बचपन से ही बच्चों में बोलने की क्षमता पर काम करना बेहद जरूरी है। ऐसे में उनके स्किल्स को कैसे बढ़ाया जा सकता है। आइए जानने की कोशिश करते हैं।
बचपन से ही ध्यान दें

एक्सपर्ट्स का भी मानना है कि बच्चों में बोलने की स्किल्स बचपन से ही डेवेलप यानी विकसित करना जरूरी होता है। बच्चों की बोलने की कुशलता उनके समग्र विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। ये सिर्फ बोलने की क्षमता नहीं, बाल्की सोचने, समझने, एक्सप्रेस करने और कॉन्फिडेंट बनने का आधार होती है। अगर आप बचपन से ही अपने बोलने के कौशल को प्रोत्साहित करते हैं, तो वह स्वाभाविक रूप से आत्मविश्वासी और एक्सप्रेसिव कम्युनिकेटर बन सकता है।
स्पीच डेवलपमेंट कब शुरू होती है
वाणी विकास या स्पीच डेवलपमेंट जन्म से ही प्रारंभ होता है। बच्चा सबसे पहले सुनना और प्रतिक्रिया करना चाहता है, फिर धीरे-धीरे बोलना और अपनी भावनाओं और जरूरतों को व्यक्त करना शुरू करता है। ये प्रक्रिया क्रमिक होती है और हर चरण में अगले कौशल के लिए फाउंडेशन बनता है। इसलिए इन स्किल्स पर ध्यान देना बेहद जरूरी है और बचपन से ही उन्हें उनसे बातें करने के लिए प्रेरित करना जरूरी है।
आयु के अनुसार स्किल्स

यह भी जानना बेहद जरूरी है कि बच्चों की बोलने की कुशलता विकसित करने के लिए उनके उम्र के हिसाब से मील के पत्थर समझना जरूरी है, जैसे 0-6 महीने में बच्चों से कूंग और गड़गड़ाहट की आवाजें निकलती हैं ("ऊ", "आ", "गू"), वह माता-पिता की आवाज पर प्रतिक्रिया करता है, साथ ही वह मुस्कुराने की और आवाज देने की कोशिश करता है। वहीं 6-12 महीने में बड़बड़ाना शुरू करता है ("बा-बा", "मा-मा", "दा-दा") नाम और परिचित ध्वनियों पर प्रतिक्रिया करता है, सरल शब्दों का अनुकरण करना लगता है। फिर जब बच्चा 1-2 वर्ष का हो जाता है, तब 10-50 शब्द बोलना शुरू करता है और सरल 2-शब्द वाक्यांश ("मम्मा पानी", "पापा आ") और बुनियादी आदेशों का पालन करें कर्ता है ("इधर आओ", "ये करो")
वहीं 2-3 वर्ष में शब्दावली 200-300 शब्द तक विस्तारित होती है, छोटे-छोटे वाक्य बोलता है ("मुझे खेलना है") 2-चरणीय निर्देशों का पालन कर सकता है, वह सरल प्रश्नों का जवाब देता है। वहीं जब बच्चा 3-4 वर्ष का हो जाता है, तब 500+ शब्दों का प्रयोग करता है, प्रश्न पूछता है ("क्यों?", "कैसे?", "कहां?") इस दौरान आपको बच्चों को चित्रों और लघु कथाएं दिखानी सुनानी चाहिए और पढ़वानी भी चाहिए। यहां तक पहुंचते-पहुंचते 75-80 प्रतिशत स्पीच क्लियर होती है। वहीं 4-5 वर्ष लंबे वाक्य और व्याकरण का उपयोग करना प्रारंभ होता है और नए शब्द और विचार व्यक्त कर सकते हैं और अजनबी भी उसकी बात आसानी से समझ में आते हैं और कल्पना और कहानी कहने में सुधार होता है।
माता-पिता की भूमिका
बच्चों में बोलने का कौशल विकसित करने में माता-पिता की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण होती है, इसलिए माता-पिता को यह राय दी जाती है कि वे अपने बच्चों से हर दिन खूब सारी बातें किया करें, नहीं तो चीजें बाद में बिगड़ जाती हैं और हमारे अपने हाथों में कुछ नहीं होता है, इसलिए बच्चों को बचपन से ही माता-पिता को अपने साथ बातें करने के लिए प्रेरित करने की बेहद जरूरत होती है। तो आपको बहुत कुछ से शुरू नहीं करना है, एकदम छोटे-छोटे ही स्टेप्स लेने हैं, जैसे बच्चों से रोज बात करें, छोटी-छोटी बातचीत से शुरू करें। उन्हें कहानियां सुनाएं और उनसे सवाल पूछने का मौका दें। साथ ही तुकबंदी और गाने दोहराने दें, जिसे बच्चा आसानी से शब्द और ध्वनियां सीख सके। साथ ही साथ पिक्चर बुक्स और फ्लैश कार्ड का उपयोग करें, विजुअल सपोर्ट से सीखना बेहतर होता है। यही नहीं आपको एक महत्वपूर्ण काम यह भी करना है कि हर हाल में बच्चों का स्क्रीन टाइम लिमिट कर देना है, क्योंकि स्क्रीन टाइम की वजह से भी बच्चों पर काफी बुरा प्रभाव पड़ता है और साथ ही साथ इंटरैक्टिव प्ले भी अच्छी तरह से शामिल करना है।
हर प्रयास पर प्रोत्साहन करें

