अमूमन यह बातें होती हैं कि जब ग्रैंड पेरेंट्स यानी दादा-दादी, नाना-नानी के साथ पलते हैं या उनकी परवरिश होती है, तब उनकी कुछ आदतें बदल जाती हैं और साथ ही अन्य बदलाव भी आते हैं। ऐसे में बच्चे की परवरिश में बहुत अधिक लाड़-प्यार से बिगड़ना भी न हो और न ही अधिक सख्ती हो, आइए जानें इसके लिए आप क्या कर सकती हैं।
दिलचस्प है ये जानकारी

दादा-दादी द्वारा पालन-पोषण से पोते-पोतियों या नाती-नतनी की परवरिश पर कई तरह के सकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं, खासतौर से अगर बात करें, तो मानसिक रूप से उनमें स्थिरता आती है, तो वहीं सुरक्षा, भाई-बहनों और परिवार के अन्य सदस्यों के साथ संबंध और सांस्कृतिक पहचान और सामुदायिक संबंधों का बरकरार रखना भी अहम है। दादा-दादी, दरअसल बच्चों के जीवन में कई महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाते हैं। वे न सिर्फ उनकी देखभाल करते हैं, बल्कि एक अच्छे शिक्षक और सहपाठी भी बनते हैं। वे अपने वयस्क बच्चों, जो अब स्वयं माता-पिता बन चुके हैं उनके लिए विश्वसनीय सलाहकार होते हैं। कई परिवारों में, दादा-दादी नियमित रूप से बच्चों की देखभाल करते हैं। कुछ मामलों में, वे अपने पोते-पोतियों के प्राथमिक देखभालकर्ता होते हैं। और चाहे वे आस-पास रहते हों या दूर से संपर्क में रहते हों, दादा-दादी द्वारा प्रदान किया जाने वाला प्यार और भावनात्मक निकटता उनके पोते-पोतियों के स्वस्थ विकास पर एक बड़ा, सकारात्मक प्रभाव डालती है। यह दिलचस्प बात है कि ये सभी भूमिकाएं महत्वपूर्ण हैं और दादा-दादी अपने नन्हे-मुन्नों के लिए और भी कई खास काम करते हैं।
देते हैं सलाह
एक नए माता-पिता के लिए अपने बच्चे का खूब ख्याल रखना जरूरी हो जाता है, खासकर नए माता-पिता के लिए। और छोटे बच्चे इतनी तेज़ी से बढ़ते और विकसित होते हैं कि पालन-पोषण की जो दिनचर्या एक दिन काम करती है, वह अगले दिन काम नहीं भी आ सकती। ऐसे में जब बच्चे अपने ग्रैंड पैरेंट्स के पास होते हैं, तब ऐसी स्थिति में अगर उन्हें कोई संदेह होता है, तो माता-पिता अक्सर जवाब के लिए ऑनलाइन जाते हैं। लेकिन पालन-पोषण संबंधी जानकारी के स्रोत, दोस्तों, बाल रोग विशेषज्ञों या वेबसाइटों से ज्यादा सही होता है कि अपने-अपने माता-पिता पर भरोसा करें। दादा-दादी या नाना-नानी का अनुभव, माता-पिता की निराशा या घबराहट के क्षणों में विशेष रूप से मददगार और सुकून देने वाला होता है। बेशक, दादी या नाना-नानी की कुछ सलाह बच्चों के विकास के बारे में हमारी वर्तमान जानकारी से मेल नहीं खा सकती है, लेकिन उनके जीवन का अनुभव बहुत साथ देता है और फिर आप खुद उन गलतियों को करने से बचते हैं। इसलिए बच्चों का दादा-दादी या नाना-नानी के साथ रहना बेहद जरूरी है।
होता है सांस्कृतिक और सामजिक विकास भी

