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राष्ट्रीय बालिका दिवस: पितृसत्तात्मक विचारों को पार कर इन लड़कियों ने छुआ आसमान

प्राची |  जनवरी 24, 2025

एक लड़की के जन्म के साथ इस तरह की मानसिकता का भी पुनर्जन्म होता है, जहां पर यह कहा जाता है कि याद रखना तुम लड़की हो, तुम रात में घर से बाहर नहीं जा सकती। तुम इतनी देरी से क्यों आयीं, तुम दूसरे शहर में कैसे अकेले रह सकती हो, जैसे तीखे सवाल नहीं बल्कि विचार एक लड़की के कोमल मन में बचपन से बड़े होने तक, गहरा घाव बनाती जाती है। कई बार एक लड़की को यह भी सुनने को मिलता है कि शादी के बाद तुम अपने माता-पिता को अपने साथ नहीं रख सकती हो। समाज की जड़ में मौजूद इन सारे पितृसत्तामक विचारों की जड़ अभी-भी बनी हुई है। लेकिन कई ऐसी माताएं हैं, जिन्होंने समाज की सोच की परवाह न करते हुए अपनी बेटी को उड़ने के लिए आजाद सोच के पंख दिए हैं। राष्ट्रीय बालिका दिवस के मौके पर हम ऐसी कुछ महिलाओं से बात करेंगे, जिनको बचपन से यही सीख दी गई है कि तुम बंधन से मुक्त 'आजाद' लड़की हो। 

मेहनत करो, तुम सब कर सकती हो

लेखक और कई सालों से बतौर जर्नलिस्ट अपनी पहचान कायम कर चुकीं नीति सुधा कहती हैं कि जमशेदपुर जैसे छोटे शहर से बाहर निकलकर बेंगलुरु और मुंबई जैसे महानगरों में आने का फैसला न मेरे लिए आसान था, न मेरे माता- पिता के लिए। लेकिन 14 वर्ष पहले, पढ़ाई और नौकरी के लिए जब मैंने बाहर निकलने की ठानी तो मेरे पेरेंट्स ने एक दफा भी झिझक नहीं दिखाई। बल्कि उनकी उत्साह ने मेरा भी हौसला बढ़ाया कि मैं एक नई दुनिया में कदम रख पाऊं। दूर दराज के रिश्तेदारों ने, कभी पड़ोसियों ने थोड़ी मशवरा देने की कोशिश की, कि बेटी को कहां इतना दूर भेज रहे हैं। लेकिन उन्होंने ना किसी की सुनी, न मानी। आज हम तीन बहनें अपनी जिंदगी, अपने करियर में अच्छा कर रहे हैं, सफल हैं, लेकिन इसका पूरा श्रेय मेरे माता- पिता को ही जाता है। जिन्होंने हमें इस पितृसत्तामक समाज में भी अपने उसूल, अपनी शर्तों पर जीने का और आगे बढ़ने का सबक और अनुशासन दिया। और सबसे खास बात कि सपने देखने का साहस दिया। मां और पापा की कही एक बात हमेशा मेरे कानों में गूंजती रहती है- ‘मेहनत करो, तुम सब कर सकती हो..’

