एक सर्वे में यह पता चला है कि उत्तर प्रदेश में 78 प्रतिशत महिलाएं सामाजिक दबाव और सुरक्षा संबंधी चिंताओं के बीच विवाह की आयु 21 साल करने का समर्थन करती हैं। यह सर्वेक्षण प्रोफेसर राकेश कुमार सिंह और उनके शोध सहायक प्रदीप कुमार सिंह द्वारा राज्य के आठ जिलों की एक हजार महिलाओं को शामिल करते हुए किया गया है। उत्तर प्रदेश की अधिकांश महिलाएं, लड़कियों की विवाह योग्य न्यूनतम आयु 18 साल से 21 साल करने के पक्ष में हैं। आइए जानते हैं विस्तार से।
78 प्रतिशत महिलाएं लड़कियों की विवाह योग्य
लखनऊ विश्वविद्याल के विधि विभाग द्वारा किए गए एक नए अध्ययन में यह निष्कर्ष सामने आया है। इस अध्ययन में यह पाया गया है कि 78 प्रतिशत महिलाएं लड़कियों की विवाह योग्य आयु 21 साल करने के पक्ष में थीं। ज्ञात हो कि उत्तर प्रदेश राज्य में लड़कियों की विवाह की आयु 18 से 21 साल एक सामाजिक कानूनी अध्ययन के लिए राज्य के छह मंडलों के आठ जिलों में एक हजार महिलाओं का सर्वेक्षण किया गया है। उसी के आधार पर इस नतीजे को सामने लाया गया है। उल्लेखनीय है कि मिशन शक्ति के अंतर्गत इस पहल में समान नागरिक संहिता के विशेष संदर्भ में भी इस विषय पर गहन विचार-विमर्श किया गया है।
व्यक्तिगत आजादी के बीच राष्ट्रीय बहस
यह अध्ययन उत्तर प्रदेश के भारत के सबसे अधिक जनसंख्या वाले और सामाजिक रूप से जटिल राज्य होने के संदर्भ में महत्वपूर्ण हो जाता है। यह शोध एक तरह से परंपरा सामाजिक संरचना, महिला सशक्तिकरण और व्यक्तिगत आजादी के बीच राष्ट्रीय बहस को भी संबोधित करता है। धर्म, जाति और संप्रदाय से ऊपर उठकर सभी महिलाओं ने विवाह की न्यूतम आयु को बढ़ाने का समर्थन किया है। अपने द्वारा किए गए इस अध्ययन पर प्रोफेसर आर.के. सिंह ने कहा है कि लखनऊ विश्वविद्याय का यह सर्वेक्षण उत्तर प्रदेश की महिलाओं के लिए साफ तौर पर संदेश देता है कि वे बदलाव के लिए तैयार हैं। अध्ययन के प्रमुख आंकड़े सामाजिक बदलाव की इस लहर का प्रमाण प्रदान करते हैं। उनका कहना है कि महिलाओं द्वारा मिला हुआ यह समर्थन किसी एक समूह तक सीमित नहीं है, बल्कि विवाहित और अविवाहित दोनों तरह की महिलाओं में व्यापक है। आंकड़ों से यह भी सामने आया है कि अविवाहित महिलाओं में यह समर्थन 79.6 प्रतिशत है।
निजी विकास की राह में एक बाधा
प्रोफेसर सिंह ने यह भी दावा किया है कि यह आंकड़ा इस पीढ़ी की आकांक्षाओं को दर्शाता है, जो विवाह को अपने शिक्षा, करियर और निजी विकास की राह में एक बाधा के रूप में नहीं, बल्कि एक निर्णय के तौर पर देखती हैं। इन महिलाओं का मानना है कि थोड़ी और तैयारी बेहतर वैवाहिक जीवन और निजी खुशहाल की कुंजी है। इस अध्ययन में 68 प्रतिशत के करीब महिलाओं का मानना था कि विवाह योग्य आयु बढ़ाने से लड़कियों को उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बेहतर अवसर मिलेंगे और उनके आर्थिक और बौद्धिक विकास की संभावनाएं सीमित नहीं होंगी। दूसरी तरफ 65 प्रतिशत महिलाओं ने इस बदलाव को मां और बच्चे दोनों के सेहत में सुधार से जोड़ा है। कम उम्र में विवाह और कम उम्र में गर्भधारण से जुड़े स्वास्थ्य जोखिमों को रोका जा सकता है।
बदलाव का विरोध किया
प्रोफेसर सिंह का मानना है कि हालांकि सर्वेक्षण में विवाह योग्य आयु बढ़ाने के लिए मजबूत समर्थन दिखाया गया है। लेकिन इस पूरे अध्ययन का दूसरा पक्ष भी है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। इस अध्ययन से यह भी पता चलता है कि लगभग 22 प्रतिशत महिलाओं ने इस बदलाव का विरोध किया या कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। साथ ही इस शोध में तीन बातें यह भी सामने आयी हैं कि इस विरोध का सबसे बड़ा कारण सामाजिक दबाव का डर है। खासकर ग्रामीण इलाकों में एक तय उम्र के बाद बेटी की शादी न करना माता-पिता की विफलता मानी जाती है।
डर महिलाओं में असुरक्षा की भावना पैदा
जिससे परिवार पर मानसिक बोझ पड़ता है। दूसरी बात यह सामने आयी है कि एक ऐसा समाज है, जहां पर महिलाओं को अक्सर असुरक्षित माना जाता है। माता-पिता का डर रहता है कि उनकी बेटी जितनी ज्यादा देरी तक अविवाहित रहेंगी, उन्हें उत्पीड़न, हिंसा या सामाजिक खतरों का सामना करना पड़ सकता है। यह डर महिलाओं में असुरक्षा की भावना पैदा करती है। तीसरी बात यह सामने आयी है कि यह भी डर है कि शादी के लिए ज्यादा इंतजार करने से विवाह पूर्व संंबंध औऱ प्रेम विवाह के मामले बढ़ जायेंगे। कई जगहों पर अभी-भी इसे परिवार का अपमान माना जाता है। यह डर समाज के डर के नाम से कई माता-पिताओं की सोच में गहराई से समाया हुआ है।