सस्टेनेबल खिलौने इन दिनों काफी चलन में है। इसका इस्तेमाल बच्चों की पढ़ाई में किया जा रहा है। यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि बच्चों के लिए सस्टेनेबल खिलौने न केवल पर्यावरण के अनुकूल होते हैं, बल्कि इस तरह के खिलौने बाकी के खिलौने के मुकाबले लंबे समय तक टिके भी रहते हैं। साथ ही इस तरह के खिलौने उनके ज्ञान की प्रक्रिया को भी मजेदार बनाते हैं। आइए जानते हैं विस्तार से।
प्राकृतिक और लंबे समय तक टिके सस्टेनेबल खिलौने

सस्टेनेबल खिलौने की सबसे बड़ी खूबी यह होती है कि इसकी बनावट ऐसी होती है कि आप लंबे समय के लिए इसका उपयोग कर सकती हैं। सस्टेनेबल खिलौने में बात करें, तो लकड़ी, बांस और कपड़े और रीसायकल किए गए प्लास्टिक के खिलौने का इस्तेमाल कर सकती हैं। उल्लेखनीय है कि यह सारे खिलौने पर्यावरण के अनुकूल सामग्री से बनाए जाते हैं,जो कि बच्चों की सेहत के लिए सुरक्षित होते हैं। इसके साथ यह सारे नॉन-टॉक्सिक और नेचुरल रंगों से रंगे होते हैं। साथ ही जल्दी टूटते नहीं हैं। लंबे समय तक चल सकता है। साथ ही आप इन सारे खिलौनों को रीसायकल कर सकती हैं, यानी कि उपयोग के बाद पर्यावरण में आसानी से घुल सकती हैं या फिर आप उनका फिर से उपयोग कर सकती हैं।
सस्टेनेबल खिलौने हैं सीखने और विकास में सहायक

इस तरह के खिलौने बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। इस तरह के खिलौने बच्चे को सीखने, सोचने और कल्पना करने के लिए प्रेरित करती हैं और जैसा कि हम पहले ही बता चुके हैं कि इस तरह के खिलौने टिकाऊ होते हैं। बच्चे लंबे समय तक इनके साथ खेलते हैं। लकड़ी के पजल्स और ब्लाॅक्स काफी पसंद किए जाते हैं। इससे आकृति रंग और साइज की पहचान बच्चे कर पाते हैं। बच्चों के मोटर स्किल्स विकास के लिए बांस या लकड़ी के खिलौने जैसे पुल टॉय और रिंग्स का इस्तेमाल किया जाता है। इससे बच्चे उंगलियों की पकड़ और संतुलन को बेहतर करता है।
बच्चों का होता है हर तरह से विकास

दूसरी तरफ लकड़ी के ब्लॉक और कपड़े की गुड़िया में बच्चा अपनी दुनिया बनाता है। साथ ही रचनात्मकता और सामाजिक स्किल्स को विकसित करता है। सस्टेनेबल खिलौने के जरिए कहानी कहने वाले टॉय और पारंपरिक लकड़ी के खिलौने भी मिलते हैं। इससे संवाद करने की क्षमता बढ़ती है। साथ ही परिवार और दोस्तों के साथ खेलने से लोगों के बीच कैसे खुद को प्रस्तुत करते हैं, यह भी सीखने को मिलता है।
सस्टेनेबल खिलौने के जरिए सांस्कृतिक और नैतिक शिक्षा

सस्टेनेबल खिलौने न सिर्फ शिक्षा और विकास का साधन है, बल्कि ये बच्चों को भारतीय संस्कृति,परंपराओं और नैतिक मूल्यों से जोड़ने का सशक्त माध्यम भी बन सकता है। इस तरह के खिलौनों से बच्चे यह समझते हैं कि इस तरह के खिलौने सिर्फ मशीन से नहीं हुनर और परंपरा से भी बनते हैं। इससे बच्चों में प्रकृति के प्रति सम्मान का भाव भी पैदा होता है। किसी पौराणिक कथा और मान्यता पर आधारित खिलौने नैतिकता, धर्म और कर्तव्य जैसे मूल्यों को सिखाते हैं। ग्रामीण जीवन पर आधारित खिलौने परिवार की अहमियत के साथ जीवन की सीथ भी देते हैं। पारंपरिक सस्टेनेबल खिलौने जैसे पच्चीसी, गिल्ली-डंडा और सांप-सीढ़ी संयम रखना, हार और जीत के साथ सहनशीलता को भी बढ़ाते हैं।
सस्टेनेबल खिलौने और डिजिटल युग

डिजिटल युग में बच्चे अधिकतर समय मोबाइल, टैबलेट या टीवी के सामने बिताते हैं। सस्टेनेबल खिलौने जैसे लकड़ी के बॉक्स, बोर्ड गेम्स, पजल्स आदि बच्चों को स्क्रीन से दूर रखकर रचनात्मक और सामाजिक खेलों में शामिल करते हैं। डिजिटल युग में जहां बच्चे अकेले खेलने के आदी हो रहे हैं, वहीं सस्टेनेबल खिलौने परिवार या दोस्तों के साथ खेलने के अवसर देते हैं, जिससे सामाजिक कौशल, संवाद क्षमता और सहयोग जैसी जरूरी योग्यताएं विकसित होती हैं।