यह बेहद जरूरी है कि स्पेशल चाइल्ड के साथ हम सामान्य बर्ताव करें, उन्हें एकसमान समझें, ताकि वे समाज में खुद को अलग-थलग न समझें। हम ऐसा कैसे कर सकते हैं, इस बारे में विस्तार से बता रही हैं झारखंड के साउंड स्पीच एंड हियरिंग केयर की संस्थापक स्पीच लैंग्वेज पैथोलॉजिस्ट मोनम सिन्हा।
समाज समझें जिम्मेदारी, बनाएं खास रिश्ता

स्पीच लैंग्वेज पैथोलॉजिस्ट मोनम मानती हैं कि स्पेशल चाइल्ड के साथ समाज को बिल्कुल सामान्य बर्ताव करना जरूरी है। समाज को भी उन्हें सामान्य समझना ही होगा, क्योंकि हर बच्चे का हक है कि समाज में उन्हें बराबर प्यार और सम्मान मिले। फिर चाहे उस बच्चे की शारीरिक बनावट कैसी है या कैपेबिलिटीज क्या है, उससे कुछ भी मायने नहीं रखता है। हर बच्चा अपने आप में अनोखा होता है। वह अपनी विशेष योग्यताओं के साथ आता है और उन्हें इस बात के लिए सराहना मिलनी चाहिए, जो वे हैं न कि उन बातों के लिए आलोचना जो वे नहीं हैं। ये स्वीकृति समानता को बढ़ावा देती है, हर बच्चा खुद को समान देखें। इससे हर बच्चे में सहानुभूति और करूणा की भावना आती है और एक दूसरे के साथ मिलकर विकास करते हैं। यही नहीं इसमें सभी बच्चों की सामाजिक कुशलताओं में सुधार होता है और स्वीकार्यता सामान्य होती है। ये परिवार में भी प्रमुख भूमिका निभाते हैं, खास उन परिवारों पर जो विशेष जरूरतों वाले बच्चों के साथ अपनी जिंदगी जी रहे हैं। यह हमें समझना होगा कि जब हम एक अच्छा और एक जैसा समान रवैया अपनाते हैं, मानसिक स्वास्थ्य और कल्याण को मजबूती मिलती है, एक परिवार मजबूत बनता है और साथ ही साथ उनके सफर में एक मजबूत स्तंभ का काम करता है।
कैसे हेल्प करते हैं एक्सपर्ट्स

मोनम बताती हैं कि अगर किसी भी माता-पिता को लगता है कि उनके बच्चों में भाषण और भाषा संबंधी समस्याएं हैं या कोई असामान्य लक्षण दिख रहे हैं, तो उनको सबसे पहले एक स्पीच लैंग्वेज पैथोलॉजिस्ट (एसएलपी) के संपर्क में आना चाहिए और बच्चों का एक एसेसमेंट करवाना चाहिए। फिर जो स्पीच थेरेपिस्ट, होते हैं, वे लक्षणों के आधार पर एक एसेसमेंट करके आपको डायगनोसिस देंगे और उसके आधार पर एक पूर्वानुमान( प्रोग्नोसिस)तैयार करेंगे। ये एसेसमेंट मूल रूप से बच्चों के स्पीच और लैंग्वेज यानी भाषा के माइलस्टोंस की जांच है, जो आपको ये बताएगा कि आपका बच्चा अपनी उम्र से कितना पीछे है। साथ ही, अगर बच्चे में कोई और व्यवहार संबंधी( behavioral symptoms) लक्षण हैं, तो एक स्पीच थेरेपिस्ट आपको एक ऑक्युपेशनल थेरेपिस्ट या फिजियोथेरेपिस्ट के पास भेज सकता है, जो व्यवहार संबंधी मुद्दे पर उनका सहयोग करेंगे। दरअसल, एक स्पीच थेरेपिस्ट चरण-दर-चरण बच्चे की भाषा विकास पर काम करता है। वे बच्चे को भाषा का उपयोग करना, शब्दावली का निर्माण करना, व्याकरण पर काम करना, और वाक्य संरचना बनाना में मदद करते हैं। स्पीच थेरेपिस्ट एक्सप्रेसिव लैंग्वेज स्किल्स (expressive language skills) पर भी काम करते हैं, जिसमें वे बच्चों को भाषा का सही तरीका सिखाते हैं, विशेष रूप से सामाजिक परिस्थितियों में और व्यावहारिकता (भाषा के सामाजिक नियम) भी सिखाते हैं। यह जानना जरूरी है कि ये चिकित्सक सामाजिक कौशल प्रशिक्षण भी देते हैं, जो सामाजिक संचार का निर्माण करने में मदद करता है। ये स्पीच क्लैरिटी और फ्ल्युएंसी डिजॉर्डर्स, जैसे सटरिंग (हकलाना) पर भी काम करते हैं। साथ ही स्पीच थेरेपिस्ट वॉयस डिसऑर्डर का भी इलाज करते हैं। ये संज्ञानात्मक संचार कौशल (cognitive communication skills) पर भी काम करते हैं, जो स्मृति, ध्यान, समस्या-समाधान कौशल जैसे हिस्सों को कवर करता है, जो प्रभावी संचार और सीखने के लिए जरूरी है। स्पीच थेरेपिस्ट ऑगमेंटेटिव एंड अल्टरनेटिव कम्युनिकेशन (एएसी) भी प्रदान करते हैं, जिनमें गैर-मौखिक(non-verbal) बच्चे या जिनमें गंभीर कम्युनिकेशन की चुनौतियां हैं, वे लोगों को एक्सप्रेस करने के तरीके सिखाते हैं। इसमे सांकेतिक भाषा, पीईसीएस (पिक्चर एक्सचेंज कम्युनिकेशन सिस्टम) और स्पीच जनरेटिव डिवाइस शामिल हैं, जैसे हाई-टेक सॉल्यूशंस में टैबलेट या कंप्यूटर जो टेक्स्ट को स्पीच में बदलते हैं। यहां तक कि स्पीच लैंग्वेज पैथोलॉजिस्ट फीडिंग से जुड़ी सहायता भी देते हैं, जिनके रोगियों को सुरक्षित और प्रभावी भोजन के लिए ओरो-मोटर कौशल में सुधार करने में मदद मिलती है।
पेरेंट्स की भूमिका और पहला कदम

