पेरेंटिंग के कई सारे तरीके होते हैं, जो यह बताते हैं कि किस तरह बच्चे की परवरिश करनी चाहिए और कौन-सा तरीका पेरेंटिंग के लिए सही नहीं होता है। इसी में से एक पेरेटिंग का तरीका 'फ्री रेंज पेरेंटिंग' कहलाता है। यह पेरेंटिंग का एक ऐसा तरीका है, जहां पर बच्चों को आजादी दी जाती है। इस तरीके से बच्चे अपने जीवन के सभी फैसले खुद स्वतंत्र होकर लेते हैं। इस वजह से बच्चों का विकास सही दिशा में आगे बढ़ता है। इस तरीके से बच्चों का आत्मविश्वास बढ़ता है। यह पेरेंटिंग शैली बच्चों को अधिक सुरक्षित और नियंत्रण न करने का नायाब तरीका है, ताकि वे अपने अनुभवों से सीख सकें और आत्मनिर्भर बन सकें। आइए जानते हैं इस पेरेंटिंग के तरीके की खूबी क्या है।
आजादी और जिम्मेदारी

काउंसलर श्वेता इस पेरेंटिंग के तरीके को बच्चों के लिए सकारात्मक मानती हैं। इस पेरेंटिंग स्टाइल में बच्चों को अपने जीवन के हर फैसले को खुद लेने की आजादी दी जाती है। इस तरीके से बच्चे अपनी जिम्मेदारियां समझते हैं और अपने जीवन की हर छोटी-बड़ी चुनौती का सामना खुद करते हैं और परेशानियों को सुलझाने की कोशिश करते हैं। इससे कहीं न कहीं उनके आत्मविश्वास में बढ़त होती है। इसके जरिए माता-पिता अपने बच्चे को अच्छी तरह से समझ पाते हैं और साथ ही अपने बीच के रिश्ते को और भी अधिक मजबूत करते हैं।
सीमित निगरानी होना

फ्री रेंज पेरेंटिंग में बच्च को खुले पंख मिलते हैं कि वे अपने जीवन से अपने माता-पिता को भी रूबरू करवा पाते हैं। बच्चों पर माता-पिता के परवरिश का कोई बोझ नहीं रहता है। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि माता-पिता बच्चों को लगातार निगरानी में नहीं रखते हैं, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि माता-पिता का ध्यान बच्चों पर नहीं रहता है, बल्कि सुरक्षा का सकारात्मक घेरा रहता है, जो बच्चों को माता-पिता से खुलकर बात करने का अवसर देती है।
रिश्ते में बढ़ता विश्वास

फ्री रेंज पेरेंटिंग के तरीके से बच्चे रिश्ते पर यकीन करना सीखते हैं। देखा जाए, तो यह कहना बहुत ही आसान होता है कि माता-पिता को बच्चों का दोस्त बनना चाहिए, लेकिन आपको बता दें कि बच्चे अपने माता-पिता के बर्ताव से इस बात का चयन करते हैं कि उन्हें माता-पिता से दोस्ती करनी है या नहीं। अगर आप अपने बच्चे को हर छोटी-बड़ी चीज पर रोक टोक करते हैं, तो इससे बच्चे कुछ समय के बाद आपके दूर रहने लगते हैं। एक वक्त के बाद बच्चे माता-पिता से अपनी निजी जिंदगी की खुशी और परेशानियों को साझा करना कम कर देते हैं और बातों को छिपाने लगते हैं, वहीं अगर आप अपने बच्चों की सोच को उड़ान देते हैं, उसकी हर छोटी-बड़ी बात पर चिढ़कर जवाब नहीं देते, तो इससे रिश्तों में यकीन बढ़ता है। आपसी बातचीत में किसी भी तरह की कोई झिझक नहीं रहती है।
जोखिम होगा कम

माता-पिता को हमेशा इस बात का डर रहता है कि उनके बच्चों को दुनियादारी की समझ नहीं है, ऐसे में कोई उन्हें गुमराह न कर दें। ऐसे में माता-पिता बच्चों को लेकर कई बार सख्त बन जाते हैं, हालांकि माता-पिता को बच्चों को लेकर यह फ्रिक होना आम बात है। फ्री रेंज पेरेंटिंग शैली को अपनाने से पहले भी माता-पिता को इस बात की फ्रीक रहती है कि कहीं आजादी का गलत फायदा बच्चे न उठाएं या फिर किसी गलत रास्ते पर न निकल जाएं। माता-पिता को इस बात को समझना चाहिए कि अगर माता-पिता का विश्वास और प्यार उनके साथ है, तो उन्हें किसी भी बात की चिंता करने की आवश्यकता नहीं होती है। आपको अपने बच्चे के साथ ऐसा रिश्ता कायम करना है कि बच्चे अपने रिश्ते की हर छोटी-बड़ी उलझनों और परेशानियों को साझा करें, इससे भविष्य में अपनी किसी भी परेशानी को सुलझाने से पहले या उस पर कोई फैसला लेने से पहले इसका जिक्र बच्चे अपने माता-पिता से जरूर करते हैं। इससे जोखिम कम हो जाता है। आपको यह ध्यान रखना है कि बच्चे के साथ माता-पिता को डर का नहीं प्यार और दोस्ती का रिश्ता कायम करना है।
क्या है एक्सपर्ट की राय

चाइल्ड काउंसलर श्वेता अपनी राय साझा करते हुए कहती है कि फ्री रेंज पेरेंटिंग के जरिए बच्चों में आत्मविश्वास, आजादी और फैसले लेने की क्षमता विकसित होती है। उनका यह कहना है कि यह पेरेंटिंग शैली बच्चों को ज्यादा सुरक्षा और चिंता से बाहर निकालने में सहायक होती है। भविष्य में उन्हें जीवन के लिए बेहतर तरीके से तैयार होने में सहायता मिलती है। कुछ जानकारों का कहना है कि इस पेरेंटिंग शैली में सीमाएं और निगरानी का ध्यान रखना प्रमुख है, इससे बच्चे अनचाहे खतरे से बच जाते हैं।