उत्तर प्रदेश के गोरखपुर की रहने वालीं संगीता पांडे ने महज 1500 रुपये में अपना व्यवसाय शुरू किया। मिठाई और खाने की चीजों के डिब्बों को बनाने का। यह बिजनेस उन्होंने उस वक्त शुरू किया, जब उनकी बेटी महज 9 महीने की थी और उन्होंने जिस तरह से मेहनत की, एक खास पहचान हासिल कर ली। आइए जानते हैं विस्तार से।
क्या मिठाई या खाने की चीजों के डिब्बों को बना कर भी पैसे कमाए जा सकते हैं। कम से कम संगीता पांडे ने तो यह साबित किया कि हां, कमाया जा सकता है। खुद उन्होंने अपनी एक खास पहचान बनाई है और वह भी गोरखपुर जैसे शहर में रहते हुए। अपने सीमित संसाधनों के मौजूद होने के बावजूद, उन्होंने अपनी मेहनत को महत्व दिया और अपनी कंपनी की वैल्यू यानी मूल्य 1500 रुपये से बढ़ाकर 3 करोड़ रुपये कर दिया। गौरतलब है कि इस व्यवसाय को शुरू करने से पहले वह एक कम्पनी में काम करती थीं, जहां उन्हें केवल 4 हजार रुपये मिलते थे। ऐसे में उन्होंने उस नौकरी को छोड़ा, क्योंकि उन्हें अपने परिवार को संभालना भी था, क्योंकि आर्थिक रूप से पूर्ण रूप से स्ट्रांग नहीं था परिवार। और फिर एक दिन अचानक जब उन्होंने एक दुकान में कैंडी रैपिंग बॉक्स बनाते देखा, तो उनके अंदर की व्यवसायी महिला उभर कर सामने आयी। उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि यह एक शानदार काम हो सकता है, जिससे मुनाफा कमाया जा सकता है। सो, उन्होंने अपने घर के पास पड़ी रेंजर साइकिल पर कच्चे माल की तलाश शुरू की। उन्होंने इसके लिए 1500 रुपये खर्च किए। लागत और प्रति वस्तु आय का आकलन करने के लिए, उन्होंने बाजार के उद्यमियों से भी बात की। संगीता पांडे ने खरीदी गई सामग्री से आठ घंटे में 100 बक्से बनाए। धीरे-धीरे उन्होंने इस व्यवसाय को समझा। कई लोगों ने उन्हें बताया कि गोरखपुर की बजाय लखनऊ से अगर वह कच्चा माल एकत्रित करेंगी, तो अच्छा रहेगा और फिर क्या था संगीता 35हजार रुपये की बचत के साथ वहां पहुंचीं। उन्होंने 15,000 रुपये का सामान बस से अपने घर पहुंचाया। उस वक्त संगीता की प्राथमिकता डिब्बे तैयार करना और पैसे जुटाना था। ऐसे में संगीता ने उस वक्त नहीं सोचा और व्यवसायी महिला ने अपना सोने का हार तीन लाख रुपये में गिरवी रख दिया। उसने उससे लखनऊ से कच्चा माल लदा एक ट्रक खरीदा। हालात जल्द ही सुधर गए और कंपनी का विस्तार होने लगा। 35 लाख और 50 लाख रुपये के दो ऋणों की मदद से, उसने जल्दी ही एक कारखाना स्थापित किया और अपने व्यवसाय का विस्तार शुरू कर दिया। साइकिल और हाथ से चलने वाली गाड़ियों की जगह एक टेंपो और एक बैटरी चालित रिक्शा ने ले ली। इसके बाद उनके काम का विस्तार हुआ, मिठाई वालों से लेकर, बेकरी और पिज्जा वाले भी उनसे बने बॉक्स लेते हैं। उनके इस काम की सबसे अच्छी बात यह है कि वह अपनी पृष्ठभूमि को ध्यान में रखती हैं और अपने जैसी परिस्थितियों में रहने वाली महिलाओं की मदद करती हैं, ताकि वे घर से काम कर सकें। ऐसे में वह अपने साथ-साथ अन्य महिलाओं को भी आत्मनिर्भर बनाने की कोशिश कर रही हैं और यह काबिल-ए-तारीफ है।