पेरेंटिंग के कई सारे तरीके हैं। हर पेरेंटिंग के तरीके के पीछे माता-पिता का एक ही मकसद होता है कि वह अपने बच्चे की सुरक्षा कर पाएं साथ ही उन्हें ढेर सारा प्यार करें। इसी फेहरिस्त में कुछ समय पहले हेलीकॉप्टर पेरेंटिंग का नाम सामने आया। जहां पर माता-पिता अपने बच्चों पर किसी न किसी चीज का दबाव बनाते हैं। इसे साफ भाषा में ओवर प्रोटेक्टिव होना भी कहते हैं। इसी कतार में लॉन मोवर पेरेंटिंग का नाम भी शामिल हो गया है। इस पेरेंटिंग स्टाइल में माता-पिता अपने बच्चों को हर मुश्किल से सुरक्षित करना चाहते हैं और इस कोशिश में बच्चा कभी-भी अपनी समस्या को सुलझाना नहीं सीखता। हर बात माता-पिता के बनाए हुए सुरक्षा कवच में रहता है,जहां पर उसे दुनिया का सामना करने की सीख नहीं मिल पाती है। इस बारे में हमने विस्तार से बात की है, बाल मनोवैज्ञानिक और पेरेंटिंग काउंसलर रिद्धि दोशी से। आइए जानते हैं विस्तार से।
क्या है लॉन मोवर पेरेंटिंग?

रिद्धि बताती हैं कि लॉन मोवर पेरेंटिंग एक ऐसा स्टाइल है, जहां पर माता-पिता अपने बच्चे को स्मार्ट नहीं बनने देते हैं। इस तरीके से बच्चे कुछ नया नहीं सीख पाते हैं। जब भी पेरेंट्स बच्चे की जिंदगी से या फिर उनके बढ़ने के सफर से हर एक दुविधा को हटाते जाते हैं, उसको कभी-भी असहजता, तकलीफ और संघर्ष का सामना नहीं करने देते हैं, उसे एक तरह से लॉन मोवर पेरेंटिंग कहा जाता है। इस स्टाइल में बच्चा जो भी मुश्किल का सामना कर रहा है या फिर करने वाला है, उसे पहले से ही माता-पिता द्वारा हटा दिया जाता है।
बच्चे के विकास में अड़चन

वह आगे कहती हैं कि माता-पिता के सुरक्षा घेरे में बच्चा उस वक्त के लिए सुरक्षित हो जाता है, लेकिन भविष्य में अपनी रक्षा के लिए उसे किसी न किसी पर निर्भर रहना पड़ता है। इन सब में बच्चे कई सारी चीजें नहीं सीखते हैं। जैसे कि बच्चा खुद से खुद की समस्या को सुलझाना नहीं सीख पाता है, क्योंकि बच्चे ने कभी खुद से विफलता का सामना नहीं किया है। ऐसे में उसे कैसे पता चलेगा कि कैसे मुश्किल हालातों का सामना करना है। उससे बाहर निकलना है। उसके साथ आगे बढ़ना है। उसे संतुलन बनाना नहीं आता है।
बच्चों के समस्या के साथी बनें

उन्होंने राय दी है कि माता-पिता को बच्चों की समस्या का साथी बनना चाहिए। खुद बच्चों की छोटी-बड़ी समस्या को सुलझाना नहीं चाहिए। बच्चों को छोटी-मोटी समस्या का सामना करने देना चाहिए। उन्हें सीखने देना चाहिए। तभी आपका बच्चा सीखता है, समझता है और मुश्किल को संभालना आएगा।अगर आप लॉन मोवर पेरेंट हैं और आपकी यह पेरेंटिंग स्टाइल है,तो आपका बच्चा कभी-भी यह नहीं समझेगा कि किसी भी समस्या को सुलझाना क्या होता है। क्योंकि जब माता-पिता छोटी छोटी बातों में भी अपना दखल देते हैं, तो ऐसे बच्चे क्रिटिकल सोच को डेवलप नहीं कर पाते हैं और कभी-भी अपने फैसले लेने की क्षमता का विकास भी नहीं कर पाते हैं।
भविष्य पर बुरा प्रभाव

पेरेंटिंग काउंसलर रिद्धी कहती हैं कि लॉन मोवर पेरेंटिंग के जरिए बच्चे असमर्थ बन जाते हैं।
ऐसे में भविष्य में जाकर या फिर अपने माता-पिता या फिर किसी अन्य के ऊपर अपने जीवन के फैसलों को लेकर निर्भर रहेंगे,ताकि उनकी समस्याओं को कोई और आकर सुलझा लें। इसके साथ इमोशनल रेग्युलेशन कभी भी बच्चा विकसित नहीं कर पाता है। हार से बच्चा बच्चों को इमोशनल हालातों को संभालने में मुश्किल पैदा करता है। क्योंकि मुश्किल हालातों से ही इमोशनल बर्ताव अधिक सामने आता है और जब मुश्किल हालात होते हैं, तो अगर हम बच्चों को छोटी-छोटी मुश्किल हालातों का सामना नहीं करने देंगे, तो अपने जीवन की छोटी-छोटी हार का भी वह सामना नहीं कर पायेंगे।
जीवन पर घबराहट का सामना

उन्होंने बताया कि इसके बाद आगे चलकर हमेशा हारने का डर और घबराहट जैसी चीजें उन्हें हमेशा परेशान करती रहेंगी। आगे जाकर बच्चा एडल्ट होकर जिम्मेदारी कभी-भी नहीं ले पाएगा। खुद से फैसला लेना , सेल्फ मोटिवेशन से बहुत दूर रहेगा। माता-पिता अधिक ध्यान और प्यार की सोच के साथ इस पेरेंटिग स्टाइल में बच्चों को नुकसान पहुंचाते हैं। इससे बच्चे के मानसिक और शारीरिक विकास पर इसका असर पड़ता है। अच्छा यह होगा कि बच्चे के लिए परेशानी खड़ी करने से बेहतर है कि उन्हें मुश्किल हालातों का सामना करने देना चाहिए। ताकि वह अपनी जिंदगी को मैनेज कर पायेंगे। उन्हें मुश्किल हालातों का अनुभव करने देना चाहिए।