मासिक धर्म यानी कि पीरियड को लेकर ग्रामीण इलाकों में लगातार जागरूकता की आवश्यकता है। इसे ही लेकर बिहार में शीला कुमारी लगातार सराहनीय कार्य कर रही हैं। यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि मासिक धर्म की गरीबी यानी कि जानकारी और सुविधा का अभाव होना, एक सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती है। हाल ही में इसे लेकर महिला संयुक्त राष्ट्र ने एक लेख प्रकाशित किया। इसके अनुसार मासिक धर्म की स्वच्छता से जुड़ी चीजों का होना या न होना, यह ग्रामीण और शहरी लोगों की आय पर निर्भर करती है। इसे देखते हुए साल 2013 में शीला ने महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा आयोजित मासिक धर्म स्वास्थ्य एवं स्वच्छता पर एक प्रशिक्षण में भाग लिया। इसके बाद से उन्होंने ग्रामीण महिलाओं को इसके लिए जागरूक करने का फैसला लिया।आइए जानते हैं विस्तार से कि कैसे शीला कुमारी ने इसे लेकर क्रांति लाई है।
सैनिटरी पैड का इस्तेमाल
भारत, बांग्लादेश और जिम्बाब्वे जैसे देशों में शहरी इलाकों में लड़कियों और महिलाओं के सैनिटरी पैड के इस्तेमाल करने की संभावना ज्यादा होती है, जबकि ग्रामीण इलाकों में अक्सर कपड़े का इस्तेमाल अधिक होता है। इस हकीकत को बदलने के लिए इन समुदायों के लोगों को आगे आना होगा। इसे लेकर बिहार के नवादा इलाके की निवासी शीला कुमारी ने ऐसा ही सराहनीय कार्य किया है। उनके सबसे प्रभावशाली योगदानों में से एक सैनिटरी पैड बैंक की स्थापना है। उन्होंने इस बैंक की शुरुआत साल 2017- 2018 के बीच हरदिया गांव में की।
मासिक धर्म की गरीबी हटाने का प्रयास
सैनिटरी बैंक शुरू करके शीला कुमारी ने एक खास पहल की है। मासिक धर्म से जुड़े हुए उत्पादों की जरूरत समझते हुए शीला ने युवा लड़कियों को प्रतिदिन एक रूपए का योगदान देकर थोक में यानी कि अधिक संख्या में सैनिटरी पैड खरीदने के लिए प्रोत्साहित किया है। इससे न केवल विक्रेताओं को फायदा होता है, बल्कि लड़कियों को भी मुफ्त में पैड मिलता है, जो कि पहले खरीदना उनके लिए आसान नहीं था। उल्लेखनीय है कि शीला के नेतृत्व में इस पैड बैंक को अच्छी प्रतिक्रिया मिली है।
53 जिलों में कार्यात्मक पैड बैंक
शीला के नेतृत्व में पैड बैंक को अच्छी प्रतिक्रिया मिलने के बाद नवादा और दरभंगा जिलों में 53 कार्यात्मक पैड बैंकों की स्थापना की गई। ज्ञात हो कि यह बिहार में अपनी तरह की सबसे सफल और खास पहलों में से एक बन गई है। शीला का कहना है कि इस पैड बैंक में थोक में एक साथ पैड खरीदने से लड़कियों को कम पैसों में ज्यादा पैड खरीद सकती हैं। गांव की अन्य महिलाएं भी इस सुविधा का लाभ उठा रही हैं। युवा लड़कियों के बीच एक छोटे से प्रयास के रूप में शुरू हुई यह पहल धीरे-धीरे व्यापक बदलाव लेकर आई है।