बिहार में हाल में ही विधानसभा चुनाव संपन्न हुआ और नतीजे भी आ चुके हैं, लेकिन सबसे खास बात यह हुई है कि कई सालों के बाद महिला वोटर्स की भागीदारी बढ़ी। आइए जानें विस्तार से।
वर्ष 2025 में विधानसभा चुनाव में यह कई सालों के बाद हुआ कि बिहार में महिलाओं ने वोटिंग के रिकॉर्ड तोड़े और 8.8 प्रतिशत अधिक मतदान मिला, मतलब अगर कुल संख्या में देखा जाये तो पुरुषों से आगे हैं। आंकड़ों को देखें, तो बिहार में कुल मतदान 66.91 प्रतिशत रहा, जो 1951 के बाद सबसे ज्यादा है। वहीं महिलाओं का मतदान प्रतिशत 71.6 प्रतिशत रहा, जो पुरुषों के 62.8 प्रतिशत से कहीं ज्यादा है। यह वर्ष 2015 में 60.48 प्रतिशत था और वर्ष 2020 में 59.69 प्रतिशत रहा और महिलाओं के मतदान प्रतिशत की तुलना में काफी ज्यादा है, जिससे 2025 का चुनाव महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी के लिहाज से एक बड़ा बदलाव साबित होगा। चुनाव आयोग के शुरुआती आंकड़ों के अनुसार, महिलाओं ने पुरुषों की तुलना में कम से कम 4.34 लाख ज्यादा वोट डाले, जो इस बात को देखते हुए उल्लेखनीय है कि विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के बाद मतदाता सूची में पुरुषों की तुलना में महिलाओं के नाम लगभग 42 लाख कम थे। अगर ‘द हिन्दू’ द्वारा किए गए सांख्यिकीय विश्लेषण को गौर से देखें, तो 18 से 29 वर्ष की युवा महिलाएं सबसे अधिक प्रभावित हुईं, विशेष रूप से "स्थायी रूप से स्थानांतरित" विलोपन की श्रेणी में। इस पैटर्न से पता चलता है कि विवाह के बाद स्थानांतरित होने वाली महिलाओं को निष्कासन का खामियाजा भुगतना पड़ा और इस बात पर भी बहुत कम स्पष्टीकरण है कि बाद में उन्हें अपने नए निर्वाचन क्षेत्रों में नामांकित किया गया या नहीं। एक और बात सामने आई है कि बिहार में पुरुषों का असाधारण रूप से उच्च प्रवास यह समझने में मदद करता है कि मतदाता सूची में महिलाओं की कम उपस्थिति के बावजूद, उनका मतदान प्रतिशत पुरुषों से अधिक क्यों रहा। राज्य से कामकाजी उम्र के पुरुषों की एक बड़ी संख्या के अनुपस्थित रहने के बावजूद, सक्रिय मतदाताओं में महिलाओं का अनुपात बड़ा है। यह इस बात का संकेत है कि बिहार में महिला मतदाता, खासकर सत्तारूढ़ गठबंधन के लिए, एक प्रमुख चुनावी क्षेत्र बन गई हैं। कुल मतदान में पुरुषों से आगे निकलना एक महत्वपूर्ण सामाजिक-राजनीतिक बदलाव का प्रतीक है, जिसे स्वीकार किया जाना चाहिए। लेकिन अब भी एक बात पर विचार जरूर होना चाहिए कि महिलाओं को अब भी बिहार में लीडर्स के रूप में पहचान नहीं मिली है। इसलिए इस बात को समझना बेहद जरूरी है कि आज भारत में महिलाएं सिर्फ निष्क्रिय वोट बैंक नहीं हैं। वे राजनीतिक रूप से जागरूक, आकांक्षी और परिणामकारी जनसांख्यिकी हैं, जिनकी पसंद शासन, गतिशीलता, घरेलू अर्थशास्त्र और सम्मान द्वारा निर्धारित होती है।