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होम / एन्गेज / खानपान / फ़ूड-ट्रेंड्स

खान-पान से जुड़ीं ये संस्कृति किचन से कभी नदारद नहीं होनी चाहिए

अनुप्रिया वर्मा |  जून 11, 2025

खाना खा लेना एक 9 टू 5 जॉब की तरह नहीं है, जिसे बस काम करने की तरह पूरा कर लेना है। यह एक कला है और शास्त्रों में भी खाने से जुड़ी हमारी संस्कृति की कई बारीकियां हैं, जिन्हें जरूर अपनाना चाहिए, बदलते दौर के साथ-साथ खान-पान से जुड़ीं कई चीजें गौण हो रही हैं, खाना बनाने की ऐसी कई पद्धति हैं, जो आज भी बरकरार रहें, तो हमारी सेहत के साथ-साथ संस्कृति का सम्मान भी बरकरार रहेगा, इसलिए जरूरी है कि ये सबकुछ हमारी किचन से नदारद न हो। आइए जानें इसके बारे में विस्तार से। 

जमीन पर बैठ कर खाना 

आजकल घरों में डाइनिंग टेबल रखना एक आम बात हो गई है, लेकिन जमीन पर बैठ कर स्वास्थ्य के लिहाज से अच्छा है। इसलिए इस संस्कृति को बरकरार रखना जरूरी है। शास्त्रों के अनुसार जब आप सीधे फर्श पर बैठकर भोजन करते हैं, तो शरीर पृथ्वी के संपर्क में सीधे तौर पर आता है और पृथ्वी की तरंगें पैरों की उंगलियों से होकर पूरे शरीर में जाती है। यह स्पष्ट है कि ये तरंगें शरीर को सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करने के अलावा शरीर के स्वास्थ्य को भी बेहतर और निरंतर बनाये रखने में मदद करती हैं। साथ ही यह बात भी दिलचस्प है कि जब हम जमीन पर बैठकर लकड़ी के आसन में खाना खाते हैं, तो जो ऊर्जा उत्पन्न होती है, वह आपको ऊर्जावान बनाने में मदद करती है। साथ ही जब जमीन पर बैठ कर आप खा रही होती हैं, तो पाचन क्रिया भी हमेशा शानदार रहती है। इसके अलावा, आपको किचन में ही हमेशा खाना खाना चाहिए, क्योंकि वह सबसे शुद्ध जगह होती है, जहां आप हमेशा सफाई करती रहती हैं और इसकी वजह से वहां का वातावरण साफ-सुथरा रहता है। जमीन पर बैठ कर खाना खाने से एक और बात अच्छी होती है कि आपका पूरा ध्यान खाने पर ही केंद्रित होता है और आपका मन भी खाना खाकर शांत होता है। 

मिट्टी के बर्तन में खाना 

इन दिनों हम घरों में खाना बनाने के लिए स्टील के ही बर्तन का उपयोग करते हैं। लेकिन अगर पुरानी पद्धति के अनुसार ही मिट्टी के बर्तन में खाना बनाया जाए, तो यह स्वास्थ्य और संस्कृति दोनों के लिए अच्छा है। मिट्टी के बर्तन में खाना पकाने से उसमें स्थित आयरन, फास्फोरस, कैल्शियम और मैग्नीशियम जैसे खनिज मिल जाते हैं, जो शरीर के लिए पोषण का काम करता है। साथ ही यह पीएच लेवल को भी बैलेंस करता है। मिट्टी के बर्तन की सबसे बड़ी खूबी यह भी होती है कि इसमें खाना बनाने में तेल काफी कम लगता है। पुराने दौर में काली मिट्टी के बर्तन में खाना परोसने की परंपरा थी। एक बार फिर से हमें अपने स्वास्थ्य की देख-रेख के लिए पुराने दौर में लौटने की जरूरत है। 