दादा-दादी दरअसल, बच्चों को साथ खेलकर, बातें करके और पढ़कर सीखने में मदद करते हैं और उनका पूरा ध्यान रखते हैं। और वे कहानियां सुना कर और पारिवारिक व सांस्कृतिक परंपराओं को साझा करके उन्हें और भी सीधे तौर पर सिखाते हैं। इससे उनका सामजिक और सांस्कृतिक दोनों विकास होता है।
टैंट्रम करना न सिखाएं
अब यह तो सच है कि बच्चों को ग्रैंड-पेरेंट्स का प्यार काफी मिलता है। लेकिन कई बार बच्चे लाड़-प्यार में काफी पड़ जाते हैं और अपनी कई आदतें भी खराब कर लेते हैं, ऐसे में यह बेहद जरूरी है कि आप अपने पेरेंट्स से कहें कि बच्चे की न मानने वाली बातों को तवज्जो बिल्कुल नहीं दें। साथ ही उन्हें प्यार से गलत बातों पर हां करना बिल्कुल नहीं सिखाएं।
माता-पिता को न डांटें

कई बार ग्रैंड-पेरेंट्स यह भी गलती करते हैं कि बच्चों के सामने ही उनकी साइड लेते हुए या तरफदारी करते हुए माता-पिता को उनके सामने डांटते हैं और मेरे प्यारे बच्चे तुमने कुछ गलती नहीं की है, जैसी कई बातें करने लगते हैं, यह भी पूरी तरह से गलत है, बच्चों पर इसका यह प्रभाव पड़ता है कि वे अपने ही माता-पिता की फिर बातें नहीं सुनते और उन्हें फिर सिर्फ गलतियां करने की आदत लग जाती है। इसलिए कभी भी बच्चों के सामने उनके पेरेंट्स की कोई कमी पर या किसी भी तरह से उन्हें डांटने की कोशिश न करें। न ही उनका मजाक बनाने या उड़ाने की कोशिश करें।
ग्रैंड-पेरेंट्स को भी न डांटें
अब एक और जरूरी बात, जो आपको भी ध्यान रखनी है कि आपको अपने पेरेंट्स यानी आपके बच्चे के ग्रैंड पेरेंट्स को भी कभी भी अपने बच्चों के सामने डांटना नहीं है, क्योंकि बच्चे इससे भी बिगड़ते हैं, वे देखेंगे कि आप अगर बच्चे के साथ ऐसा कर रहे हैं तो वे भी कुछ वैसा ही बर्ताव करेंगे। इसलिए कभी भी बड़ों का सम्मान ही करें, कभी भी बच्चों को यह सीख नहीं दें कि छोटे-बड़ों को डांट सकते हैं।
खुद भी समय बिताएं

यह भी बेहद जरूरी है कि आप अपने बच्चे के समय खुद भी समय बिताएं, यह न सोचें कि सिर्फ आपने पेरेंट्स की जिम्मेदारी हो गई है कि वे उन्हें संभालें, जब आपको समय मिले तो आप उनके साथ समय बिताएं, नहीं तो धीरे-धीरे बच्चे दूरी बना लेंगे, फिर आपको ही इससे परेशानी होगी, उन्हें लगेगा कि आपके पेरेंट्स उनकी बातों को अधिक समझ रहे हैं और फिर वे उनके साथ ही कम्फर्ट ढूंढेंगे, इसलिए जरूरी है कि आप भी समय बिताएं।
बेवजह के तोहफे नहीं
कई बार ग्रैंड पेरेंट्स को अच्छा लगता है कि वे बच्चों को तरह-तरह की चीजें दें, वे इसे प्यार जताने का एक तरीका मानते हैं। लेकिन कई बार बच्चों को सिर्फ गिफ्ट्स लेने की आदत लग जाती है और फिर उनका मन कुछ और करने को नहीं होता है और फिर वे बातें ही नहीं मानेंगे, गिफ्ट्स के बिना, इसलिए बार-बार बच्चों को गिफ्ट्स देने से बचना चाहिए।
खाने में भी गलत चीजें नहीं
कई बार ग्रैंड पेरेंट्स यह भी कहते हैं कि हमारे जमाने में ऐसे खाते थे, वैसे खिलाते थे, कई बार बच्चे को हेल्दी खिलाने के नाम पर भी कुछ भी या जरूरत से ज्यादा खिलाने लगते हैं, यह भी बच्चे के सेहत के लिए बहुत ही खराब माना जाता है, इसलिए उन्हें ऐसा करने से रोकें। समझाएं कि बच्चों को कब कितना खाना है, ताकि उनकी सेहत बनी रहे।