जब भी बात आती है कि घर में किसी इलेक्ट्रिशियन की जरूरत होती है, तो हम यही मान कर चलते हैं कि घर पर मरम्मत करने आने वाला शख्स पुरुष ही होगा, लेकिन सीता देवी जैसी महिलाएं हमारी इस सोच को बदलती हैं अपने हुनर से। कैसे, आइए जानते हैं विस्तार से।
कौन हैं सीता देवी

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बिहार के गया जिले से संबंध रखने वालीं सीता देवी अब आम से खास हैं और इसकी वजह ये खुद हैं, क्योंकि उन्होंने खुद तय किया कि वह अपनी परिस्थिति को अपनी कमजोरी बना कर नहीं रखेंगी, बल्कि शुरुआत करेंगी और मेहनत और दिमाग का इस्तेमाल कर कुछ अलग कर दिखाएंगी। सीता देवी ने खुद से ही अपनी पाठशाला खोली और खुद से अनुभव के आधार पर अपने पति से इलेक्ट्रिशियन बनने की तकनीकों को सीखा और आज वह अपने काम में पारंगत हो गई हैं। वह अब इलाके में सबसे बेस्ट इलेक्ट्रिशियन मानी जाने लगी हैं। वह बल्ब, माइक्रोवेब, फ्रिज और ऐसे सभी उपकरण ठीक कर देती हैं।
कभी न स्कूल न पारंपरिक ट्रेनिंग
सीता देवी के चर्चे न केवल उनके अपने घर में, बल्कि पूरे बिहार में 'महिला इलेक्ट्रीशियन सीता देवी' के नाम से होती है और इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि वह खराब विद्युत उपकरणों की मरम्मत में कोई भी समय नहीं लगाती हैं, बस पलक झपकते सारा काम कर लेती हैं और वह भी इस तरह जैसे वह प्रशिक्षित हों। गौरतलब है कि उन्होंने कभी भी स्कूल का चेहरा नहीं देखा है, न ही अपने काम के लिए कोई ट्रेनिंग ली है। उन्होंने बस अपने पति से धीरे-धीरे सीखा और प्रैक्टिस से अपने काम में माहिर हो गयीं। वह अब ऐसे-ऐसे मरम्मत कर रही हैं, जिसे करने में लोगों को कई वर्षों के प्रशिक्षण और शैक्षणिक पाठ्यक्रम का सहारा लेना पड़ता है।
जिंदगी आसान नहीं रही
बता दें कि सीता देवी की जिंदगी बेहद आसान नहीं रहीं, उन्हें काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। बेहद कम उम्र में सीता देवी की शादी, फुटपाथ पर बिजली के उपकरणों की मरम्मत की एक छोटी-सी दुकान चलाने वाले व्यक्ति से हुई। नियति ऐसी हुई कि कुछ सालों में ही बीमार हो गए, अब घर का काम कैसे चलेगा, कैसे आर्थिक स्थिति को संभाला जायेगा, यह सोचते हुए घर चलाने की जिम्मेदारी सीता देवी पर आ गयी और उन्होंने अपने चार बच्चों के पालन-पोषण का निर्णय खुद किया और धीरे-धीरे अपने पति के काम को समझा। सीता देवी तबसे इस काम में जुड़ी हैं, जब उनका बेटा महज एक साल का था।
बारीकियां सीखीं
सीता यह समझने लगीं कि उनके पति के हालात अच्छे नहीं हैं और बीमारी के कारण उनकी आंखें भी कमजोर होती जा रही हैं, ऐसे में उन्होंने तय किया कि वह बारीकियां सीख कर रहेंगी। गौरतलब है कि सबसे पहले सीता ने बल्ब बनाना सीखा, फिर धीरे-धीरे इस्त्री, वॉशिंग मशीन, कूलर और पंखा बनाना शुरू कर दिया। खास बात यह हुई कि अब सीता किसी भी तरह के बिजली के उपकरण की मरम्मत करने में सक्षम हैं और कई सालों से अपने परिवार का पालन पोषण कर रही हैं।
झेलने पड़े ताने भी
गौरतलब है कि उनके लिए राहें आसान नहीं रहीं, उन्हें कई तरह के ताने भी झेलने पड़े। कई तरह से उन्हें पड़ोसियों और सगे-संबंधियों ने फब्तियां कसीं। लेकिन वह इससे जरा भी घबराई नहीं। उन्होंने सबकी बातों की परवाह किये बगैर खुद पर काम किया। लोगों ने कहा, महिला क्या ये काम कर पायेगी, इसको देखो इंजीनियर समझ रही है, अभी तो इसको कुछ भी नहीं आता है। सीता हजार से 1500 रुपये दिन का कमा लेती हैं। सीता अपने बच्चों को अच्छी परवरिश देना चाहती हैं और वह नहीं चाहती हैं कि किसी भी तरह से उनके बच्चे भी वहीं सब झेलें, जो उन्होंने झेला है, इसलिए वह अपने बच्चे को एक बेहतर स्थान देना चाहती हैं।
घरों से भी आते हैं बुलावे
पहले सीता देवी केवल अपनी दुकान पर ही काम करती थीं। लेकिन अब उन्हें घरों से बुलावे आती हैं और वह जाकर उपकरण ठीक कर देती हैं। सीता को अब लोग सम्मान की नजर से देखने लगे हैं और सीता मानती हैं कि हमेशा ही अपने काम में महिलाओं को परफेक्ट होने की कोशिश करनी चाहिए, ताकि वह खुद के लिए रास्ते तलाश पाएं और बेहतर कर पाएं और किसी पर निर्भर न रहें। गौरतलब है कि उन्हें प्रशासन की तरफ से भी सम्मान मिला है। वाकई, महिलाएं चाहें तो क्या कुछ नहीं कर सकती हैं, वह खुद को कामयाब बनाने के लिए हर संभव प्रयास में जुड़ी रहती हैं।
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