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होम / एन्गेज / रिलेशनशिप्स / फ़ैमिली ऐंड फ्रेंड्स

महफूज है जहां बचपन हमारा, मां के पल्लू जैसा करिश्मा कोई दूसरा नहीं

प्राची |  जनवरी 16, 2024

मां के पास कई सारे गहने हैं, कई सारी रंग बिरंगी साड़ियां उनकी खूबसूरती को और भी निखारती हैं, लेकिन हर बेटी के लिए सबसे खास है, मां का वो पल्लू, जो कि विरासत में हर बेटी को मिलता है। हम महिलाएं अपने परिवार या करीबी लोगों के बीच किसी एक रिश्ते के साथ मां जैसी बन जाती हैं। हम महिलाओं के पास प्यार और समर्पण के रंग में रंगा मां का पल्लू होता है। मां का पल्लू मतलब ममतामयी एहसास, जिसकी जरूरत हर किसी को कभी न कभी पड़ती है।

मां का चमत्कारी पल्लू

मानव ने विज्ञान के जरिए की सारे आविष्कार किए हैं, लेकिन जिस तरह एक मां ने पल्लू का आविष्कार कर उसे अहमियत बढ़ाई है, वो चमत्कारी ही है। कभी मां ने पल्लू से अपना सिर ढंक लिया, तो कभी उसी पल्लू को रूमाल बनाकर उससे हाथ पोछ लिया, कभी उस पल्लू से मां ने अपने चेहरे की थकान को मिटाया, तो कभी उसी पल्लू से गर्म दूध के पतीले को उठाया, मां ने तो अपने इस पल्लू को सिक्कों का पिटारा भी बना दिया था। मां ने इस पल्लू के सहारे अपनी चिंता, थकान, खुशी और गम का हर रिश्ता गांठ मारके रखते हुए पूरी उम्र गुजार देती हैं।

अगर मां का पल्लू न होता… 

बचपन में इस पल्लू में बीच बिछे आंचल में निंदिया रानी का इंतजार करने से लेकर, अपने पहले कदम के साथ मां के इस पल्लू का सहारा मिलने तक, या फिर मां के हाथ का दो कौर खाकर, उनके पल्लू में अपने मुंह को पोछ खेलने के लिए भाग जाना हो, या फिर आंख में गई मिट्टी को मां के पल्लू से भगाना हो और भला, उस वक्त को कैसे भूला जाए जब सुकून की नींद के लिए मां के पल्लू की छांव हो, जिसकी कमी बड़े होकर झिझक में बदल जाती है, कि अब तो बड़े हो गए, कैसे मां के पल्लू में सोएं। या फिर किसी वजह से मां से दूरी तकलीफ में मां का पल्लू याद कर रोएं खड़े कर देती है।

छुट्टी  के दिन मां के पल्लू की प्यास और गहरी

पहले छुट्टी का रविवार आता था, तो मां से यह कह कर निकल जाते थे कि घूमने जा रही हूं, अब जब छुट्टी का रविवार आता है, तो अपने रास्ते से गुजरने वाली उस बस या ट्रेन को जाकर देखती हूं, जो मां के घर की शीतल छांव से गुजर कर मेरे रास्ते तक पहुंचती है। हर रविवार को मां के पल्लू की प्यास उम्र के साथ और गहरी हो जाती है, हालांकि अपने फोन में वीडियो कॉल के जरिए मां को देख राहत मिल जाती, लेकिन मां के पास न होने का अहसास उनकी कमी को और पुख्ता कर जाता है। 

बेटियों के दुपट्टे से चिपका मां का पल्लू

अब तो ऐसा लगता है कि मां के पल्लू का एक हिस्सा हम बेटियों के दुपट्टे से चिपक गया है, जहां शादी के बाद अपने दूसरे रिश्ते को लेकर मां के पल्लू वाली ममता हमारे दुपट्टे में बस जाती है। कभी पति के लिए मां जैसी खाने की फ्रिक तो कभी अपनी मां की ही तबीयत को लेकर मां जैसी चिंता दुपट्टे की तरह हम बेटियों से लिपटती रहती है। हर उस बेटी के पास मां के पल्लू की ममतामयी अनमोल भेंट जरूर होती है, जिससे उसका परिचय कभी सहेली बनकर होती है, तो कभी बहन या पत्नी के रिश्ते में ढलने के दौरान होता है। सच में, हम बेटियों की जिंदगी में मां का पल्लू अतुलनीय है, दुनिया के किसी भी सुख से इसकी तुलना नहीं की जा सकती है।

 

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