पिछले कुछ दशकों में महिला पुरोहितों की अहमियत बढ़ी है। खासतौर से दुर्गा पूजा आते ही इनकी अहमियत बढ़ जाती है, साथ ही पूरे भारत में अब महिला पुरोहित शादियां भी करवा रही हैं और घरों में पूजा भी। तो आइए इनके बारे में जानते हैं विस्तार से।
कौन हैं महिला पुरोहित और क्या होता है इनका काम

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अगर बात करें, तो प्राचीन वैदिक काल में, महिलाओं के पुजारी बनने पर कोई शास्त्रीय प्रतिबंध नहीं था और महिलाओं को ज्ञान प्राप्त करने तथा वेदों का अध्ययन करने में समान स्वतंत्रता प्राप्त थी। लेकिन इसके बावजूद पुरुषों ने क्षेत्र में अपना वर्चस्व बनाया और फिर लोगों में ऐसा प्रचार हुआ कि सिर्फ पुरुष ही यह काम कर सकते हैं। जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं है। कुछ सालों में यह सोच बदली है और कोलकाता के दुर्गा पूजा के सेलिब्रेशन में महिला पुरोहितों की लोकप्रियता और भागीदारी बढ़ी है। गौरतलब है कि महिला पुरोहित एक हिंदू पुरोहित होती है, जैसा कि शुभमस्तु जैसे संगठनों और डॉ नंदिनी भौमिक ऐसे नाम हैं, जो पूजा और विवाह समारोहों का नेतृत्व करती हैं और अक्सर आधुनिक समय के अनुसार अनुष्ठानों को अनुकूलित करने का प्रयास करती हैं। सुजाता बापट ने भी इस क्षेत्र में अगुवाई की है। इन महिलाओं ने संस्कृत और वैदिक परंपरा में डिग्री प्राप्त करने के बाद महिला पुजारी के रूप में अपना करियर बनाया है। गौरतलब है कि दुर्गा पूजा में इन्हें काफी लोकप्रियता और प्राथमिकता मिल रही है। जैसे कि नंदिनी भौमिक, रूमा रॉय, सेमंती बनर्जी और पॉलोमी चक्रवर्ती में एक बात समान है कि वे सदियों पुरानी परंपरा को तोड़ रही हैं। पिछले कुछ सालों में इन महिलाओं के समूह ने कोलकाता की 66 पल्ली दुर्गा पूजा समिति के सभी अनुष्ठानों का संचालन किया है।
दिलचस्प पहलू

