उत्तर प्रदेश के वाराणसी से 35 किलोमीटर दूर मोहम्मदपुर गांव की सीमा पटेल 12 लोगों के परिवार के साथ रहती हैं। परिवार के पालन-पोषण के लिए सीमा पटेल ने खुद को आर्थिक तौर पर मजबूत किया है। इस सफर की शुरुआत सीमा पटेल के घर से हुई। जहां पर उनके पति बाबूलाल पटेल ने छह साल पहले दोना-पत्तल और डिस्पोजल खाद्य पदार्थों का व्यवसाय शुरू करने में उनका साथ दिया। इस छोटे से व्यवसाय ने सीमा पटेल की जिंदगी बदल दी। आइए जानते हैं विस्तार से।
दोना और पत्तल का इस्तेमाल पूजा और त्योहारों के दौरान सबसे अधिक होता है। खासतौर पर ग्रामीण इलाकों में शादी और त्योहार के मौके पर खाना और प्रसाद परोसने के लिए दोना और पत्तल का सबसे अधिक उपयोग किया जाता है। इस व्यवसाय को छोटे से बड़ा करते हुए सीमा पटेल साल में 10 लाख रुपए की कमाई करती हैं। पहले जहां सीमा पटेल अकेले इस व्यवसाय को आगे बढ़ा रही थीं, वहीं अब उनके साथ 300 से अधिक महिलाएं भी शामिल हो गई हैं और खुद को आर्थिक तौर पर मजबूती प्रदान कर रही हैं।
अपने इस व्यवसाय को लेकर सीमा का कहना है कि जब मैं साल 1995 में शादी के बाद ससुराल आई, तो न तो रहने लायक घर था और न ही बर्तन। खपरैल की छत वाला कच्चा मकान था। बारिश हो, तो परिवार मिट्टी के बर्तनों में खाना खाता था। मैं दूर से पानी लाती थी और जब बारिश होती थी , तो पानी इकट्ठा करने के लिए मिट्टी के बर्तन खुले में रख देती थी। यहां तक कि हमारे पास दवा के लिए पैसे नहीं होते थे। इसके कुछ दिन बाद कई महिलाएं हमारे गांव में घरेलू व्यवसाय से जुड़े काम का प्रशिक्षण देने आईं।
साल 2019 में अन्य महिलाओं के साथ प्रशिक्षण कार्यक्रम में शामिल हुईं। इस दौरान सीमा को सिखाया गया कि कैसे अशिक्षित महिलाएं कमाई करके अपने पतियों की सहायता कर सकती हैं। उस दौरान सीमा के दिमाग में यही था कि अगर उनकी भी कमाई हो, तो वह भी अपने परिवार को आगे बढ़ाने में आर्थिक सहायता कर सकती हैं। इसके बाद उन्होंने काम पर ध्यान केंद्रित किया और दोना-पत्तल का व्यवसाय शुरू किया। इस व्यवसाय को शुरू करने का प्रशिक्षण भी सीमा पटेल को मिला। इस व्यवसाय को शुरू करने के लिए सीमा को तकरीन 2 लाख का कर्ज लेना पड़ा। इसके बाद उन्होंने दोना-पत्तल बनाने वाली मशीन खरीदी और तीन साल में इसका काम इतना बड़ा कि उन्हें इससे काफी मुनाफा हुआ। सीमा ने इसके बाद मशीनों की संख्या बढ़ा दी और अन्य महिलाओं को भी रोजगार देना शुरू किया। वर्तमान में सीमा के पास दोना-पत्तल बनाने वाली तीन मशीनें हैं और तीन अलग-अलग शिफ्ट में महिलाएं उनके यहां काम करती हैं। महिलाओं द्वारा बनाए गए इस दोना-पत्तल को जौनपुर, गाजीपुर, भदोही, मऊ, बनारस, चंदौली और आसपास के अन्य जिलों में ही नहीं बल्कि दूसरे राज्यों में भी दोना और पत्तल बेचे जाते हैं। बिहार, पटना, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और झारखंड से भी यहां लोग दोना-पत्तल खरीदने आते हैं, जो सीमा के अनुसार बहुत गर्व की बात है। सीमा की इस पहल से उनके गांव की हर महिला ने खुद की गरीबी को हटाने का काम मजबूती से किया है।