वाराणसी में ड्रोन दीदी के नाम से खुद को खेती क्वीन बनाने का सराहनीय कार्य नीतू सिंह ने किया है। भारत सरकार की ड्रोन दीदी योजना के तहत प्रशिक्षित होकर नीतू सिंह लाखों की कमाई कर रही हैं। Her Circle से हुई खास बातचीत में नीतू सिंह ने अपने इस पूरे सफर पर विस्तार से बात की है।
खेती के कार्य में दिलचस्पी
बकौल नीतू, मैं वाराणसी निवासी हूं और मेरा ब्लॉक काशी विद्यापीठ है। यहीं से मैंने ड्रोन पायलट बनने की ट्रेनिंग ली है। इससे पहले मैं एक हाउसवाइफ थी और खेती का काम संभालती थी। अगर पति खेत पर न होते हैं, तो मुझे ही सब देखना होता है, जैसे गेहूं लगाना, दवा डालने जैसे कार्य। इन खेती के कामों के लिए लेबर ढूंढने में बहुत समय लगता था। तभी मुझे पता चला कि दवा का छिड़काव अब ड्रोन से भी होता है। मैं पहले से ही खेती से जुड़ी थी, तो सोचा कि क्यों न मैं भी इसे सीखूं। अगर मुझे इसमें सफलता मिल जाए तो अच्छा होगा। तकनीक मुझे हमेशा अच्छी लगती थी, इसलिए ड्रोन ट्रेनिंग लेने का मन बना।
ड्रोन प्रशिक्षण ट्रेनिंग

नीतू कहती हैं कि पहले तो पता ही नहीं था कि कैसे होगा। हमने सिर्फ़ छोटे-छोटे ड्रोन देखे थे, बड़ा ड्रोन कभी पास से नहीं देखा था।ब्लॉक से एक अनाउंसमेंट हुआ कि 19–25 लोगों की एक टीम चुनी जाएगी। हम सब इकट्ठे हुए। वहां हमें बताया गया कि दो दिन की शुरुआती ट्रेनिंग होगी, और उसी में जो अच्छे से समझेंगे, उन्हें आगे चुना जाएगा। जब हम पहली बार बड़े ड्रोन के सामने पहुंचे तो डर भी लगा कि इसे छुएं कैसे! मगर दवा गिरते देखकर अच्छा लगा। फिर उनमें से 5 लोगों को चुना गया, जिसमें मैं भी थी। इसके बाद मुख्य ट्रेनिंग 16 दिन की रही। वहां पूरी तरह से ड्रोन उड़ाना, चेक करना, बैटरी लगाना, दवा कैसे डालनी है, खेत को कैसे स्कैन करना है,यह सब सिखाया गया। ट्रेनिंग पूरी होने के बाद हमें सर्टिफिकेट और ड्रोन दोनों दे दिए गए। हमें Aye-Tech कंपनी का ड्रोन मिला। शुरू में घर पर भी इंजीनियर आए और हमें फिर से प्रैक्टिकल समझाया।बस हमें करीब 16,000 रुपये अपने लेवल पर खर्च करने पड़े थे, लेकिन रहने,खाने,होस्टल,ट्रेनिंग, इंजीनियर सब कुछ सरकार की तरफ से मुफ्त में मुहैया कराया गया।अगर यह ट्रेनिंग पैसों से मिलती, तो शायद मैं नहीं कर पाती।
ड्रोन के इस्तेमाल को लेकर चुनौतियां

ड्रोन को संभालने में भी मुझे कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ा। सबसे पहले यह कि तेज़ धूप में ड्रोन गर्म हो जाता है। बारिश में उड़ाना मना है। प्रोपेलर कभी–कभी टूट जाते हैं। बैटरी मेंटेन रखना पड़ता है। दवा अगर गलत मात्रा में मिल जाए तो फसल को नुकसान हो सकता है ।कई बार किसान अपनी पसंद की मिलावट मांगते हैं—उसे समझाना पड़ता है। यह भी होता है कि कंपनी के इंजीनियर फोन पर और कभी–कभी आकर मेंटेनेंस में मदद करते हैं।
ड्रोन मिलने के बाद आगे का कार्य
शुरू में किसानों को समझाना मुश्किल था कि ड्रोन कैसे उनके लिए उपयोगी बन सकता है। मैंने ड्रोन से छिड़काव करने की प्रक्रिया के बारे में कई सारे खाद- बीज की दुकानों पर अपने पोस्टर लगाए। साथ ही ड्रोन क्रिया करवाने के लिए संपर्क की भी जानकारी दी। शुरुआत में 50 खेत मैंने मुफ्त में छिड़काव किए। इससे लोगों का भरोसा मैने जीता। धीरे-धीरे किसान खुद फोन करने लगें। आज एक साथ एक दिन में 50 से अधिक खेतों में ड्रोन से छिड़काव करने के लिए मुझसे संपर्क किया जाता है।
बदली समाज की सोच
शुरुआकत में कई सारे सवाल उठे। लोग कहते थे कि पति और बच्चों को छोड़कर 16 दिन की ट्रेनिंग के लिए चली गई, गांव में मुझे लेकर बातें बनती थीं। लेकिन जब ड्रोन मिला, मेरा नाम अखबारों में आया, तब सबने सोच बदली।प परिवार के साथ गांव के प्रधान भी गर्व करते हैं।
ड्रोन की योजना से क्या बदलाव होता है

‘नमो ड्रोन योजना’ ने हमारे जैसे ग्रामीण महिलाओं को बहुत बड़ा मौका दिया। पहले नौकरी या ट्रेनिंग के लिए बहुत खर्च लगता था, पर यहां सब मुफ्त में था। स्वयं सहायता समूह से भी काफी लाभ मिला है। पहले हम 20 रुपये महीने जमा करते थे, आज वही बचत 15,000–20,000 तक हो गई है। बिना ब्याज के लोन भी मिलता है, जिससे महिलाएं छोटा बिजनेस खोल पा रही हैं।अब गाँव की महिलाएं खुलकर घर की चौखट के बाद खुद को आर्थिक बल देने के लिए निकल रही हैं।जो पहले घर से नहीं निकलती थीं, वो भी पूछती हैं कि “हम ट्रेनिंग कैसे ले सकते हैं?” ड्रोन, उद्यमिता, सेल्फ हेल्प ग्रुप इनसे महिलाओं में आत्मविश्वास बढ़ा है। मैं चाहती हूँ कि मेरे जैसी और महिलाएं भी आगे बढ़ें। अगर कोई दुकान खोलना चाहती है, कोई सामान बनाना चाहती है, तो मैं सप्लाई में भी मदद करना चाहती हूँ। जो महिलाएं किसी भी कार्य को या फिर अपने सपने को पूरा करने में हिचकिचाती हैं, उन्हें मैं बताना चाहती हूँ कि—“डर छोड़कर बाहर निकलें—सरकार की योजनाएं सुरक्षित भी हैं और लाभदायक भी। तभी आगे बढ़ पाएँगी।”