जब किसी माता-पिता को ये पता चलता है कि उनके बच्चे में कोई समस्या है और वो दूसरे बच्चों से थोड़े अलग हैं, तो सबसे पहले वे स्वीकार नहीं कर पाते, तो थेरेपिस्ट का काम है कि वे माता-पिता को उनके बच्चों की समस्याओं के बारे में बताएं, उनके लक्षणों को समझें, और ये बताएं कि बच्चे अपनी उम्र के दूसरे बच्चों से कैसे अलग हैं। थेरेपिस्ट को यह भी समझाना जरूरी है कि ट्रीटमेंट प्लान क्या होगा। साथ ही माता-पिता को सबसे ज्यादा जो चिंता होती है, वो ये होती है कि उनका बच्चा समाज में स्वीकार नहीं होगा। उन्हें ये डर होता है कि दूसरे लोग उनके बच्चों को अलग तरीके से देखेंगे। ये समझना जरूरी है कि स्पीच थेरेपिस्ट का रोल सिर्फ ट्रीटमेंट तक सीमित नहीं है, लेकिन माता-पिता को ये भी समझाते हैं कि समाज में हर बच्चा अलग होता है और कैसे अपने बच्चे की विशिष्टता को स्वीकार किया जा सकता है। अगर चिकित्सक, माता-पिता को थेरेपी में शामिल करते हैं, तो बच्चे की सुधार जल्दी आती है। इसलीये थेरेपी को एक टीम वर्क की तरह इलाज करना जरूरी है। थेरेपिस्ट को उचित घरेलू प्रशिक्षण देना चाहिए और माता-पिता को ये समझाना चाहिए कि दीर्घकालिक और अल्पकालिक लक्ष्य क्या हैं, और उन पर क्या काम करना है। थेरेपी रणनीतियों को समझाना भी उतना ही जरूरी है, ताकि माता-पिता को पता हो कि किस तारीख से वे अपने बच्चे के लिए बेहतर परिणाम ला सकें। इसलिए माता-पिता को शिक्षित करना जरूरी है , क्योंकि इससे उन्हें आत्मविश्वास देने में मदद मिलती है। जब माता-पिता को अपने बच्चे के इलाज के लक्ष्य और उनके दैनिक जीवन की चुनौतियों का समाधान पता होता है, तो उनकी मजबूरी महसूस नहीं होती।
कैसे समझें क्या करना है