आपको इस बात का भी ख्याल रखना है कि आपके बच्चे ने अभी बोलना बस सीखा ही है और वह अपना बेस्ट देने की और कोशिश कर रहे हैं, तो आपको भी इस बात का ख्याल रखना है कि वह जो भी प्रयास करें, आप उनका प्रोत्साहन करें, ताकि उन्हें बढ़ावा मिले और वे और अधिक बातें करने के लिए प्रेरित हो जाएं, इसके लिए बोलने को प्रोत्साहित करने के लिए युक्तियों का अच्छे से इस्तेमाल करें। साथ ही बच्चे को बोलने के लिए हमेशा प्रोत्साहित करें। एक बात का ख्याल और रखना है कि आपको खुद पर सब्र रखना होगा, धीरे-धीरे ही सही बच्चा स्पीड डेवलप कर लेता है, सो एकदम इस बात से घबराने की जरूरत नहीं है। सीखने के माध्यम से सकारात्मक सोच रखें और मनोरंजक गतिविधियां संलग्न करें।
ये भी है सार्थक तरीका
अंग्रेजी भाषा सीखने में कठपुतलियों का उपयोग युवा शिक्षार्थियों को व्यस्त रखने और उनके बोलने के कौशल को विकसित करने में मदद करने का एक मजेदार और प्रभावी तरीका है। कठपुतलियां एक आरामदायक और भयमुक्त शिक्षण वातावरण बनाने में मदद कर सकती हैं, जहां छात्र अपनी अभिव्यक्ति को स्वतंत्र महसूस करते हैं और गलतियां करने के डर के बिना विदेशी भाषा के साथ प्रयोग कर सकते हैं। होता यह है कि बच्चे आसानी से इधर-उधर हो सकते हैं, जिससे उनके लिए कक्षा में पूरी तरह और प्रभावी ढंग से भाग लेना मुश्किल हो जाता है। ऐसे में भाषा कक्षा में कठपुतलियों का उपयोग विदेशी भाषा विकास की बाधाओं को दूर करने का एक बेहतरीन तरीका माना जा सकता है।
यह भी सिखाएं
बच्चों को यह सिखाया जाता है कि कब और कैसे बोलना है और कब नहीं। छोटी उम्र से ही बच्चों को धीरे और सम्मानपूर्वक बोलना सिखाया जा सकता है। लेकिन इस बात का भी ध्यान रखना है कि उन्हें भी सुना जाये। अक्सर, जब बच्चे अपनी बात कहना चाहते हैं तो उन्हें चुप करा दिया जाता है और जब वे बुदबुदाते हैं, तो उन्हें "जोर से बोलने" के लिए कहा जाता है। ये मिले-जुले संकेत बच्चों को भ्रमित कर सकते हैं। परिणामस्वरूप, बच्चे बड़े होकर अपने विचारों और भावनाओं को दबाना सीख जाते हैं, जिससे उनकी संचार क्षमता कमजोर हो जाती है। इसलिए उनसे बातें करते हुए उन्हें सुनना भी बेहद जरूरी है। दरअसल, वाणी और भाषा विकास एक क्रमिक प्रक्रिया है। हर मील का पत्थर महत्वपूर्ण है और फिर आगे बढ़ने के लिए इन मील के पत्थर को पार करना बेहद जरूरी है। अगर माता-पिता कम उम्र में बच्चे को सकारात्मक और भाषा-समृद्ध वातावरण प्रदान करें, तो बच्चे को स्वाभाविक रूप से आत्मविश्वासी, कम्युनिकेटिव और उम्र के अनुरूप वक्ता बना देता है।