बच्चों को 3 साल की उम्र में स्कूल भेजने की योजना माता-पिता बनाते हैं। लेकिन इससे पहले माता-पिता को एक सही तैयारी करनी होती है। जाहिर सी बात है कि स्कूल जाना हर बच्चे के जीवन में एक खास पड़ाव होता है। यह बच्चे के जीवन का नया अध्याय होता है, जहां उसे किताबी ज्ञान के साथ समाज के बीच रहकर भी अपने जीवन की नई शुरुआत करनी होती है। एक नए वातावरण, नई दिनचर्या और नए लोगों के साथ उसका पहला परिचय भी होता है और माता-पिता उनके जीवन के इस जरूरी कदमों में कैसे उनका साथ देते हैं, यह काफी जरूरी होता है। आइए जानते हैं विस्तार से।
मानसिक तैयारी

बच्चों को स्कूल भेजने से पहले उनकी मानसिक तैयारी पूरी होनी चाहिए। माता-पिता को धीरे-धीरे बच्चे के मन में स्कूल के प्रति सकारात्मक सोच पैदा करनी चाहिए। माता-पिता को बच्चों को बात-बात में यह बताना चाहिए कि वहां दोस्त मिलेंगे, खेल होगा, कहानी सुनाई जााएगी। साथ ही बच्चों को आपको जिस भी स्कूल में भेजना है, वहां के वातावरण में बच्चों को एडमिशन के पहले लेकर जाएं और बच्चे के साथ वहां पर कुछ समय बिताएं। इससे बच्चे के दिमाग में भी माहौल की छवि पहले से रहती है और उनके मन में नई जगह का डर नहीं रहता है। कहानी, चित्र पुस्तकों, कार्टून्स आदि के माध्यम से भी स्कूल को रोचक तरीके से समझाया जा सकता है। बच्चे को यह आश्वासन दें कि स्कूल में वह सुरक्षित रहेगा और शाम को आप उसे लेने जरूर आएंगा।
बच्चों के लिए सही टाइम टेबल बनाना

आपके लिए बहुत जरूरी है कि सही टाइम टेबल बनाना बहुत जरूरी है। सही टाइम टेबल आपके बच्चे के लिए सही दिनचर्या भी बनाती है। आपको बच्चे के सोने का समय और फिर सुबह उठना, नाश्ता, खाना और तैयार होना, यह सारी आदतों को विकसित करना होगा। अगर आप पहले से बच्चों में यह आदत विकसित करती हैं, तो बच्चे को स्कूल शुरू होने पर किसी भी तरह की कठिनाई नहीं होगी। इसके लिए आप स्कूल शुरू होने के 4 सप्ताह से पहले घर में स्कूल जाने वाला माहौल बनाएं। आपको सबसे पहले बच्चे के रात के सोने का सही समय और सुबह उठने का समय तय करना होगा। आपको बच्चे को सुबह उठाने की आदत डालनी चाहिए। इसके लिए बच्चे का सही समय पर सोना जरूरी है। अगर बच्चा सही समय पर नहीं सोता है, तो सुबह उठने में उसे परेशानी होगी और चिड़चिड़ापन आएगा। इसके अलावा बच्चे के लिए पौष्टिक और एनर्जी से भरे डायट को पालन करें। फल, सब्जियां, मिल्क शेक और बच्चों के खाने का हिस्सा बनाएं। कपड़े पहनने और बाथरूम की छोटी-छोटी गतिविधियां स्वयं करने का अभ्यास कराएँ।
लोगों से मिलना

बच्चा जब घर से बाहर निकलता है, तो लोगों से मिलता है। ऐसे में बच्चों को सामाजिक कौशल सीखना बहुत जरूरी है। बच्चों को थैंक यू, सॉरी, प्लीज जैसे शब्दों का प्रयोग सिखाएं। खिलौने बांटना, साथ खेलना और साथ ही इंतजार करना सिखाएं। यदि बच्चा लोगों से मिलना पसंद नहीं करता है, तो उसे अपने सोसायटी के गार्डन में लेकर जाएं और दूसरे बच्चों से मिलवाएं। अगर इन सबके बीच बच्चे से कभी कोई गलती हो जाती है, तो उसे डांटना नहीं चाहिए। शांत होकर बात करना सिखाएं। इसके साथ ही आपको बच्चे में यह भाव डालना होगा कि आप उनके सबसे अच्छे दोस्त हैं और आपसे बच्चे अपनी हर बात को साझा कर सकते हैं। इसकी तैयारी के लिए आपको बच्चों में यकीन का भाव डालना होगा। इसके साथ ही आपको अपने पूरे दिन की बात बच्चे से शेयर करनी होगी और फिर बच्चे से कहना होगा कि अब वो भी अपने पूरे दिन की बात बताएं। आपको एक गेम की तरह इसे अपने रूटीन में शामिल करना होगा। साथ ही आपको बच्चे को यह भी बताना होगा कि किस तरह आप भी छोटी-बड़ी परेशानियों का सामना करती रहती हैं और उसमें से बाहर आने के लिए विचार भी करती हैं।
भावनात्मक तौर पर मजबूती मिलना

