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पांच नामों की डोर से बंधा मकर संक्राति का उत्सव, बन गया प्रेरणा का त्योहार

टीम Her Circle |  जनवरी 14, 2025

साल का पहला त्योहार होने के साथ मकर संक्रांति इस मायने में भी खास है कि भारत में इसे अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है। मकर संक्रांति नए साल का उत्सव लेकर आती है। यह दिन सूर्य के उत्तरायण होने के प्रतीक के तौर पर मनाया जाता है। जिसे भारतीय संस्कृति में एक तरह से सकारात्मक परिवर्तन और समृद्धि का संकेत भी माना जाता है। कहीं पर इसे पतंग वाला त्योहार माना जाता है, तो कई बार इसे भारत के समृद्ध खान-पान से जोड़ा जाता है। आइए विस्तार से जानते हैं कि कैसे मकर संक्रांति भारत के भिन्न राज्यों में अपनी अलग परंपरा के अनुसार इस त्योहार का गुणगान किया जाता है। आइए जानते हैं विस्तार से।

पोंगल

मकर संक्रांति को दक्षिण भारत में पोंगल कहते हैं। पोंगल का वास्तविक अर्थ होता है उबालना। साथ ही इसका दूसरा अर्थ नया साल है। जहां पर गुड़ और चावल को उबालकर इस त्योहार के शुभ शुरुआत का आगमन होता है और इसी गुड़ और चावल को पोंगल कहा जाता है। इस दिन नए धान का चावल निकालकर उससे खाना बनाया जाता है। साथ ही किसानों द्वारा अच्छी फसल की भी कामना की जाती है। यह एक तरह से चार दिवसीय पर्व होता है, जो कि एक तरह से फसल और किसानों का त्योहार होता है। पोगंल का त्योहार तमिलनाडु में नए साल का शुभांरभ त्योहार होता है। 14 तारीख से शुरु हुए इस पर्व की समाप्ति 17 जनवरी को होगी। एक तरह से तमिल की संस्कृति और कृषि परंपरा को यह पर्व बखूबी दर्शाता है।

उत्तरायण 

गुजरात में पतंग उत्सव के तौर पर मकर संक्रांति का उत्सव मनाया जाता है। इसे गुजरात और सूरत में उत्तरायण कहा जाता है। जान लें कि उत्तरायण इसलिए कहा जाता है, क्योंकि सूर्य के उत्तरायण के समय दिन लंबे और रातें छोटी होती हैं। जबकि दक्षिणायन के समय रातें लंबें और दिन छोटे होते हैं। विज्ञान में माना गया है कि उत्तरायण के समय सूर्य की किरणें सेहत को अच्छी करने वाली और शांति को बढ़ाने वाली होती हैं। इस दिन खास तौर पर तिल से बने हुए लड्डू और तरह-तरह के पकवान बनाए जाते हैं। खास तौर पर उंधियू, चिक्की,जलेबी को इस दिन खास तौर पर खाया जाता है। इसे मकर संक्रांति की खास डिश कहते हैं।

पौष संक्रांति

पश्चिम बंगाल में मकर संक्रांति को पौष संक्रांति के नाम से जाना जाता है। बाकी के राज्यों की तरह पश्चिम बंगाल में पौष संक्राति को शुभ दिन माना जाता है। खास तौर पर खेती के लिए। इस दिन से किसान अपनी फसल की कटाई शुरू करते हैं। पूजा के लिए चावल के दानों का उपयोग किया जाता है। पश्चिम बंगाल में इसे पौष पर्व और गंगासागर मेला के नाम से भी जाना जाता है। यह भी मान्यता है कि संक्रांति के दिन लगने वाला यह मेला कुंभ मेले के बाद सबसे बड़ा धार्मिक मेला माना जाता है। इसे मानवता का दूसरा सबसे बड़ा संगम माना जाता है। इस दिन ताजे कटे हुए धान, खंजूर, गुड़ और पाटली के तौर पर खजूर, गुड़ और खजूर के शरबत का उपयोग करते हुए ताजे कटे हुए नारियल, दूध और खजूर के गुड़ से बनीं भिन्न प्रकार की पारंपरिक रेसिपी बनाई जाती है। कई सारी स्वाद भरी मिठाईयां बनाई जाती हैं, जिसे ‘पुली पीठा’ कहा जाता है।

तिल संक्राति 

बिहार में मकर संक्रांति को तिल संक्रांति कहा जाता है। बिहार में खासतौर पर तिलकट रिवाज का पालन इस दिन किया जाता है। इस दौरान मां अपने बच्चों को तिल, गुड़ और चावल देकर उनसे वचन लेती हैं कि बुढ़ापे में उनकी रक्षा करेंगे। इस दिन खास तौर पर चूड़ा, दही और तिल से बने हुए मीठे को खाया जाता है। इस मीठे को खास तौर पर तिलकुट कहते हैं। ठंड के मौसम में तिल शरीर को अंदरूनी तौर पर गर्म रखता है, इस वजह से तिलकुट को त्योहार के खान-पान में शामिल किया गया है। घर से लेकर बाजार तक, हर जगह पर तिलकुट की महक छाई रहती है।

खिचड़ी 

उत्तर भारत में मकर संक्राति को खिचडी नाम से मनाया जाता है। उत्तर भारत में इस दिन उड़द की दाल और चावल की खिचड़ी खाई जाती है। इस दिन तिल, गुड़ और मूंगफली का अधिक महत्व होता है। खास तौर पर दिन की शुरुआत अनाज की पूजा के साथ होता है। जहां पर एक अनाज में दूसरे अनाज को मिलाकर अनाज की पूजा की जाती है। इसके बाद चूड़ा और दही का नाश्ता किया जाता है और खाने में खिचड़ी बनाई जाती है। साथ ही इस दिन लाई यानी की मुरमुरे से बने हुए लड्डू और मिठाई का सेवन सबसे अधिक किया जाता है।






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