एक राष्ट्रव्यापी अध्ययन ने भारत की सार्वजनिक बस प्रणालियों में लैंगिक समावेशिता (gender inclusivity) की कमी के बारे में गंभीर चिंता जताई है, जो महिलाओं की कार्यबल भागीदारी और महिला यात्रियों के सामने आने वाली रोजमर्रा की चुनौतियों दोनों के संदर्भ में है। भारत के सार्वजनिक परिवहन में लैंगिक समावेशिता नामक रिपोर्ट नवंबर में आईटीडीपी इंडिया और डॉयचे गेसेलशाफ्ट फर इंटरनेशनेल ज़ुसामेनार्बेट (जीआईजेड) जीएमबीएच द्वारा भारत-जर्मन विकास परियोजना सतत शहरी गतिशीलता - वायु गुणवत्ता, जलवायु कार्रवाई, सुगम्यता (एसयूएम-एसीए) के तहत जारी की गई थी, जिसे जर्मन संघीय आर्थिक सहयोग और विकास मंत्रालय (बीएमजेड) द्वारा कमीशन किया गया था।
महिला कर्मचारी नहीं अधिक
यह गौरतलब है कि राज्य सड़क परिवहन उपक्रमों के संघ (एएसआरटीयू) के आंकड़ों का उपयोग करते हुए बहुत कुछ दर्शाती है और यह रिपोर्ट दर्शाती है कि देश भर में ड्राइवर पदों पर महिलाओं की हिस्सेदारी केवल 0.16 प्रतिशत और कंडक्टर पदों पर 15 प्रतिशत है, जो कि अफसोसजनक है और महिला कर्मचारियों ने डिपो में कई अवरोधों, अपर्याप्त शौचालयों और विश्राम स्थलों, कार्यस्थल पर उत्पीड़न और स्वास्थ्य संबंधी गंभीर जोखिमों वाली लंबी शिफ्टों की सूचना दी। अगर कार्यस्थल की वास्तविकताओं को समझने की कोशिश की जाए, तो आईटीडीपी इंडिया ने पुणे, चेन्नई, बेंगलुरु और दिल्ली में फोकस समूह चर्चाएं आयोजित कीं, जिनमें राज्य परिवहन उपक्रमों (एसटीयू) की 74 महिला कर्मचारी शामिल थीं।
महत्वपूर्ण बिंदू
महिला कर्मचारियों ने स्वच्छ शौचालयों, लिंग-विशिष्ट सुविधाओं और सुरक्षित विश्राम क्षेत्रों की कमी पर प्रकाश डाला। यात्रियों द्वारा उत्पीड़न और पुरुष सहकर्मियों का असंवेदनशील व्यवहार भी आम चिंताएं थीं। यह अध्ययन हाल ही में संपन्न हुए 46 शहरों में आयोजित ट्रांसपोर्ट फॉर ऑल चैलेंज के लिंग-आधारित आंकड़ों पर भी आधारित है। यह भी जानने योग्य बात है कि 78,000 महिलाओं सहित 2 लाख से अधिक लोगों ने संरचित सर्वेक्षणों के माध्यम से सार्वजनिक परिवहन के अपने अनुभव साझा किए। बता दें कि तीस प्रतिशत लोगों को बसों में या उसके आसपास उत्पीड़न या चोरी का सामना करना पड़ा।
क्या कहते हैं आंकड़े
41 प्रतिशत लोगों ने भीड़भाड़ की शिकायत की, जिससे असुविधा और सुरक्षा संबंधी चिंताएं पैदा हुईं। 32 प्रतिशत लोगों ने देरी और अविश्वसनीय सेवाओं का हवाला दिया। वहीं 24 प्रतिशत लोगों ने कहा कि अगर सुरक्षा और आराम में सुधार हुआ तो वे सार्वजनिक परिवहन का इस्तेमाल करेंगे।
क्या उठाये जा सकते हैं कदम
रिपोर्ट में राज्य परिवहन निगमों और राष्ट्रीय स्तर की एजेंसियों के लिए कार्रवाई योग्य कदमों की रूपरेखा दी गई है, जिनमें शामिल हैं सभी कार्यबल श्रेणियों में महिलाओं की 50 प्रतिशत भागीदारी सुनिश्चित करना और साथ ही साथ भेदभाव-विरोधी और उत्पीड़न-विरोधी समर्पित तंत्र का इस्तेमाल करना। डिपो, टर्मिनल और स्टॉप पर समान प्रकाश मानक (30-40), बसों की पर्याप्त उपलब्धता हों (प्रति लाख जनसंख्या पर 40-60) सर्वसुलभता के लिए कम से कम 50 प्रतिशत लो-फ्लोर बसें हों और कर्मचारियों और यात्रियों के लिए लिंग-संवेदनशीलता प्रशिक्षण दिया जाये।