राजस्थान के जयपुर शहर से लगभग 55 किलोमीटर दूर भटेरा गांव की भंवरी देवी को उनके साहस के साथ विशाखा गाइडलाइंस के तहत वर्कप्लेस पर महिला कर्मचारियों की सुरक्षा को लेकर बनाए गए कानूनों के लिए भी जाना जाता है। आइए जानते हैं उनकी प्रेरित करनेवाली साहस गाथा।
सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ अभियान
बाल विवाह के साथ-साथ जाति व्यवस्था राजस्थान की पुरानी परंपरा रही है, जिनमें वर्षों से गुर्जर समुदाय का दबदबा रहा है। वर्तमान समय की अपेक्षा 90 के दशक में यह सारी चीजें काफी अधिक उग्र रूप से समाज पर हावी थीं। इसी दौरान अपनी संस्था ‘साथिन’ की तरफ से मात्र 9 माह की बच्ची का बाल विवाह रोकने पहुंची भंवरी देवी गुर्जर समुदाय के निशाने पर आ गईं, जो उनसे निचली कुम्हार जाति से थीं। जाति व्यवस्था के साथ अहंकारी मानसिक अवस्था से ग्रसित गुर्जर समुदाय के 5 लोगों ने मिलकर भंवरी देवी का सामूहिक बलात्कार किया और उन्हें ऐसी चोट दी, जिसे वे आज तक नहीं भूल पाई हैं। गौरतलब है कि वर्ष 1985 से ही भंवरी देवी राजस्थान सरकार द्वारा संचालित महिला विकास परियोजना की एक कार्यकर्ता थीं, जो बाल विवाह के दुष्परिणामों के साथ स्वच्छता, परिवार नियोजन, कन्या भ्रूण हत्या, बच्चों को स्कूल भेजने और लड़का-लड़की में भजेदभाव न करने जैसी सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ अभियान चलाती थीं।
शारीरिक ही नहीं मानसिक लड़ाई भी

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वर्ष 1992 में भंवरी देवी के पति मोहन लाल प्रजापत के सामने उनके ही खेत में गुर्जर समाज के 5 लोगों ने न सिर्फ भंवरी देवी के पति को पिटा, बल्कि भंवरी देवी का सामूहिक बलात्कार भी किया। इस क्रूर घटना के बाद पुलिस और प्रशासन का भंवरी देवी के प्रति जिस तरह का रवैया था, उसे देखते हुए राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मीडिया ने जिस तरह एक अभियान छेड़ा वो महिला अधिकार आंदोलन में एक ऐतिहासिक प्रकरण बन गया। हालांकि इस पूरे मामले में ‘साथिन’ संस्था ने भी भंवरी देवी का साथ छोड़ दिया, जिसके एक अभियान के कारण भंवरी देवी पर यह मुसीबत आई थी। लगभग 52 घंटे बाद मेडिकल जांच में न सिर्फ कोताही की गई, बल्कि अदालत ने भी भंवरी देवी के आरोपियों को बरी कर दिया। सिर्फ यही नहीं भंवरी देवी को ही इस घटना के लिए जिम्मेदार भी ठहराया गया। सार्वजनिक अपमान के साथ-साथ गांववालों ने उन्हें, उनके पति और चार बच्चों को समाज से बहिष्कृत कर दिया, लेकिन भंवरी देवी ने अपनी लड़ाई जारी रखी।
विशाखा गाइडलाइंस: ऐतिहासिक कानून
हालांकि अपने काम के कारण सामूहिक बलात्कार का शिकार हुई भंवरी देवी के कारण ही विशाखा गाइडलाइंस अस्तित्व में आया। कई समूहों की महिला कार्यकर्ताओं और वकीलों ने मिलकर विशाखा के सामूहिक मंच के जरिए सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की, जिसके अनुसार कार्यस्थलों पर महिला सुरक्षा की मांग की गई. आखिरकार राजस्थान राज्य और भारत संघ के खिलाफ दायर याचिका के फलस्वरूप अगस्त 1997 में विशाखा गाइडलाइंस के रूप में बेहतर परिणाम आए। इसके अनुसार कार्यस्थलों पर यौन उत्पीड़न को परिभाषित करते हुए, इससे निपटने के लिए कई नियम बनाए गए। फिलहाल भंवरी देवी के कारण विशाखा गाइडलाइंस के तहत बना यह कानून, देश में महिला समूहों के लिए एक ऐतिहासिक कानूनी जीत के रूप में दर्ज हो चुका है।
भंवरी देवी का परिवार

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राजस्थान के एक छोटे से गांव में जन्मीं भंवरी देवी स्वयं बाल विवाह का शिकार रही हैं। जब वे मात्र 5 वर्ष की थीं, तब उनका विवाह 8 वर्षीय मोहन लाल प्रजापत से हुई थी। शादी के बाद किशोरावस्था में वे अपने पति के साथ भटेरा गांव आ गईं और ‘साथिन’ के साथ जुड़कर उन्होंने अपने समाज के लोगों को बेटियों की तरफ अधिक संवेदनशील होने के लिए प्रेरित किया। भंवरी देवी के चार बच्चे हैं, जिनमें 2 बेटा और 2 बेटी है। गौरतलब है कि मात्र 20 वर्ष में गैंग रेप का शिकार हुईं भंवरी देवी पिछले 31 वर्षों से अपने पर हुए अत्याचार के खिलाफ पूरी तत्परता से लड़ रही हैं। हालांकि इन 31 वर्षों में भंवरी देवी के कारण राजस्थान के ग्रामीण समाज में कई बदलाव आए, लेकिन भंवरी देवी के जीवन में कोई बदलाव नहीं आया। आज भी उनका परिवार भटेरी गांव में बहिष्कृत जीवन जी रहा है। उनके दोनों बेटे जहां जयपुर में रहते हैं, वहीं उनकी छोटी बेटी एक माध्यमिक स्कूल में इंग्लिश टीचर हैं।
पुरस्कार और सम्मान
भंवरी देवी को उनके असाधारण साहस, हौंसले, दृढ विश्वास, प्रतिबद्धता और आत्मविश्वास के लिए राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई पुरस्कार मिले, जिनमें वर्ष 1994 में मिला नीरजा भनोट मेमोरियल पुरस्कार भी शामिल है। इसके अलावा वे बीजिंग में महिलाओं पर हुए संयुक्त राष्ट्र के चौथे विश्व सम्मेलन का हिस्सा भी बन चुकी हैं। आज भी भंवरी देवी ‘साथिन’ के अलावा कई महिला समूहों से जुड़ी हुई हैं और महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति सजग कर रही हैं। बेखौफ और साहसी भंवरी देवी को यकीन है कि जिस लड़ाई में उनका पूरा जीवन भस्म हो गया, अंत में उन्हें उसमें जीत अवश्य मिलेगी।
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