इन दिनों जिस तरह से खर्च बढ़ गए हैं, लोगों की कोशिश अपने बच्चों के बारे में ही सोचने की है। लेकिन कई लोग ऐसे भी हैं, जो चाहते हैं कि अपने बच्चों के साथ-साथ अपने माता-पिता का भी पूरा ख्याल रखें। ऐसी ही जेनरेशन यानी पीढ़ी को सैंडविच जेनरेशन का नाम दिया गया है। आपके माता-पिता जिन्होंने अपनी जिंदगी में काफी जिम्मेदारियों को पूरा किया है, उन्होंने इस जेनरेशन को समझा है। इस जेनरेशन में वित्तीय लेन-देन भी एक अहम हिस्सा होती है। आपको सुन कर हैरानी होगी, लेकिन इसके बावजूद कि अमेरिका में परिवार को उतनी तवज्जो नहीं दी जाती है, वहां भी नए जेनरेशन में अब इस तरह की प्रवृति देखी जा रही है। धीरे-धीरे भारत में भी इसका चलन और अधिक बढ़ा है। नए जेनरेशन भी अपने बच्चों के साथ-साथ माता-पिता के साथ खुशी-खुशी रहना चाह रहे हैं। आइए जानें विस्तार से।
तीन तरह के लोग आते हैं इस जेनरेशन में
पारम्परिक सैंडविच जेनरेशन में वे लोग आते हैं, जो माता-पिता की देखभाल करने और अपने बच्चों की देखभाल के बीच जूझते रहते हैं, वहीं क्लब सैंडविच जेनरेशन यह उस तरह की पीढ़ी है, जो अपने 50 या 60 के दशक में हैं और अपने बूढ़े माता-पिता, अपने वयस्क बच्चों और यहां तक कि अपने पोते-पोतियों की देखभाल कर रहे हैं। वहीं द ओपन फेस्ड सैंडविच जेनरेशन है, जिसमें कोई भी शामिल हैं, जो बुजुर्गों की देखभाल करता हो।
क्या हैं व्यवहारिक कारण
सैंंडविच जेनरेशन के लिए सबसे बड़ी परेशानी जो सामने आ रही है कि वित्तीय चीजें संभालनी थोड़ी कठिन होती है। चूंकि जरूरत से ज्यादा महंगाई है और बड़े शहरों में तो सबकुछ ही काफी महंगा है। ऐसी जेनरेशन के सामने निवेश की परेशानी आती है। निवेश कर पाना कठिन होता है, बचत करना भी कठिन होता है। कई बार एक दूसरे की बातें भी बुरी लग जाती हैं। कई बार एक दूसरे जेनरेशन को यही लगता रहता है कि एक दूसरे को स्पेस नहीं मिल रही है। यह कई लोगों के लिए तनाव का भी कारण बन सकता है।
क्या हो सकते हैं प्रबंधन के तरीके
जहां चार लोग होते हैं, वहां कुछ न कुछ बातें आएंगी, सबकुछ बिल्कुल ऐसा स्पष्ट नहीं हो सकता कि किसी को कुछ बुरा न लगे या हर वक़्त हर किसी की बात अच्छी ही लगती रहे, इसलिए जरूरी है कि हर बात को दिल पर न लें, आप घर में हर काम की जिम्मेदारी सिर्फ खुद के कंधे पर नहीं रखें। जिम्मेदारी बांटने की कला आपको आनी चाहिए। एक और बात जो दिमाग में रखने की जरूरत है कि एक दूसरे से बातचीत करें, मन में बातें नहीं रखें, वरना गलतफहमी को जगह मिलती जायेगी। वित्तीय खर्च को लेकर मुखर रहें और सबके साथ मिल कर चीजों को बांटें, ताकि किसी एक पर भी भार न आये। अगर आपके पेरेंट्स को रिटायरमेंट के बाद कुछ सुविधा मिल रही है, तो फिर उसे लेने में हिचकिचाएं नहीं, तभी आप बेहतर ढंग से प्रबंधन कर पाएंगे, किसी भी तरह का संकोच, बाद में आपके लिए परेशानी का ही सबब बन सकता है। इन सबके साथ-साथ खुद के बारे में सोचना भी न भूलें, चूंकि अगर आप ऐसा नहीं करेंगी, तो आपके लिए जी का जंजाल बन जाएगा और फिर आप किसी और का भी ख्याल रखने की स्थिति में नहीं होंगी।