मोनम कहती हैं पेरेंट्स जितना जल्दी समझ लें, उतना अच्छा है। जैसे ही आप अपने बच्चे में कुछ अलग लक्षण देखें, एक स्पीच लैंग्वेज पैथोलॉजिस्ट से सलाह लें और एसेसमेंट कराएं और अगर कोई समस्या पैदा हो जाए, तो इलाज जितनी जल्दी शुरू करेंगे, उतना बेहतर होगा। साथ ही साथ अगर बच्चे को व्यवहारिक समस्याएं हो प्रोफेशनल चिकित्सक से सलाह लें और अगर चलने फिर में दिक्कत है तो एक फिजियोथेरेपिस्ट की मदद लें। एक बात का और ध्यान रखना जरूरी है कि आपको अपने बच्चे का हर हाल में साथ देना जरूरी है, कभी आपको आपके बच्चे को यह नहीं दर्शाना है कि वे अलग हैं या उनमें कोई समस्या है। आप उन लोगों से हमेशा दूर रहें, जो आपके बच्चे का उपहास बनाते हों। कभी अपने बच्चे को बेबसी की नजर नहीं देखें, अगर पेरेंट्स का बर्ताव उनके साथ सामान्य होगा, तो बच्चे खुद सामान्य रहेंगे। आपको यह समझना ही है कि हर सामाजिक परिस्थिति में अपने बच्चे के साथ होना है। अपने बच्चों को अपनाना ही है, जैसे वो हैं। एक बात का आप और ख्याल रख सकती हैं कि आपको एक संरचित दिनचर्या बनाना है। एक संगठित और नियम से चलने वाला रूटीन तैयार करें। इस बच्चे को नए लक्ष्य अपने और लक्षणों पर काम करने में मदद मिलेगी। और जो सबसे महत्वपूर्ण है वह है हमेशा सकारात्मक सोच रखें। बच्चों की छोटी से छोटी प्रगति का उत्सव मनाएं। उन्हें कभी भी सार्वजनिक जगहों पर जाने से न रोकें, उन्हें कभी भी सिर्फ घर में रखने की कोशिश न करें, वे जितना एक्सप्लोर करेंगे, उनके जीवन में चीजें आसान हों। एक बात का जो आपको ख्याल रखना है कि आपको अपने बच्चे को किसी विकार की नजर के रूप में नहीं देखना है, बल्कि उनकी क्षमताओं को समझना जरूरी है और उन्हें उतना ही प्यार, देखभाल और सम्मान दें, जैसे किसी और बच्चे को देते हैं। इसमें माता-पिता का सहयोग और सलाह के अनुसार काम करना बहुत जरूरी होता है, यह हर माता-पिता से अनुरोध है कि वे अपने बच्चों को बेहतर स्वास्थ्य के लिए पार्क और मॉल जैसे अधिक सार्वजनिक स्थलों पर ले जाएं।
दें साथ

मोनम कहती हैं कि उनका माता-पिता से निवेदन है कि अपने बच्चे की तुलना दूसरे सामान्य या अव्यवस्थित बच्चों से न करें। हर बच्चा अपने आप में अनोखा होता है, उनके लक्षण भी अलग होते हैं। यह बेहद जरूरी है कि बच्चे समय-समय पर चीजों में अन्य बच्चों की तरह भाग ले। तकनीक सीखें और घर पर प्रशिक्षण का पालन करें। ये जल्दी पूर्वानुमान के लिए अत्यंत जरूरी है। उन्हें सवाल पूछने का हक दिया जाये। साथ ही प्रगति को ट्रैक करने के पत्रिकाएं शुरू करें। इसे आप अपने बच्चे के सुधार को देख पाएंगे और एक उपलब्धि का एहसास होगा। इस बात को भी समझना होगा कि विशेष बच्चों के साथ काम करना एक लंबी प्रक्रिया है। छोटी-सी कामयाबी भी देखने में समय लग सकता है। इसलिए माता-पिता से अनुरोध है कि वे निरंतर प्रयास करते रहें और अपना मोटिवेशन बनाएं रखें। स्कूलों को चाहिए कि स्कूलों को समावेशी शिक्षा को बढ़ावा दें, जिसे बच्चों में एक दूसरे को स्वीकार करने की प्रवृति बढ़े। समाज की आलोचना की चिंता किए बिना, अपने बच्चे के सही इलाज के लिए माता-पिता को अपने चिकित्सक के बताए गए सुझावों पर अमल करना चाहिए। ये काम आसान नहीं है, लेकिन ये आपके बच्चे के भविष्य का सवाल है। याद रखें बच्चों के विकास में ये छोटी-छोटी कोशिशें बहुत महत्वपूर्ण होती हैं, क्योंकि हर बच्चा अपने तरीके से सीखता है और इस सफर में माता-पिता का सहयोग, प्यार और विश्वास ही उसके सपनों को पंख दे सकते हैं।