के लिए उन्हें समाज का कड़ा विरोध झेलना पड़ा है। कई बार सावित्रीबाई को समाज के पत्थर भी झेलने पड़े हैं, लेकिन उन्होंने अपने जीवन को महिलाओं की शिक्षा के लिए बलिदान कर दिया।

सरोजिनी नायडू 

सरोजिनी नायडू ने भी महिलाओं के अधिकारों को लेकर अपनी आवाज बुलंद की। साथ ही नमक सत्याग्रह और स्वंतत्रता की लड़ाई में भी अपने जीवन को निर्वाह कर दिया। देश की पहली महिला राज्यपाल होने के साथ उन्होंने महिलाओं को उनके अधिकारों से परिचित कराया। उन्होंने महिलाओं में यह संदेश फैलाया कि उनका काम घर में बंद रहकर अपने जीवन को चुल्हे की आग में समर्पित करना नहीं है, बल्कि खुद को शिक्षित करना और खुद के अधिकारों के लिए लड़ना है। सरोजिनी नायडू का कहना था कि महिलाएं देश की नींव हैं।

निकिता कौल

निकिता कौल ने अपने जीवन को देश के लिए समर्पित कर दिया है। निकिता एमबीए ग्रैजुएट होने के साथ वह एक कंपनी के लिए काम भी कर चुकी हैं, लेकिन पुलवामा हमले ने उनकी जिंदगी बदल दी। साल 2019 के इस आतंकी हमले में मेजर विभूति शंकर ढौंडियाल शहीद हो गए। पति के शहीद होने के बाद निकिता कौल ने खुद को संभाला और आर्मी ज्वाइन करते हुए भारतीय सेना में लेफ्टिनेंट बन गयीं। 

 

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