महिलाओं में वह हौसला होता है कि वे कभी भी खुद को कमतर नहीं आंकती और अगर वे ठान लें तो हमेशा सबकुछ कर गुजरती हैं, ऐसे में आइए जानें ऐसी कुछ महिलाओं के बारे में, जिन्होंने उम्र को कभी आड़े नहीं आने दिया और अपनी पहचान उम्रदराज होने के बाद बनायी।
भगवानी देवी डागर

image credit : @economicstimes.com
भगवानी देवी का जन्म हरियाणा के खेड़का गांव में हुआ था। विश्व चैंपियन भगवानी देवी डागर हमेशा से अपने काम को लेकर फोकस रहीं। वह 95 वर्षीय एथलीट हैं, जिन्होंने 22वीं एशियाई मास्टर्स एथलेटिक्स चैंपियनशिप में तीन स्वर्ण पदक जीते थे। उन्होंने शॉटपुट, डिस्कस और जेवलिन थ्रो में स्वर्ण पदक अपने नाम किए हैं। बता दें कि वह ऐसा करने वाली पहली एशियाई चैंपियन रही हैं। उनके खाते में और भी ऐसे कई सम्मान रहे हैं। उन्होंने भगवानी देवी डागर ने पोलैंड के टोरून में वर्ल्ड मास्टर्स एथलेटिक्स इंडोर चैंपियनशिप में डिस्कस थ्रो में तीन स्वर्ण पदक जीते थे।
सालूमारदा थिमक्का

image credit : @thehindu.com
सालूमारदा थिमक्का एक शानदार पर्यावरणविद रही हैं। सालूमारदा थिमक्का सालूमरदा थिमक्का का जन्म 1911 में हुई थी और इन्हें आला मरदा थिमक्का के नाम से भी जाना जाता है। वह कर्नाटक राज्य की एक भारतीय पर्यावरणविद हैं, जो रामनगर जिले के हुलिकल और कुदुर के बीच राजमार्ग के 4.5 किलोमीटर (2.8 मील के हिस्से पर 385 बरगद के पेड़ लगाने और उनकी देखभाल करने के अपने काम के लिए जानी जाती हैं। वह 112 साल की हैं और उनके काम को पूरे भारत में सराहा गया है। वह हमेशा हमारे लिए प्रेरणादायक रहेंगी।
डॉ उषा लोदाया

image credit : @ndtvnews.com
डॉ उषा लोदाया के बारे में खास बात यह है कि उन्होंने 67 साल की उम्र में ली पीएचडी की डिग्री ली थी और टीनएज में डॉक्टर बनने का सपना पूरा किया, उन्होंने मेहनत करके अपनी पहचान बनायी। उषा हमेशा से डॉक्टर बनना चाहती थीं, लेकिन कम उम्र में उनकी शादी हो गई थी। बाद में घर-परिवार की जिम्मेदारी निभाते हुए पढ़ाई की उम्र निकल गयी। लेकिन उन्होंने भी सपने को मरने नहीं दिया और उन्होंने पीएचडी की डिग्री हासिल की। खास बात यह है कि उन्होंने जैनिज्म में तीन साल की डिग्री ली। उसके बाद शत्रुंजय अकादमी, महाराष्ट्र से डॉक्टरेट की डिग्री प्राप्त की। खास बात यह है कि उन्होंने लॉकडाउन के समय को पढ़ाई के लिए इस्तेमाल किया।
डॉ भगवती ओझा
डॉ भगवती ओझा एक शानदार महिला हैं, जिन्होंने दर्शाया कि उम्र से आपके हौसलों को कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए। डॉ भगवती ओझा का जन्म गुजरात के मोरबी में एक शिक्षित और गांधीवादी परिवार में हुआ था। बचपन से ही उन्होंने हैजा और टाइफाइड के रोगियों की दुर्दशा देखी थी। उन्होंने चिकित्सा पेशे को अपनाकर लोगों की सेवा करना अपना कर्तव्य समझा। 'स्वस्थ महिलाएं-स्वस्थ राष्ट्र' उनका महत्वपूर्ण वाक्य रहा है। मोरबी के एलएलपी मेडिकल कॉलेज से अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद, उन्होंने 1960 में सरकारी महिला अस्पताल में नौकरी शुरू की। बता दें कि डॉ भगवती ओझा ने 40 वर्ष की आयु में पर्वतारोहण प्रशिक्षण शुरू किया, जब अधिकांश पर्वतारोही सेवानिवृत्ति ले लेते हैं। वह जिला वरिष्ठ नागरिक एथलेटिक संघ की अध्यक्ष और गुजरात वरिष्ठ नागरिक एथलेटिक संघ की सचिव हैं। उन्होंने 100 से भी ज्यादा गोल्ड मेडल हासिल किया है। 85 साल की उम्र में भी वह हर दिन साइक्लिंग करती हैं।
टी रुक्मिणी देवी

image credit : @thehindu.com
रुक्मिणी देवी ने कभी भी उम्र को महत्व नहीं दिया, वह उम्र की मोहताज नहीं बनीं अपने सपने को पूरा करने के लिए। रुक्मिणी देवी तल्लूरी 22वीं एशिया मास्टर्स एथलेटिक्स चैंपियनशिप का हिस्सा रहीं, उन्होंने पोल वॉल्ट में रजत, हैमर थ्रो में कांस्य और 100 मीटर में छठा स्थान हासिल किया था। पॉवर लिफ्टिंग और स्पोर्ट्स में उनका जवाब नहीं है।
*Lead photo is only for representation of the story