बच्चों की मानसिक और भावनात्मक जरूरतों को समझने के लिए धैर्य और संवेदनशीलता की जरूरत होती है। आइए जानते हैं किस तरह आप उनके व्यवहार, भावनाओं और जरूरतों पर ध्यान देकर उन्हें एक खुशहाल और आत्मनिर्भर इंसान बनाने में मदद कर सकती हैं।
पहचाने बच्चों की भावनात्मक जरूरतों को

बच्चों की भावनात्मक जरूरतों को समझने का सबसे पहला उपाय यह है कि आप उनके रोजमर्रा के व्यवहार पर ध्यान देंबच्चों की मानसिक और भवनात्मक स्वास्थ्य उदाहरण के तौर पर यदि आपका बच्चा दोस्तों और परिवार के साथ घुलने-मिलने की बजाय अकेले रहना पसंद करता है, छोटी-छोटी बातों पर रोता या गुस्सा हो जाता है या फिर अपनी भावनाओं को दबा रहा है और खुलकर नहीं बता रहा, तो उनकी भाषा और बातचीत पर विशेष ध्यान दें। विशेष रूप से यदि आप उनके मुंह से ‘मुझे कोई पसंद नहीं करता’, ‘मैं किसी काम का नहीं’, या ‘मुझे सब छोड़ देंगे’, जैसी नकारात्मक बातें कहते सुनें, तो सतर्क हो जाएं, क्योंकि हो सकता है वह अंदर से परेशान हो। इसके अलावा यदि आपका बच्चा बार-बार ‘गुस्सा’, ‘नाराज’, या ‘उदास’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल करता है, तब भी जरूरत है कि आप उसे समझें।
शारीरिक संकेतों के साथ
कई बार बच्चे स्कूल जाते समय या दूसरे बच्चों के साथ खेलते जाते समय पेट दर्द या सिर दर्द की शिकायत करते हैं। यह स्ट्रेस या एंग्जायटी का संकेत हो सकते हैं, ऐसे में शारीरिक संकेतों पर ध्यान दें। इसके अलावा यदि वे लगातार सुस्त रहते हैं, बिना कारण कहीं भी सो जाते हैं या देर रात तक जागते रहते हैं, तो आपको सतर्क हो जाना चाहिए। साथ ही यह भी देखा गया है कि मानसिक और भावनात्मक रूप से कमजोर बच्चे बार-बार खुद को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करते हैं, यदि ऐसा कुछ अनुभव आपको भी हो रहा हो, तो यह गंभीर संकेत हो सकते हैं, जिन पर आपको तुरंत ध्यान देने की जरूरत है।
नजरअंदाज न करें बच्चों की मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं

यदि आपको लगता है कि आपका बच्चा गंभीर भावनात्मक समस्याओं से जूझ रहा है, तो चाइल्ड साइकोलॉजिस्ट या काउंसलर से सलाह लेने में आपको बिल्कुल संकोच नहीं करनी चाहिए। यकीन मानिए थेरेपी से बच्चे को अपनी भावनाएं कंट्रोल करने और व्यक्त करने में मदद मिलती है। इसके अलावा यदि बच्चे को स्कूल में किसी तरह की कोई परेशानी हो रही है, तो आपको टीचर्स और काउंसलर से बात करनी चाहिए। संभव हो तो अपने बच्चे के लिए एक निश्चित समय पर खाने, खेलने, पढ़ाई करने और सोने का समय तय करें और उनसे प्यार से इसे फॉलो करवाएं। उनके छोटे-छोटे अचीवमेंट्स की तारीफ करें, फिर वह चित्र बनाना हो, पहेली सुलझाना हो या स्कूल प्रोजेक्ट पूरा करना हो। गलती से भी उनकी उनकी तुलना किसी और बच्चे से न करें।
जरूरी है मजबूत पारिवारिक सपोर्ट
ध्यान रखिए, आपका बच्चा मानसिक और भावनात्मक रूप से मजबूत रहे, उसके लिए जरूरी है कि आप अपने परिवार का सपोर्ट सिस्टम मजबूत करें। जहां तक संभव हो उन्हें अपने दादा-दादी, चाचा-चाची, भाई-बहनों के साथ समय बिताने का मौका दें, क्योंकि एक मजबूत पारिवारिक सपोर्ट से बच्चों में आत्मविश्वास और भावनात्मक स्टेबिलिटी आती है। परिवार के साथ उन्हें अपना समय भी दें और अपने दिन का कुछ समय आप अपने बच्चे के साथ बिताने की कोशिश करें, फिर वह चाहे 15-20 मिनट ही क्यों न हो। उनसे बातें करें, उन्हें कहानियां सुनाएं, और उनकी दुनिया को समझने की कोशिश करें। हालांकि इन सबके बीच अपने बच्चे के ऑनलाइन व्यवहार पर भी नजर रखें और उनके स्क्रीन टाइम को सीमित करते हुए उन्हें टेक्नोलॉजी का सही इस्तेमाल सिखाएं।
बच्चों के लिए एक्सपर्ट इनपुट

इस सिलसिले में चाइल्ड सायकोलॉजिस्ट हिरल खिमानी कहती हैं, “बच्चे उम्र से ही नहीं, दिमाग से भी छोटे होते हैं, और अपनी जरूरतों को ठीक से नहीं समझ पाते। ऐसे में आपको चाहिए कि आप उनकी जरूरतों को समझें। सबसे पहली बात तो उन्हें भावनात्मक सुरक्षा देते हुए यह एहसास कराएं कि वे जो भी महसूस कर रहे हैं, वह नॉर्मल है, बजाय इसके कि आप उसका हौव्वा बना दें या फिर उनकी भावनाओं का मजाक उड़ाएं। इसके अलावा यदि आपका बच्चा आपके पास किसी डर के साथ आए तो उसके डर को सुनने और समझने की कोशिश करें। कई बार वे शब्दों की बजाय इशारों में भी अपनी भावनाएं जाहिर करते हैं, तो उनकी बॉडी लैंग्वेज पर ध्यान दें। इसके अलावा अपने बच्चों को भावनात्मक और मानसिक रूप से मजबूत करने से पहले जरूरी है कि आप भी खुद को मानसिक रूप से मजबूत रखें।”