रिजेक्शन एक ऐसी क्रिया है, जिसे स्वीकार करना हर किसी को आना चाहिए और अगर बचपन में आपको इसका अनुभव होता है और आप इसे स्वीकार करते है, तो आप जीवन में आगे बढ़ते रहने की खूबी से भी अवगत होते हैं। रिजेक्शन को झेलना आपके मन के अंदर नकारात्मकता लेकर आता है, इसलिए जरूरी है कि रिजेक्शन को झेलना नहीं चाहिए, बल्कि उसे अपनाना चाहिए, ताकि आप अपनी की हुई गलती और अनुभव के साथ फिर से जीत की तरफ आगे बढ़ सकती हैं और बच्चों के लिए यह बहुत जरूरी हो जाता है, क्योंकि बच्चों का कोमल दिल जल्द ही रिजेक्शन के प्रभाव में आकर खुद को परेशानी और दुख में समेट लेता है। आइए जानते हैं विस्तार से।
बच्चों की भावनाओं को समझें
सबसे जरूरी बात यह आती है कि हर माता-पिता को अपने बच्चों की भावनाओं को समझना होगा। कई बार ऐसा होता है कि बच्चे अपने रिजेक्शन की बात साझा करने के लिए आपके पास आते हैं और आप यह कहकर बात को टाल देते हैं कि यह भी कोई बड़ी बात है। ऐसा कहना आपके बच्चे पर बुरा प्रभाव डाल सकती है। आपको यह समझना है कि बच्चों के लिए रिजेक्शन छोटा या बड़ा नहीं होता है। उनके लिए रिजेक्शन केवल रिजेक्शन होता है। फिर चाहे वह अपने दोस्तों द्वारा खेल से बाहर कर दिया जाना हो या फिर स्कूल में हुई परीक्षा में असफल हो जाना हो। बच्चे कभी भी रिजेक्शन को छोटा या बड़ा नहीं समझते हैं। उनके लिए यही काफी होता है कि उन्हें किसी चीज में सबसे अलग लाकर खड़ा कर दिया गया है और इस दौरान अगर आप भी उनका साथ नहीं देते हैं, तो इससे उनका दुख और अधिक गहरा हो जाता है। इसलिए बच्चों को रिजेक्शन को संभालने के लिए हिम्मत देने से पहले आपको बच्चों की भावनाओं को समझना होगा।
बच्चों को भावनात्मक तौर पर मजबूत बनाएं
जी हां, रिजेक्शन का सामना करने के लिए बच्चों को भावनात्मक तौर पर मजबूत बनाना उनके दुख को कम करने का सबसे अहम पड़ाव है। बच्चों को समझाएं कि वह किस तरह भावनाओं को समझ सकते हैं और अपने सामने आएं परेशानी से कैसे खुद को मजबूत खड़ा कर सकती हैं। आप बच्चों को समझा सकती हैं कि कैसे आप इस मामले से बाहर आ सकती हैं। साथ ही रिजेक्शन के दौरान बच्चों को खास तौर पर भावनात्मक तौर पर सहारा देने के लिए उनके साथ कदम से कदम मिला कर खड़े रहना जरूरी है। आपको बच्चों के सामने उनकी समस्या को ध्यान से सुनना है और फिर बच्चों के साथ मिलकर ही रिजेक्शन का सामना करने के लिए कैसे खुद का हौसला बढ़ाकर आगे बढ़ना है। बच्चों की भावनाओं के साथ अपनी भावना को जोड़े और उन्हें यह समझाएं कि असफलता के आगे सफलता के कई रास्ते खुले हैं और हमें उस मौके के लिए आगे बढ़ना है।
आत्मसम्मान के साथ मुसीबत का सामना करना सिखाएं
आपके बच्चों को सकारात्मक रहना जरूर सिखाएं, क्योंकि यह बहुत जरूरी है कि वे भी हर तरह की परिस्थिति के बारे में अलर्ट रहें। जी हां, जिस तरह की प्रतिस्पर्धा है, ऐसे में बच्चे बहुत ही जल्द हताश हो जाते हैं और दूसरो को आगे बढ़ता देख और खुद को किसी मोड़ पर अकेला देख बच्चों में बहुत ही जल्दी नकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है। इस दौरान अगर बच्चों को किसी भी तरह के रिजेक्शन का सामना करना पड़ता है, तो यह उनके लिए और भी ज्यादा परेशानी और तनाव की स्थिति लेकर आता है। इसलिए जरूरी है कि आप अपने बच्चों में सकारात्मक सेल्फ-एस्टीम को बढ़ावा दें और अपने बच्चों को अपनी क्षमताओं पर यकीन करना सिखाएं। बच्चों को जिन चीजों में दिलचस्पी है उसे आगे बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करें और साथ ही लक्ष्य निर्धारित करने में उनकी सहायता भी करें। साथ ही सबसे जरूरी है कि उनकी सफलता पर तारीफ करने के साथ उसका जश्न मनाना भी आपको चाहिए। इससे बच्चों में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहन मिलता है और सतत अच्छा करने के लिए उन्हें मानसिक तौर पर भी मजबूती मिलती है। इससे बच्चे नकारात्मक चीजों से भी बाहर आने में खुद की सहायता कर पाते हैं। साथ ही उन्हें यह भी सीख दें कि हार के बाद ही जीत है और इस सोच के साथ बच्चे उलझनों और रिजेक्शन से निपटना सीखते हैं और साथ ही उससे जल्द उबर भी जाते हैं।