खाने में स्वाद और सेहत का तड़का 

खाने में तड़का लगाना भी एक ऐसी पद्धत्ति, जिसे हमें खोना या बदलना नहीं चाहिए। छौंक लगाना, बघार और फोड़नी भी इन्हें कहा जाता है। तड़का से खाने का जायका तो बढ़ता ही है, साथ ही उस जगह में मिलने वाले साबुत मसालों की उपयोगिता और उपलब्धता को दर्शाता है, क्योंकि तड़के में अमूमन उन्हें मसालों का उपयोग किया जाता है, जो वहां के इलाके में मौजूद हों। दाल तड़का, ढोकला, सांभर, पिंडी चना और विभिन्न तरह की खिचड़ियों और ऐसे कई डिश में तड़का लगाया जाता है, जिसमें घी या तेल को गर्म करके, उसमें साबुत मसाले डाल कर, उनको हल्का सा जला कर, निर्धारित डिश में डाला जाता है। तड़का की खास बात यह है कि यह खाने बनाने का ड्रामेटिक अंदाज माना जाता है, क्योंकि इसमें जिस तरह से मसाले तेल में होते हैं, ऐसा लगता है, जैसे वे नाच रहे हों। साथ ही खाने में सुगंध बढ़ाने में और स्वाद बढ़ाने में भी इस पद्धति का जवाब नहीं है। गौरतलब है कि अवधी व्यंजनों में 'घी दुरुस्त करना' भारतीय खाना पकाने में तड़के की महत्वपूर्ण भूमिका का एक अच्छा उदाहरण है। इससे स्पष्ट है कि इस तरीके को भी हमें अपने किचन या कुकिंग में हमेशा बरकरार रखने की जरूरत है। 

भापा या स्टीमिंग

भारत के कई हिस्सों में हालांकि इस पद्धत्ति से आज भी खाना बनाया जा रहा है और यह पद्धति बेहद सेहत से भरपूर है। पूरे देश में भापा कुकिंग का उपयोग करके पकाए गए विभिन्न व्यंजनों का अनुभव किया जा सकता है। इस खाना पकाने की तकनीक में सामग्री पर गर्मी के अप्रत्यक्ष अनुप्रयोग की आवश्यकता होती है, जिससे उन्हें नम और पोषक तत्वों को बरकरार रखा जा सके। केले के पत्ते में काफी पुराने समय मसालों में लपेट कर भाप करने की यह पद्धति लोकप्रिय है। आज भी ढोकला, मछली के कई पकवान, इडली, पात्रा, खमन और ऐसे कई डिश हैं, जो इस पद्धति से बनाये जा रहे हैं।

दम पुख्त सी जिंदगी 

कभी-कभी जीवन में भागदौड़ की बजाय भी सुकून और आराम के बारे में भी सोचना चाहिए, खासतौर से खाना बनाते हुए अगर आप खाना बनाने में समय देंगी, तो यह आपके खाने को उतना ही स्वाद देगा और आपकी सेहत के लिए भी अच्छा है। दम जिसका अर्थ 'सांस' और पुख्त का अर्थ 'खाना पकाने की प्रक्रिया' से है, तो इस शैली में पकाए जा रहे भोजन का अनिवार्य रूप से बाहरी हवा के साथ कोई संपर्क नहीं होता है जब तक कि आटे की सील नहीं खुल जाती। दम पुख्त शैली में पकाई जाने वाली बिरयानी और मांस व्यंजनों को उस हांडी में परोसा जाता है ,जिसमें उन्हें सील के साथ पकाया जाता है और जैसे ही सील टूटती है, मसालों और सामग्रियों की सुगंध जो घंटों से पक रही है, एक अलग ही तरह की खुशबू लिए होती है और खाने पर कमाल का काम करती है। इस पारंपरिक भारतीय खाना पकाने की तकनीक में एक सीलबंद बर्तन में धीमी गति से खाना बनाना शामिल है। आमतौर पर हांडी में यह पकवान बनाया जाता है। खाना पकाने की दम पुख्त शैली अवधी व्यंजनों का एक महत्वपूर्ण योगदान है, जो भारत के अवध क्षेत्र लखनऊ से आता है।

 

 

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