बिहार के जमालपुर इलाके में ‘टोटो वाली दीदी हैं, जो अपने टोटो से कचरा उठाती हैं और लोगों को स्वच्छता के पाठ पढ़ाती हैं। आइए जानें विस्तार से।
कौन हैं ‘टोटो वाली दीदी’
बिहार के जमालपुर इलाके में सफाई के काम को लेकर दिल से काम कर रही हैं माला देवी, जिन्हें अब वहां के लोगों ने टोटो वाली दीदी के नाम से पुकारना शुरू कर दिया है। जी हां, माला देवी को वहां के ऐसी महिला उद्यमी के रूप में देखा जा रहा है, जो काफी खास काम कर रही हैं और वह भी बिना किसी डिग्री के। वह शहर को स्वच्छ बनाने में भी जुटी हुई हैं, वह जो अपशिष्ट प्रबंधन के क्षेत्र में अग्रणी हैं और वह घरेलू कचरे को इलेक्ट्रिक वाहन से एकत्रित करती हैं और फिर उसे स्रोत पर उचित पृथक्करण(segregation) करने की कोशिश करती हैं। माला देवी स्व-नियोजित महिला संघ (सेवा) बिहार की सदस्य हैं, जो इन स्थायी उपक्रमों में महिलाओं का समर्थन करती है।
अच्छी होती है कमाई
दरअसल, माला देवी शहर के लगभग 400-500 घरों से कचरा इकट्ठा करती हैं। इस काम ने माला देवी को काफी पहचान दिलाई है, जिन्हें स्थानीय लोग प्यार से "टोटो वाली बहन" कहते हैं और इससे उन्हें हर महीने 9,500-10,000 रुपये की अच्छी कमाई होती है। गौरतलब है कि माला के पति दिहाड़ी मजदूर हैं, तो कई बार उन्हें किसी-किसी दिन काम नहीं मिलता है, ऐसे में जब माला काम करती हैं, तो यह पैसा दो बच्चों की इस मां को उन दिनों होने वाले आर्थिक नुकसान की भरपाई करने में मदद करता है। सुबह 7 बजे से दोपहर 2 बजे तक माला देवी शहर के लगभग 400-500 घरों से कचरा एकत्र करती हैं।
लिया है प्रशिक्षण
आपको बता दें कि स्व-नियोजित महिला संघ बिहार की सदस्य माला देवी उन सात महिलाओं में से एक हैं , जिन्हें जमालपुर नगर निगम (जेएमसी) ने शहर में घर-घर जाकर कचरा संग्रहण के लिए नियुक्त किया है। इस शहर की स्थापना 1862 में एक रेलवे बस्ती के रूप में हुई थी और यहां बड़े लोकोमोटिव वर्कशॉप हैं। उन्होंने 40 साल की उम्र में ड्राइविंग सीखी। कुछ ही दिनों में उन्होंने गाड़ी पर नियंत्रण करना सीख लिया है। उन्होंने स्थानीय निकाय द्वारा आयोजित 20-दिवसीय प्रशिक्षण लिया, जिसके बाद उन्हें ई-व्हील्स पर कचरा संग्रहकर्ता के रूप में नियुक्त किया गया।
अन्य महिलाओं को भी करती हैं प्रोत्साहित
माला देवी की खासियत यह है कि वह अन्य महिलाओं को भी इस काम में आने के लिए प्रोत्साहित कर रही हैं। इसलिए उन्हें लीडरशिप गुणवत्ता के लिए भी जाना जाता है। गौरतलब है कि इससे पहले, माला देवी दो-तीन घरों में घरेलू नौकरानी का काम करती थीं। उनकी तनख्वाह लगभग 5,000 रुपये थी, लेकिन वह कुछ ऐसा करना चाहती थीं, जिससे उन्हें सामाजिक सम्मान मिले और अब वह इस काम से वह सम्मान हासिल कर रही हैं। गौरतलब है कि माला जैसी अन्य महिलाएं भी अब मानने लगी हैं कि यह एक महिला के लिए अच्छा काम है। इससे अच्छी कमाई होती है और साथ ही उन्हें आत्मनिर्भरता और सशक्तीकरण का एहसास भी होता है।
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