चारों तरफ चहल पहल है, क्योंकि गणपति बप्पा के आगमन का जश्न शुरू हो चुका है। ऐसे में यह बात जगजाहिर है कि गणेश ज्ञान और बुद्धिजीवी है और अपने माता-पिता के प्रति समर्पण का प्रतीक माने जाते हैं। तो उनके व्यक्तित्व के ऐसे कई पारिवारिक नैतिक मूल्य हैं, जो हम उनसे सीख सकते हैं। तो गणेश चतुर्थी के अवसर पर आइए उनके कुछ ऐसे मूल्यों पर नजर डालते हैं, जो हमें सिखाते हैं पारिवारिक महत्त्व।
मां के प्रति निष्ठा
पुराणों में यह कहा गया है कि एक दिन देवी पार्वती ने स्नान करते समय प्रवेश द्वार की रक्षा के लिए अपने पुत्र गणेश को बैठाया। भगवान शिव उसी समय घर लौट आए लेकिन गणेश ने उन्हें घर में प्रवेश नहीं करने दिया। शिव के दैवीय क्रोध में गणेश ने अपना सिर खो दिया, लेकिन अपनी मां के विश्वास को नहीं तोड़ा और अपने कर्तव्य का उल्लंघन नहीं किया। जब पार्वती को यह पता चला, तो वह क्रोधित हो गयीं और उन्होंने दुनिया को नष्ट करने का फैसला किया। शिव ने पार्वती को रोका और अपनी गलती का एहसास किया और गणेश को नया जीवन और देवताओं में सबसे प्रमुख होने का दर्जा दिया। अपनी मां के प्रति गणेश का यह प्यार, विश्वास और ईमानदारी आज भी लोगों में होना जरूरी है।
पूरी दुनिया है 'माता-पिता'
पौराणिक कहानियों के अनुसार एक बार देवी पार्वती के पास उनके दोनों पुत्रों गणेश और कार्तिकेय के लिए एक दिव्य फल था। भगवान शिव ने निश्चय किया कि जो तीन बार दुनिया का चक्कर लगाएगा और सबसे पहले वापस आएगा, उसे पुरस्कार के रूप में यह फल मिलेगा। कार्तिकेय तेजी से अपने मोर पर सवार हुए और अपनी यात्रा पर निकल पड़े। वहीं, थोड़ा सोचने के बाद गणेश अपने वाहन चूहे पर सवार होकर अपने माता-पिता, भगवान शिव और पार्वती के चारों ओर घूमने लगे। जब शिव-पार्वती ने उनसे पूछा कि वह दुनिया का चक्कर छोड़ उनके चक्कर क्यों लगा रहे है, तो गणेश ने जवाब दिया- 'मेरी दुनिया मेरे माता-पिता के चरणों में है।' उन्होंने न केवल फल जीता, बल्कि अन्य देवताओं के प्रशंसा के हकदार बनें। इस प्रसंग से उन्होंने साबित किया कि जीवन में माता-पिता से बढ़ कर कुछ नहीं है।
भाइयों के बीच हमेशा बना रहा प्यार
पौराणिक कहानियों में यह भी कहा गया है कि जब गणेश से प्रसन्न हो कर शिव-पार्वती ने दिव्य फल गणेश को दे दिया, तो इस बात से नाराज कार्तिक ने घर छोड़ दिया और पहाड़ों पर बस गए। यहां कार्तिक की नाराजगी अपने भाई से नहीं थी और भले ही कार्तिक वापस घर कभी न आए हों, लेकिन भाई गणपति से उनका लगाव हमेशा बना रहा। कार्तिक भले ही घर पर न हो लेकिन गणेश ने उनसे मिलना, उनसे रिश्ता कभी नहीं तोड़ा। कहा जाता है कि भगवान शिव अमावस्या की रात और मां पार्वती पूर्णिमा की रात कार्तिक से मिलने जाते थे।
बोलो कम सुनों ज्यादा
गणेश जी के बुद्धिमान गणपति का मानना है कि जिंदगी में रिश्ते निभाने के लिए सुनना बहुत महत्वपूर्ण है। जहां उनके बड़े कान सब कुछ सुनने के प्रतीक है वहीं, उनका छोटा-सा मुंह यह दर्शाता है कि कम बोलना चाहिए। रिश्तों में यह बहुत जरूरी है कि बोलो कम और सुनो ज्यादा।
बलिदान के लिए रहें तैयार
गणेश जी का सिर हाथी का है, लेकिन उनका एक दांत टूटा हुआ सा है। ऐसी मान्यता है कि यह तब हुआ, जब वह महाकाव्य 'महाभारत' लिख रहे थे। उनकी कलम टूट गई और भगवान ने हमेशा की तरह मेहनती होते हुए, लेखन जारी रखने के लिए अपना एक दांत तोड़ दिया। इस प्रकार, यह प्रसंग बताता है कि रिश्तों में भी बड़े से बड़े बलिदान करने के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए।
तो रिश्ते निभाने के लिए एक दूसरे का आईना बनना, दूसरे के बारे में सोचना और रिश्ते में समानता बनाये रखना भी गणपति के मूल मंत्रों में शामिल है। ये आपके पारिवारिक जीवन को खुशहाल बनाने में काफी काम आएंगे।