आपको बच्चे को भावनात्मक तौर पर मजबूत बनाना जरूरी है। स्कूल जाने के दौरान कई बच्चे अपने माता-पिता के लिए रोते हैं और स्कूल जाने से घबराते हैं। ऐसे में माता-पिता को बच्चों का साथ देना चाहिए। अचानक बच्चों को खुद से दूर करने की बजाएं। आपको बच्चे को घर में किसी अन्य सदस्य के पास कुछ देर के लिए छोड़कर बाहर जाना चाहिए। साथ ही आपको खुद को भावनात्मक तौर पर मजबूत करना चाहिए। अगर आप कमजोर रहेंगे, तो इसका असर बच्चे के भी विकास पर होता है। घर लौटने पर उसकी बात ध्यान से सुनें और उसकी छोटी-छोटी उपलब्धियों की सराहना करें।
बच्चों को सिखाएं सफाई

अगर आप बच्चों को छोटी उम्र से सफाई की सीख देनी चाहिए। स्कूल में बच्चे कई अन्य बच्चों के संपर्क में आते हैं, इसलिए स्वास्थ्य और स्वच्छता संबंधी बुनियादी बातों का होना जरूरी है। सबसे जरूरी है कि आपको बच्चे को हाथ धोने की आदत सिखाएँ—टॉयलेट के बाद, खाना खाने से पहले और बाहर से आने पर। रूमाल का उपयोग करना, छींकते समय मुँह ढकना जैसी बातें समझाएँ। पौष्टिक भोजन दें और जंक फूड से बचाएँ, ताकि बच्चा सक्रिय और स्वस्थ रहे। अगर बच्चा किसी तरह की एलर्जी का शिकार है, तो स्कूल जाने से पहले इस बारे में अपने चिकित्सक से जरूर संपर्क करें।
बच्चे को आत्मनिर्भर बनाना

यह ध्यान रखें कि स्कूल में बच्चे को अपने काम खुद ही करने होते हैं। ऐसे में आपको उसका सहारा नहीं बनना है, बल्कि उसे अपना साथी बनाएं। बच्चे को समझाएं कि कैसे उसके लिए खुद का ख्याल खुद रखना जरूरी है। बच्चे को खुद का काम खुद से करना आना चाहिए, जैसे कि अपना बैग खोलना और बंद करना, लंच बॉक्स खुद पैक करके रखना, पानी की बोतल भरकर रखना, अपने जूते और मौजे पहनना और निकालना। इसके साथ पेंसिल बॉक्स रखना और सामान का ध्यान रखना भी होता है। इसके लिए आपको बच्चे को 2 साल की उम्र से सारी आदत सीखानी चाहिए। बच्चे को अपना पानी का गिलास उठाकर सही जगह रखना। इसके साथ ही अपने खिलौनों को सही जगह रखना। अपने कपड़ों को ठीक से रखने के काम में शामिल करना चाहिए। इन सारी छोटी-छोटी जिम्मेदारियों से आपके बच्चे में आत्मविश्वास बढ़ता है।
बच्चे को बताएं डर का सामना कैसे करें
कई बच्चे स्कूल की बड़ी इमारत, नए लोगों या अलग वातावरण से डर सकते हैं। इन भावनाओं को हल्के में न लें। बच्चे की बात ध्यान से सुनें—कहाँ डर लग रहा है, क्यों नहीं जाना चाहता आदि। उसके डर को अनदेखा न करें बल्कि पूरी संवेदनशीलता से उसे समझने की कोशिश करें। अगर आपका बच्चा अपने किसी डर को आपसे साझा कर रहा है, तो उसे समझाएं और यह विश्वास दिलाएं कि आप उनके साथ हैं और उसे डरने की कोई जरूरत नहीं है। आप बच्चे के डर का समाधान कहानी, खेल, चित्र या उदाहरणों की मदद से करें। इसके अलावा उसे अन्य बच्चों की सकारात्मक कहानियाँ सुनाये जो स्कूल में खुश रहते हैं।