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होम / एन्गेज / रिलेशनशिप्स / पेरेंटिंग

बाबा की रानी बिटिया, जब बड़ी होकर ‘पिता’ बन जाती है

प्राची |  जनवरी 24, 2024

पिता से है नाम तेरा, पिता पहचान तेरी, एक बेटी के जीवन में पिता की अहमियत ठीक वैसे ही होती है, जैसे कुएं में समाया पानी। बेटी के कुएं जैसे गहरे जीवन में पिता पानी समान होते हैं, जो उसे जीवन के हर बहाव का सामना करना सिखाते हैं। एक लड़की के जीवन में पिता उसके लिए पहले दोस्त होते हैं, जहां बचपन में पिता की पीठ पर बैठ वह घर के हर कोने की सैर करती, वहीं स्कूल जाने के लिए पिता की स्कूटी के आगे बैठ वह दुनिया से पहली मुलाकात करती। अपनी जवानी की पहली सफलता की दहलीज को भी पार एक बेटी पिता की उंगली थामकर करती। पिता से मिली कई सारी शाबाशी की थपथपाहट के साथ बेटी जब बड़ी होती है, तो पिता बन जाती है। आइए जानते हैं विस्तार से।

लाड़-प्यार ने बनाया जिद्दी हुई खुद से मुलाकात

पिता जब भी दफ्तर से आते हैं, तो बेटी अपने नन्हें से कदम के साथ तेज रफ्तार से पिता की गोद में समा जाती। पीछे से मां की आवाज आती कि आपने इसे जिद्दी बना दिया है। बेटी को हर दिन चॉकलेट और खिलौने दिलाने की जिद्द उसे बड़े होकर खुद के लिए लड़ना सिखाती है। जीवन के कई सारे मुश्किल और कमजोर पड़ाव पर पिता से की हुई यही जिद्द करने का स्वभाव काम आता है। जहां पर हार के बाद फिर से खड़े होने की जिद्द, मुश्किल हालातों में खुद पर विश्वास करने की जिद्द और खुद पर यकीन कर हर पड़ाव को पार की जिद्द जीने की नई राह दिखाती है।

ढेर सारे खिलौने ने बताई मेहनत की कीमत

कपड़े की गुड़िया से लेकर बगीचे में घोड़े की सवारी तक, पिता जब भी घर से बाहर जाते, तो खिलौनों के दुकान से एक गुड़िया लेकर आते। थके हुए पानी का गिलास देने की हड़बड़ाहट के बीच पिता से तोहफा मिल जाता और थकावट में भरे पिता के चेहरे को देख, हर बेटी की चिंता में यह सोच शामिल हो जाती है कि वह भी बड़े होकर खूब मेहनत करेगी और पिता के लिए तोहफे लेकर आएगी। अपनों के लिए मेहनत करने की यह सीख एक बेटी को पिता से ही मिलती है।

जब लाडली बन जाती है जिम्मेदार

एक पिता के लिए गर्व का पल तब होता है, जब बेटी के नाम से पिता की पहचान होती है, फिर चाहे वह पहली कक्षा में बेटी के पास होने की खुशी हो या फिर पहली नौकरी का ईमेल क्यों न हो, हर पिता के लिए बेटी की कामयाबी उसके जीवन का सबसे सुखद पल साबित होती है, वहीं एक बेटी में जिम्मेदार बनने की सोच उसके पिता की दी हुई शाबाशी से आती है। पिता को अपने हाथ से बनी हुई मीठी खीर देने पर मिलने वाली चवन्नी से लेकर पिता के लिए अपनी पहली पगार से घड़ी लाने के तोहफे के वक्त ‘वाह बेटा ! शाबाश’ वाला लाड़ एक बेटी को लाडली से जिम्मेदार बना देती है।

आओं तुम्हें चांद पे ले जाएं ने दिया सपने देखने का जज्बा

रात में जब नींद नहीं आती, तो पिता घर की छत पर ले जाकर ‘आओ तुम्हें चांद पर ले जाएं’ वाला गाना सुनाते थे और अपने हाथ को ऊपर कर चांद की तरफ इशारा करते और बताते कि वहां पर भी एक दुनिया है और इस दुनिया को पाने का पहला सपना पीते के कंधों पर देखने की शुरुआत होती है। सपने देखना और उसे पूरा करने का यकीन पिता से ही मिलता है, जब पिता कहते हैं मेरी बेटी मेरा अभिमान, यह पूरे करेगी हर ख्वाब।

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