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इस संदर्भ में अगर बात करें, तो दिलचस्प पहलू यह है कि कुछ महिला पुरोहित अनुष्ठानों को आधुनिक समय के अनुरूप बनाने पर ध्यान दे रही हैं जैसे कि शादियों में अप्रासंगिक पुरानी परंपराओं को खत्म करना। उनका उद्देश्य यह प्रदर्शित करके पितृसत्तात्मक मानदंडों को तोड़ना है कि वैदिक शास्त्रों, मंत्रों और अनुष्ठानों का उचित ज्ञान रखने वाला कोई भी व्यक्ति पुजारी के रूप में सेवा कर सकता है। साथ ही इनका इस बात पर भी जोर है कि केवल पुरुष ही यह काम कर सकते हैं, महिलाएं नहीं इस सोच को पूरी तरह से बदला जाये। यह जानना भी दिलचस्प है कि ये महिला पुरोहित यूं ही नहीं इस क्षेत्र में आयी हैं। इन्होंने बाकायदा संस्कृत में डिग्री हासिल कर रखी है। ऐसे कई ऑनलाइन वेबसाइट्स की भी शुरुआत हुई है, जहां आप महिला पुरोहितों को बुलवा सकते हैं। साथ ही अब महिला पुरोहित सिर्फ घरेलू और फेस्टिवल के लिए ही नहीं, बल्कि मंदिरों में भी इस भूमिका में नजर आ रही हैं। तमिलनाडु में ही पुजारी बनने का प्रशिक्षण सफलतापूर्वक पूरा करने वाली तीन युवतियों को जल्द ही राज्य के मंदिरों में सहायक पुजारी नियुक्त किया, जिससे लंबे समय से चली आ रही केवल पुरुषों की परंपरा टूटी। इन महिलाओं में कृष्णावेणी, एस राम्या और एन रंजीता को राज्य सरकार के हिंदू धार्मिक एवं धर्मार्थ बंदोबस्ती विभाग द्वारा प्रबंधित मंदिरों में नियुक्त किया।
पूरे भारत में बदल रही है तस्वीर
गौरतलब है कि महिला पुरोहितों की पहचान या डिमांड केवल दुर्गा पूजा तक सीमित नहीं है, अब देशभर में नियमित हो रहे अनुष्ठानों में भी उनकी डिमांड बढ़ गई है। अभिनेत्री दीया मिर्जा ने भी अपनी शादी में महिला पुरोहित शीला अट्टा को ही सारे रीति-रिवाजों को निभाने के लिए आमंत्रण दिया था। अगर एक और अन्य महिला पुजारी की बात की जाए, तो ब्रम्हरम्बा माहेश्वरी ने वर्ष 1995 से मैसूर से ही इस क्षेत्र में अपनी जगह बनाई है। उन्होंने अबतक दो हजार से भी अधिक शादियां करवाई हैं और ब्रम्हरम्बा बहुत गर्व से कहती हैं कि वह लोगों की सोच को बदलने में कि ऐसी पीढ़ियां, ऐसी चीजें न हों और ऐसे रीति-रिवाज को पुरुषों के वर्चस्व को हावी करने को कहते हैं, उन्हें भी दरकिनार करने की कोशिश की है और अब धीरे-धीरे लोगों ने इस महत्व को समझना शुरू किया है। युवा पीढ़ी, खासतौर से विदेशों से लौटे भारतीय इस ट्रेंड को बेहद पसंद कर रहे हैं। डॉ मनीषा शेटे का नाम भी इस श्रेणी में जाना-माना नाम हैं। बता दें कि ज्ञान प्रबोधिनी एक पुणे स्थित संगठन है जो महिलाओं को पुजारी की भूमिका निभाने के लिए प्रशिक्षण देता है और इस संगठन में महिला पुरोहितों की संख्या में इजाफा हो रहा है। सुरेखा लिखिते, सुजाता बापट और प्रियंका भी लोकप्रिय महिला पुरोहितों के नाम हैं। गौरतलब है कि बड़े शहरों के साथ-साथ कई छोटे शहरों में भी शुरू हुआ है यह ट्रेंड, जैसे कि श्रुति शास्त्री उत्तर प्रदेश के जौनपुर की एक महिला पुजारी हैं और अब तक 75 से ज्यादा शादियां संपन्न करा चुकी हैं। आज, वह पूरे भारत में पूजा-पाठ, हवन और विवाह संपन्न कराती हैं और गरिमापूर्ण तरीके से लैंगिक रूढ़िवादिता को तोड़ रही हैं।
चुनौतियां

महिला पुरोहितों के लिए सफर तय करना आसान नहीं रहा है। समाज तो बाद में आता है, खुद परिवार वाले ही इनके काम को समझ पाने में सक्षम नहीं रहते हैं, उन्हें समझाने में काफी वक्त लग जाता है। साथ ही ऐसा भी कई बार होता है कि अगर शादियों में उन्हें बुलाया जाता है, तो एक पुरुष पुरोहित भी होते हैं और कई बार वह महिला पर पुरोहित पर हावी होने की कोशिश करते हैं, जैसे वे ही जानकार हैं और महिला जानकार हो ही नहीं सकती। लेकिन इन महिलाओं ने भी चुपचाप से अपने ज्ञान को बढ़ावा दिया और खुद ज्ञान की बदलौत एक पहचान बना ली है।
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