अपनी ताकत पहचानो

लोकप्रिय बाइकर रमिला लाटपटे, जिन्हें भारत की बेटी के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने अपने अनुभव को साझा करते हुए कहा कि यह केवल मेरी कहानी नहीं है, यह हर उस बेटी की कहानी है जिसने अपने सपनों को साकार करने के लिए कठिनाइयों का सामना किया और अपने परिवार, खासकर अपनी माँ का साथ पाकर उन सपनों को सच कर दिखाया।मुझे याद है कि मेरी यात्रा कितनी मुश्किल थी। समाज की रुकावट, सीमित संसाधन, और असफलताओं का डर हमेशा रास्ते में खड़ा रहा। लेकिन मेरी मां का विश्वास कभी नहीं डगमगाया। उन्होंने मुझे सिखाया कि कठिनाइयां हमारी हिम्मत की परीक्षा लेती हैं, और अगर हम अपने सपनों को दिल से अपनाएं, तो कोई भी ताकत हमें रोक नहीं सकती।मेरी माँ ने मुझे सिर्फ सपने देखने का नहीं, बल्कि उन्हें जीने का हौसला दिया। आज, एक यात्री, एक रोमांच प्रेमी, और अपनी मातृभूमि के लिए कुछ अद्वितीय करने का सपना देखने वाली एक लड़की के रूप में, मैंने वह मुकाम हासिल किया है जो कभी मेरे लिए केवल एक सपना था।मैंने अपने जीवन की इस यात्रा में सीखा कि हर बेटी के भीतर अपार शक्ति और प्रतिभा है। हमें बस उस शक्ति को पहचानने और उसे पंख देने की जरूरत है।इस राष्ट्रीय बालिका दिवस पर, मैं हर माता-पिता से यही कहना चाहती हूं कि अपनी बेटियों पर भरोसा करें, उन्हें सपने देखने और उड़ान भरने का अवसर दें। और हर बेटी से कहना चाहती हूं कि अपनी ताकत को पहचानो, अपने सपनों का पीछा करो, और इस दुनिया में अपनी अनोखी छाप छोड़ो।

मुझे कभी रोका नहीं

लेखक दीपाली पोरवाल ने अपने जीवन के अनुभव को साझा करते हुए कहा कि मैं कानपुर की रहने वाली हूं। क्लास 11 में आगे की पढ़ाई के लिए मैं राजस्थान में स्थित वनस्थली यूनिवर्सिटी चली गई। मेरे मम्मी पापा शुरू से ही मेरी पढ़ाई को लेकर बहुत गंभीर रहे हैं। उन्होंने मुझे हमेशा अपने पैरों पर खड़े होने और मेहनत के साथ आगे बढ़ने की सीख दी है। यह उनका भरोसा और मेहनत है कि आज मैं अपने दम पर दिल्ली जैसी जगह में सर्वाइव कर पा रही हूं। उन्होंने हमेशा मुश्किलों से लड़ना सिखाया और कभी भी किसी काम को करने से रोका नहीं। घूमना फिरना हो, पत्रकारिता जैसे क्षेत्र में नौकरी करना हो, उनके साथ ने सब आसान बना दिया।

समझी अपनी जिम्मेदारी

बेकर धनदा बताती हैं कि मैं होटल मैनेजमेंट की पढ़ाई करने के लिए माता-पिता से दूर रहती थी। मुझे एक दिन एहसास हुआ कि माता-पिता की उम्र बढ़ रही है और वे लोग मुझ पर निर्भर हो रहे हैं। जैसे ही मेरा कोर्स खत्म हुआ और मैं वापस घर लौटी। मुझे विदेश में नौकरी के मौके मिल रहे थे, लेकिन मैंने अपने माता-पिता से रहने का फैसला किया और भारत में नौकरी की। फिर मेरी शादी हुई। शादी को लेकर लड़के से मैंने शर्त रखी कि मेरे माता-पिता मेरी जिम्मेदारी हैं और उन्हें मैें अपने साथ रखूंगी। अगर यह मंजूर है, तभी मैं शादी कर पाऊंगी। मैं अकेले रहने के लिए भी तैयार थी। मुझे मेरे पति का साथ मिला। मैं सिंगल चाइल्ड हूं। मेरी मां सरकारी नौकरी करती थीं। आर्थिक जरूरत नहीं थी मेरे माता-पिता को। लेकिन सेहत से जुड़ी जिम्मेदारी मेरी थी। मैंने अपने माता-पिता को अपने साथ रहने के लिए मनाया और एक वक्त के बाद मां को दिखना बंद हो गया और वह डायबिटीज से भी पीड़ित थीं। मैं अपने माता-पिता को अपने पास वाले घर में लेकर आयीं। एक वक्त के बाद पिता का निधन हो गया। फिर मैंने फैसला किया कि मैं मां को अपने साथ रखूंगी। मैं वर्किंग थीं। मैंने अपने बॉस से बात की और वर्क फॉर्म होम लिया। मैं अपनी मां और अपने पति के पैरंट्स के साथ एक साथ रहती थीं। मैंने हमेशा सकारात्मक सोच से आगे बढ़ी हूं। मेरा मानना है कि हमें हमेशा अपनी बात को स्पष्ट तौर पर रखना चाहिए।







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