दिवाली में एक जो खास बात होती है कि आप फिर से अपने बचपने से जुड़ते हैं, आपको पुरानी बातें खूब याद आती हैं। ऐसे में आइए जानें वे बातें कौन-कौन-सी हैं, जिनसे आपका एक अटूट रिश्ता जुड़ता है।
पूजा से पहले सारे बर्तनों को साफ करना

पूजा के सारे बर्तन, जो पीतल के होते हैं या ताम्बे के, दिवाली के दौरान जरूर निकाले जाते थे और उन्हें साफ किया जाता था और इसमें मम्मी के साथ हम सब भी हाथ बंटाते थे। इस दौरान मां खूब लोक गीत गाती थीं और दिवाली का उत्सव और खास हो जाता था। सब मिल कर एक साथ घर की सफाई करते थे। बर्तनों को साफ करने के लिए हम भाई बहनों में ऐसे होड़ लगती थी कि कौन कितना अधिक अच्छे से सफाई कर रहा है, इसके बाद मां से इनाम भी मिलता है। आज भी वे यादें धूमिल नहीं हुई हैं कि हर दिवाली में मां के साथ बॉन्डिंग हो जाया करती थी। साथ ही अपने किचन सेट यानी खिलौने वाले किचन सेट की भी साफ-सफाई में मजा आता था।
साफ-सफाई में अपना संसार बसा लेना
कई बार तो ऐसा भी होता था कि मां जब साफ-सफाई में कई चीजें फेंक देती थी, हम बच्चे उन्हें इकट्ठा करके उससे कई चीजें क्रिएट करते थे और अपना ही एक संसार बसा लेते थे, इस खेल भी सबको वैसा मजा आता था, जो अच्छे से अच्छा और महंगे टॉयज या खिलौने खुशियां नहीं दे पाते। यहां तक कि मकड़े के जालों को साफ करना और साथ में व्हाइट वॉश करते हुए एक दूसरे पर रंग डालना, इन लम्हों का भी अपना मजा था, जहां गंदगी में भी एन्जॉय करने का मौका ढूंढ लेते थे और हम बिना लॉजिक लगाए हुए भी मजे लिया करते थे। उन सभी पुरानी और बेकार बोतलों का इस्तेमाल भाई-बहनों और दोस्तों के साथ बाहर आतिशबाजी के दौरान किया जाता था। पूरे घर की मरम्मत के दौरान पुराने अखबार भी बाहर निकाले जाते थे। इसलिए, दिवाली के दौरान कबाड़ को कभी कबाड़ नहीं माना जाता था।
घरौंदा बनाना

बचपन में घरौंदा भरना और फिर उसमें अनाज भरना यह बेहद अधिक किया जाता था और इसकी तैयारी भी काफी पहले से हो जाती थी कि किस तरह से घरौंदा के लिए मिट्टी लाते थे और फिर उससे घर बनाते थे, हमारा इस बात पर भी पूरा फोकस होता था कि घरौंदा सुंदर और रंग-बिरंगा बने, इसलिए घरौंदा बनाना भी बचपन की उन यादों में से है, जिससे हमारा अटूट रिश्ता कायम रहेगा। घरौंदा बनाने के लिए और उन्हें सजाते हुए आपको शायद ही पता होगा कि आप अपने घर को सजाने और संवारने के टिप्स वहां से सीख रही हैं। दरअसल, बचपन की यही छोटी चीजें आपको बहुत कुछ सीखा जाती है।
पुराने पटाखें धूप में सुखाना
यह भी एक दिलचस्प बात थी कि पुराने पटाखों को धूप में सुखाया जाता था, ताकि कोई भी पटाखा खराब न निकले, यह भी एक जरूरी काम होता था, जो धूप रहते कर लिया जाता था। इन सबके अलावा, पटाखों से नाम लिखना, दिवाली में यह भी दोस्तों के साथ मिल कर करना एक अलग ही रौनक लाता था और जिसमें बहुत ही ज्यादा मजा आता था। और सबसे ज्यादा मजा चकरी या घिरनी पर घूमना सबसे ज्यादा मजा इसमें आता था और इसे भी भुलाया नहीं जा सकता है और आज के बच्चों को भी इस मोमेंट का मजा जीने की कोशिश करनी चाहिए।
दीये जलाना हर चौखट पर

भले ही कितनी भी दिवाली आज के दौर की फैशनेबल हो जाये, लेकिन आपको याद आज भी वहीं दिवाली आती है, जब मां के साथ मिट्टी के दीयों में तेल डाल कर, कॉटन की बत्तियां बना कर दीये जलाए जाते थे। हर चौखट पर घर के मां ये दीये सजाती थी, फिर बाहर तुलसी चबूतरे पर और फिर मंदिर में जाकर दीये जलाने के बाद ही घर के बाकी हिस्सों में दीये रखे जाते थे और लाइटनिंग होती थी, दीये आज भी जब दिखते हैं और बिकते हैं बाजार में, मां का वही प्यार नजर आता है और इसलिए भी दीये मिट्टी के आज भी खरीदे जाने चाहिए, ताकि बचपन की उन यादों से रिश्ता बना रहे।
कहानियां सुनाना

यह भी बेहद जरूरी है कि कहानियों को सुनाया जाता रहे, भले ही कहानियां पुरानी हो गई हों, उन्हें कई बार दोहराया जा रहा हो, लेकिन उन्हें सुनाते रहना बेहद जरूरी है। इसलिए दिवाली से जुड़ीं कहानियों को अपनी गली जेनेरेशन तक पहुंचाने के लिए दिवाली एक अच्छा मौका साबित होता है। जैसे कि भगवान राम का अयोध्या लौटना, इस त्योहार के महत्व को बनाए रखने के लिए बेहद जरूरी है। पौराणिक कथाओं और विजय की ये कहानियां इस उत्सव को और खास बना देती हैं।
दिवाली का खाना
दिवाली पर आज भी हमारे यहां पकौड़ी, दाल-चावल और कड़ी बनती है और इसे बेहद शौक से खाया जाता है, सूरन तो विशेष रूप से खाया जाता है। दिवाली में आज भी जब वहीं खाने की थाली सजती है, घर की याद आती है, वह सात्विक भोजन में दरअसल, मां के हाथों का प्यार और एहसास छुपा है, जिसे कभी भी भूला नहीं जा सकता।
एक ही छत के नीचे

आपके चचेरे भाई-बहन, चाचा-चाची और सभी अपने कजिन्स यानी चाचा-चाची के साथ मिलकर यह त्योहार मनाया जाता था और इसमें भी काफी मजा आता था। साथ ही साथ बचपन में दिवाली का सबसे अच्छा हिस्सा वो शाम होती थी जब सब लोग मिलकर पटाखे जलाते थे। और रंगोली बनाने में भी मदद करना बहुत मजेदार होता था।