आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण के अनुसार बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में 80 प्रतिशत से अधिक महिला श्रमिक कृषि क्षेत्र में हैं और उनमें से आधे से अधिक को कोई मजदूरी नहीं मिलती। आइए जानें विस्तार से।
निराशाजनक है स्थिति

गौरतलब है कि महिलाओं को भारत की आर्थिक महत्वाकांक्षाओं को आगे बढ़ाने के लिए एक संरचनात्मक परिवर्तनकारी कारक माना गया है, लेकिन इसके बावजूद महिलाओं को पूरी तरह से न्याय नहीं मिल पा रहा है और न ही उनका हक, क्योंकि कृषि क्षेत्र, जो भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ मानी जा रही है और जहां महिलाएं सबसे ज्यादा काम कर रही हैं, लेकिन उन्हें उनकी मेहनत का पूरा फल नहीं मिल पा रहा है। उनकी क्षमता के साथ न्याय नहीं किया जा रहा है और यह बात आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण से सामने आयी है।
क्या कहते हैं आंकड़े
यह सच है कि महिला श्रमिकों में वृद्धि हुई है। लेकिन एक दशक में कृषि क्षेत्र में महिलाओं का रोजगार 135 प्रतिशत बढ़ा है, जो अब कृषि कार्यबल का 42 प्रतिशत है। अवैतनिक पारिवारिक श्रमिकों के रूप में महिलाओं की संख्या 2.5 गुना बढ़कर 2017-18 में 23.6 मिलियन से 2023-24 में 59.1 मिलियन (पीएलएफएस) हो गई है, साथ ही बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में, 80 प्रतिशत से अधिक महिला श्रमिक कृषि क्षेत्र में हैं, और आधे से अधिक को कोई वेतन नहीं मिलता है। तो उस लिहाज से देखें, तो भारत में तीन में से एक कामकाजी महिला को वेतन सही से नहीं मिलता है। उच्च भागीदारी के बावजूद, जीवीए में कृषि की हिस्सेदारी 15.3 प्रतिशत (2017-18) से घटकर 14.4% (2024-25) हो गई, जिससे सशक्तिकरण को सक्षम करने के बजाय असमानताएं और बढ़ गयी।
चौंकाने वाले आंकड़े

निराशाजनक बात तो यह भी है कि श्रम में बड़ी हिस्सेदारी होने के बावजूद महिलाओं को आधिकारिक तौर पर किसान के रूप में मान्यता नहीं दी गई है। केवल 13-14 प्रतिशत भूमि जोत महिलाओं के नाम पर है, जिससे ऋण, बीमा और सरकारी सहायता तक उनकी पहुंच सीमित हो जाती है। महिलाएं समान कृषि कार्यों के लिए पुरुषों की तुलना में 20-30 प्रतिशत कम कमाती हैं। इससे यह बात पूरी तरह से स्पष्ट है कि महिलाओं को निर्णय लेने की शक्ति के बिना निर्वाह खेती और कम लाभ वाले कार्यों में फंसाया जाता है।
हो सकता है सुधार
एक्सपर्ट्स मानते हैं कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन, पीएम-किसान और डिजिटल प्लेटफॉर्म जैसी नीतियां लैंगिक संवेदनशीलता के साथ तैयार की जाएं, तो महिलाओं को सशक्त बना सकती हैं। वहीं डिजिटल उपकरणों, कौशल विकास, बाजार संपर्क और किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) तक पहुंच भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं में एकीकरण, मशीनीकरण और कौशल-आधारित नौकरियों से लैंगिक अंतर कम हो सकता है।