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होम / एन्गेज / साहित्य / किताब-घर

वो फिर नहीं आते...

दीप्ति मित्तल |  जुलाई 05, 2022

नव्या सधे-सहमे क़दमों से सनशाइन कैफ़े की ओर बढ़ रही थी. उसके ज़हन में वे सारी ख़बरें घूम रही थीं, जो गाहे-बगाहे कहीं सुनी-पढ़ी थीं, ‘नाराज़ प्रेमी ने प्रेमिका की शादी से ठीक पहले उस पर ऐसिड अटैक किया... शादी से पहले दिन बहाने से बुलाकर मर्डर किया…’ 

उफ़्फ़! यह क्या क्या सोच रही हूं मैं? शुभम ऐसा नहीं कर सकता! कभी नहीं! मगर क्यों नहीं कर सकता? इंसान का दिमाग़ कब पलट जाए क्या भरोसा? पागल मन उससे कभी भी, कुछ भी करवा सकता है... जैसे मैं ना चाहते हुए भी सम्मोहित सी उससे मिलने जा रही हूं. घबराई नव्या ने एक बार फिर से पर्स चेक किया, चिली स्प्रे और चाकू था वहां. वो कुछ निश्चिंत हुई. 

जिस शुभम से नव्या कभी टूट कर प्यार करती थी, जिस पर ख़ुद से ज़्यादा भरोसा था, आज उसी से मिलते हुए डर लग रहा था... ऊपर से विडंबना यह कि ख़ुद को मिलने से रोक भी नहीं पा रही थी. कल्पना कर रही थी कि अगर शुभम ने कुछ ऐसा-वैसा किया तो पहले आंखों पर चिली स्प्रे मारेगी फिर चाकू से वार करेगी...या उसे ज़ोर से धक्का देकर भाग जाएगी? ख़ैर जो भी हो, ठीक ग्यारह बजे डरी-सहमी नव्या शुभम के साथ उसकी कार की फ्रंट सीट पर बैठी थी. उसने शुभम को डोर लॉक भी नहीं करने दिया.          

 “डरो नहीं नव्या, तुम्हारा मर्डर करने नहीं बुलाया है.” 

“इतने महीने हो गए, कभी कोई फ़ोन, कोई मैसेज नहीं किया, फिर आज क्यों डेस्परेटली मिलना था तुम्हें? चार दिन बाद मेरी शादी है... तुम्हें अंदाज़ा भी है, मेरे लिए यूं आना कितना मुश्क़िल था?” वो अपनी कमज़ोरी पर झल्लाई हुई थी. 

 “हां जानता हूं, सब जानता हूं... तुमने वो गाना सुना है? ‘वो अफ़साना जिसे अंजाम तक लाना ना हो मुमकिन, उसे एक ख़ूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा’, बस इसीलिए बुलाया है... सच कहूं नव्या! मुझे आज से पहले कभी लगा ही नहीं था कि तुम मुझसे दूर हो गई हो... सोचा था, हर बार की तरह कुछ दिनों का ब्रेकअप है, लौट आओगी फिर... पर इस बार तुम सीरियस निकली. फिर भी मैं इंतज़ार करता रहा, करता रहा... मगर आज ख़ुद को रोक नहीं पाया..., लगा एक बार मिल लूं, वो सब कह-सुन लूं जो कहना चाहता हूं... फिर तो कभी मौक़ा नहीं मिलेगा.”

“क्यों मौक़ा नहीं मिलेगा? मैंने कहा था ना, मेरी शादी के बाद भी हम अच्छे दोस्तों की तरह फ़ोन पर टच में रहेंगे...”          

 “अच्छे दोस्त!” शुभम हंसा, मगर आंखों में दर्द की लकीरें उभर आई. “तुम्हें तो आज मेरे साथ बैठने में भी डर लग रहा है, ज़रा भी ट्रस्ट नहीं बचा और तुम दोस्ती की बात कर रही हो? और वैसे भी शादी के बाद तो तुम मुझे हर जगह से ब्लॉक कर दोगी, फिर बात कैसे करूंगा?”

“मैं क्यों ब्लॉक करूंगी भला?” 

“क्योंकि तब तुम एक हिंदुस्तानी पत्नी बन जाओगी. सात फेरे लेते ही तुम्हारे अंदर सती सावित्री की आत्मा आ जाएगी, फिर तुम्हें अपने एक्स से कोई भी कॉन्टेक्ट रखना पाप लगने लगेगा...महापाप.” शुभम ने मज़ाकिया लहज़े में कहा तो भी नव्या थोड़ी सहज हुई.

“अच्छा बड़ा समझते हो मुझे...” 

“सारी हिंदुस्तानी लड़कियां ऐसी ही होती हैं, शादी होते ही साक्षात् सती सावित्री का अवतार बन जाती हैं...ऐंड आई एम श्योर, तुम मुझे शादी के पहले दिन से ही भूल जाओगी.”

 “अच्छा!” 

