गांधी और उनके विचारों को लोक गीतों के माध्यम से लोगों तक पहुंचाने का अद्भुत काम कर रही हैं चंदन भारत सरकार के संगीत नाटक अकादमी ने बिहारी लोकगायन के लिए युवा सम्मान से और बिहार सरकार ने बिहार कला सम्मान से सम्मानित किया जा चुका है, वह गांधी के गीत और संगीत पर खास काम कर रही हैं, आइए जानें विस्तार से।
कैसे आई जेहन में बात
चंदन के जेहन में यह बात की गांधी जी का एक जुड़ाव लोक गीत और लोग संगीत के माध्यम से भी लोगों तक पहुंचे, इसके लिए उनके जेहन में एक खास बात आयी। वह खुद बताती हैं कि कुछ सालों पहले उन्हें महाराष्ट्र के वर्धा में स्थित महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में छात्रों ने विश्वविद्यालय में बुलाया था। वहां जाने पर उन्हें लगा कि गांधी की धरती पर जा रहीं तो कोई गीत लेकर जाना अच्छा होगा, तो उस दौरान उन्हें कैलाश गौतम का एक गीत मिला। तो वहां से प्रेरणा मिली। फिर मशहूर गांधीवादी पर्यावरणविद अनुपम मिश्र से मिलने पर उन्होंने राय दी कि गांधी के ऐसे गीतों पर काम करना शुरू करो, जो किताबों में उपलब्ध नहीं। फिर वहां से लगातार इस पर काम करने की चंदन की जिज्ञासा हुई। वह बिहार वापस लौटीं तो चंपारण गयी। वहां कुछ गीत मिले। फिर वहीं एक शो की और गायी। लोगों ने खूब पसंद किया। फिर जगह-जगह जाकर गीतों की खोज करने लगी और गीतों को कंपोज कर गाने लगीं और कारवां बनता गया।
कम लोगों को है जानकारी गांधी और गीत के
दरअसल, चंदन बताती हैं कि गांधी का यह कथन मशहूर है कि जहां संगीत नहीं वहां संगति नहीं, जहां संगति नहीं वहां सत्याग्रह नहीं और जहां सत्याग्रह नहीं वहां सुराज नहीं और उन्होंने सत्याग्रह, सुराज के लिए संगीत को ही माध्यम बनाया था। चंदन कहती हैं कि गांधीजी को केंद्र में रखकर जब गीत-संगीत की दुनिया पर जब बात होती है, तो उसका कैनवास बहुत बड़ा हो जाता है। गांधीजी के पूरे सफर को देखें तो वे संघर्ष और सृजन को साथ लेकर चलने में विश्वास रखते थे।
गांधी का बचपन और संगीत
चंदन बताती हैं कि गांधी पर रचित विविध साहित्य में यह बात दर्ज है कि कैसे बचपन से उनके मन में संगीत से अनुराग हुआ। वह लंदन पढ़ने गये तो भी संगीत उनके जीवन का हिस्सा रहा। और फिर जब दक्षिण अफ्रीका लौटे तो उस संगीत का विस्तार उनके आश्रम में नियमित तौर पर शुरू हुए भजन-प्रार्थना के रूप में होने लगा. उसके बाद तो वे आजीवन संगीत से जुड़े रहे, संगीत को खूब बढ़ावा देते रहे। गौरतलब है कि गांधी के ना रहने पर हिंदुस्तानी संगीत में दो विशेष राग बनाये गये उनकी स्मृति में, राग मोहना और राग गांधी गंधर्व। एक को भारत रत्न पंडित रविशंकर ने बनाया, तो दूसरे को महान कलाकार कुमार गंधर्व ने। यह भी उल्लेखनीय है कि गांधी ने ही यह व्यवस्था करायी कि कांग्रेस की हर सभा के पहले संगीत समारोह जरूर हो ताकि लोगों का मन और चित्त शांत रहे और वे शांत मन से देश की बात कर सकें।
प्रकृति से भी जुड़ा रहा है संगीत
गांधीजी का यह कथन बहुत मशहूर है कि लोकगीतों में पर्वत गाते हैं, नदियां गाती हैं, पशु-पक्षी गाते हैं, पूरी सृष्टि गाती है. यह तो उनका कथन है, व्यावहारिक रूप से भी देखें तो गांधीजी का लोकसंगीत से गहरा जुड़ाव रहा, वहीं ग्रामीण महिलाओं ने गांधीजी के प्रभाव में सोहर, कजरी, विवाह गीत से लेकर अनेकानेक रस्मों के गीतों को गांधी के रंग में ढाला। स्पष्ट है कि गांधी और संगीत के जुड़ाव और योगदान को लेकर जिस तरह से चंदन लगातार काम कर रही हैं, ऐसे और भी नाम सामने आने चाहिए, ताकि जन-जन तक यह बात पहुंचे।