उत्तर प्रदेश के खीरी जिले के एक गांव निघसान में रहने वालीं मीरा दीदी ने मवेशियों के लिए चारा का बिजनेस शुरू कर अपनी एक अलग पहचान बना ली है। जी हां, किसी भी अन्य भारतीय गांव जैसा ही यह गांव दिखता है। लेकिन निघसान के बीचों-बीच ग्रामीण उद्यमी मीरा रहती हैं, जिन्हें गांव में प्यार से मीरा दीदी कहा जाता है। और उन्हें मीरा कुछ खास कारणों से कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने अपने गांव के लिए कुछ करने की ठानी और उसे करके भी दिखाया। मीरा की कहानी इतनी आसान नहीं रही, उनके पास अपने काम को करने के लिए सबकुछ अनुकूल रूप में नहीं मिला। जी हां, उन्हें सीमित कृषि भूमि से काम चलाना पड़ा था। साथ ही अपने पति से दूर रहते हुए उन्हें और उनके परिवार को आर्थिक तंगी का भी सामना करना पड़ा। लेकिन अपनी कठिन परिस्थितियों में डूबे रहने के बजाय, उन्होंने अपने स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) के सहयोग को बदलाव का उत्प्रेरक बना दिया। वर्ष 2022 में, मीरा ने अपना उद्यमिता विकास प्रशिक्षण पूरा किया, जो एक ऐसा महत्वपूर्ण क्षण था जिसने उन्हें सशक्त बनाया और पारंपरिक लैंगिक मानदंडों को चुनौती दी। वहीं उन्होंने ऑयस्टर मशरूम की खेती जैसी उन्नत कृषि तकनीकों के माध्यम से अपनी आय के स्रोतों में भी विविधता लायी। साथ ही उन्होंने कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) की मदद से अपने घर पर एक बटन मशरूम प्रदर्शन इकाई स्थापित की, जहां उन्होंने अपने स्वयं सहायता समूह की अन्य महिलाओं को सीखने और कमाने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने अपने क्षेत्र में उच्च मांग वाले पशु आहार की बिक्री का व्यवसाय शुरू किया। उन्होंने ऑयस्टर मशरूम की खेती जैसी उन्नत कृषि तकनीकों के माध्यम से अपनी आय के स्रोतों में विविधता भी लाई। इससे न केवल उनके परिवार की आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित हुई, बल्कि वे स्थानीय कृषि क्षेत्र में एक प्रमुख खिलाड़ी भी बन गयीं। खास बात यह है कि मीरा सिर्फ यह करके खुश नहीं हुईं, बल्कि उन्होंने कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) की मदद से अपने घर पर बटन मशरूम प्रदर्शन इकाई स्थापित की, जहां उन्होंने अपने स्वयं सहायता समूह की अन्य महिलाओं को सीखने और कमाने के लिए प्रोत्साहित किया। इस कदम ने आर्थिक रूप से स्वतंत्र महिलाओं का एक नेटवर्क तैयार किया, जो मीरा की तरह अपने परिवार में निर्णय लेने वाली बन गयीं। वाकई ऐसी महिला प्रेरणाओं की समाज में जरूरत है, जो दूसरी महिलाओं को भी बढ़ने का हौसला दें।