डायरी लिखने की आदत
हम हमेशा जीवन में किसी न किसी दोस्त की तलाश करते हैं, जिससे बात करके हम अपने मन को हल्का करते हैं, लेकिन बच्चे अपना मन हल्का करने और अपने मन की बात करने के लिए डायरी का भी सहारा ले सकते हैं। आपने सोचा है कि आप खुद से बात करके भी अपने मन की उलझनों को सुन सकते हैं और समझ सकते हैं। इसलिए आपको न केवल खुद के लिए, बल्कि बच्चों को भी इस बात के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए कि उन्हें अपनी सेल्फ केयर डायरी में उन बातों को भी जरूर लिखें, जिसे लेकर उन्हें किसी भी प्रकार की कोई उलझन है। कई बार लिखते-लिखते वो सारी बातें भी स्पष्ट होने लगती है, जिसे लेकर दुविधाएं बनी रहती हैं। खुद से बाते करके बच्चों को खुद को समझने का अवसर मिलता है साथ ही खुद को लेकर आत्मविश्वास भी बढ़ता है।
सकारात्मक विचारों से जुड़ाव
हर दिन हमारा जुड़ाव कई सारी नकारात्मक और सकारात्मक घटनाओं से जरूर होता है, लेकिन हमें अपने साथ उन्हीं बातों को रखना चाहिए जो कि सकारात्मक हैं। बच्चों को भी आपको यही सीख देनी चाहिए और कभी-भी नकारात्मक लोगों और बातों को अपने विचारों के जरिए अपने साथ वापस नहीं लेकर आना चाहिए। साथ ही सकारात्मक हुई घटनाओं और बातों का जिक्र आपको अपनी सेल्फ केयर डायरी में जरूर नोट करना चाहिए। फिर घटना अपने दोस्तों के साथ खेलने से जुड़ी रहे या फिर कक्षा में एक अच्छी सी पेटिंग बनाने को लेकर क्यों न हो। हर दिन की सकारात्मक बातों का जिक्र बच्चों को अपनी सेल्फ डायरी में करना चाहिए। इससे बच्चे खुद को लगातार सकारात्मक रखने की कवायद करते हैं और रिजेक्शन जैसी नकारात्मक चीज को केवल सीख मानकर आगे बढ़ने का प्रयास करते हैं।
खुद को कोसना बंद करें
बच्चों को यह भी सिखाएं कि उन्हें खुद को किसी भी हालत में कोसना नहीं है, फिर चाहे रिजेक्शन किसी भी तरह की क्यों न हो, साथ ही माता-पिता को भी अपने बच्चों को किसी भी मामले में मिली रिजेक्शन के लिए कोसना नहीं चाहिए। इससे बच्चों का आत्मविश्वास खत्म होता है। बत्चों को इस सोच से बाहर आना चाहिए कि मैंने ऐसा क्यों किया, मेरे साथ ऐसा क्यों होता है, मैं यह काम नहीं कर सकती, इस तरह के सवाल के साथ खुद को कोसना बंद करें। खुद को कोसने के दौरान आप हमेशा से नेगेटिव विचार धारा खुद के बारे में सुनते हैं। जब भी हम खुद को कोसते हैं, तो कहीं न कहीं खुद से एक संवाद करते हैं, इस तरह के संवाद हमारे आत्मविश्वास को बढ़ा भी सकते हैं और घटा भी सकते हैं। इसलिए जब भी बच्चे खुद के बारे में कोई विचार सोचें, तो हमेशा यही याद रखें कि जो होगा अच्छा होगा। अगर बच्चों से कोई गलती हो जाती है, या कोई बड़ी परेशानी आ जाती है, तो भी यही सोच अपनाएं कि ये वक्त गुजर गया, आने वाले वक्त पर आप खुद में सुधार करेंगे।
बच्चों के साथ बिताएं समय
परिवार से बड़ा सहारा आपके जीवन में दूसरा कोई नहीं है। कई बार हम अपने रिश्तों की तलाश घर के बाहर करते हैं, लेकिन जब आप खुद घर के बाहर रिश्ते की तलाश करती हैं, तो घर, घर नहीं रहता, उसे मकान कहा जाता है। बच्चों को समय-समय पर इस बात को बताते रहे हैं कि सुख और दुख का साथी परिवार होता है। परिवार की कीमत क्या होती है, यह वही बेहतर बता सकता है, जिसके पास परिवार का साथ नहीं होता है। परिवार से आपको हिम्मत मिलती है, बल मिलता है और जीवन में आगे बढ़ने का हौसला भी मिलता है।