 “और नहीं तो क्या, वैसे भी टाइम ही कहां मिलेगा मुझे याद करने का?  पहले शादी के फ़ंक्शन, फिर हनीमून, उसके बाद दोस्तों-रिश्तेदारों के लंच-डिनर की रवायतें...फिर सिर पर नई-नई गृहस्थी की ज़िम्मेदारी, सास, पति को ख़ुश रखने का प्रेशर..., इन सबके बीच मैं तुम्हारे दिल के किसी कोने में दुबका रहूंगा, किसी हाइबरनेटिंग क्रीचर की तरह, पर याद नहीं आऊंगा.”  

“और ये हाइबरनेटिंग क्रीचर बाहर कब निकलेगा?” नव्या ने हंस कर पूछा.

“जब कभी अपने पति के साथ उन्हीं रास्तों से गुज़रोगी ना, जहां हम मिला करते थे...तब” शुभम की आवाज़ में उदासी तारी हो गई, जिसके कुछ छीटें नव्या की आंखों में भी पड़े... एक गिल्ट के साथ, “क्या वो सच में शुभम को भूल जाएगी?  क्या वाक़ई वक़्त और हालात बदलते ही दिल के जज़्बात भी बदल जाते हैं? लेकिन अगर ऐसा है तो फिर वो क्यों शुभम के लिए इंटेंस इमोशन महसूस कर रही है? क्यों चाह रही है उससे लिपट पड़े, गले लग ज़ार ज़ार रो पड़े...

“मेरी शादी में आओगे?” धीमे से पूछते हुए नव्या की आंखें भर आई.

“नहीं”

“क्यूं, कोई ज़रूरी काम है क्या उस रात?” 

हां, बहुत ज़रूरी काम है... पहले आवारा कुत्तों की तरह इधर-उधर घूमूंगा, फिर किसी दोस्त के फ़्लैट पर पी-पाकर पड़ जाऊंगा, जब थोड़ा होश आएगा तो दोस्तों पर खूब ज्ञान उड़ेलूंगा, कुछ भी कर लेना मगर इस प्यार-व्यार के चक्कर में कभी मत पड़ना, बडी वॉट लगती है...और फिर जब सुबह नशा उतरेगा तो एक ख़याल दिल को बहुत दुखाएगा...कि अब तुम पराई हो चुकी हो...फिर जब तुम्हारी याद आएगी, मुझसे रहा ना जाएगा तो तुम्हें फ़ोन करूंगा... लेकिन तब पता चलेगा कि मैं तो ब्लॉक हो चुका हूं...तुम्हारे फ़ोन से,  तुम्हारे दिल से, तुम्हारी ज़िंदगी से...”  

 “इतना आसान होता है क्या, किसी अपने को यूं लाइफ़ से ब्लॉक कर देना?  दिल और दिमाग़ में लगातार जंग चलती है. ”

“ये तो सही कह रही हो...पता है, जब कभी तुम मुझसे लड़ा करती थी तो मुझे भी पहलीवाली बड़ी याद आती थी, लगता था वही बेटर थी.” नव्या ने उसे खा जाने वाली नज़रों से घूरा, मगर उसका मासूम चेहरा देख चुप रही जिस पर सजी दो नशीली आंखों में उसके लिए प्यार घुला था.

आज उसे शुभम की बेसिर-पैर की बातों पर भी बड़ा प्यार आ रहा था. पहले जैसी बात होती तो अभी कॉलर से खींचकर उसके लरज़ते होंठों को चूम लेती, बंद करा देती ये बकबक...मगर...ये हक़ खो दिया था उसने.

बाहर मौसम ख़ुशगवार हो चला था, हल्की फुहारें पड़ने लगी थी. ड्राइव करते हुए शुभम ने उनका फ़ेवरेट गाना प्ले कर दिया जिसे दोनों साथ सुनकर गुनगुनाया करते थे ‘आज से तेरी सारी गलियां मेरी हो गई.. आज से मेरा, घर तेरा हो गया...’, सुनते हुए नव्या की आंखें छलक पड़ीं. क्या कभी मैं इस गाने को दौबारा सुन पाऊंगी? शुभम इस गाने की एक एक बीट में बसा हुआ है.

“वैसे एक बात है, जब जब ये गाना सुनूंगी, तब तब तुम ज़रूर याद आओगे.” 

“हां वो तो है, मगर इस याद की उम्र बहुत कम होगी.”

“वो क्यूं?”

“ये गाना बस साल-दो साल ही सुन पाओगी, फिर तो कार में, घर में, कुछ और ही बजा करेगा...”

“क्या?”

“वही, ‘बाबा ब्लैकशिप हैव यू ऐनी वूल...’ नर्सरी राइम्स...फिर तुम मुझे तो क्या अपने पति को भी भूल जाओगी...” कहते हुए शुभम खिलखिला पड़ा. “यू नो नव्या, एक औरत की बतौर प्रेमिका या पत्नी बहुत छोटी उम्र होती है. मां बनने के बाद वो ताउम्र बस मां हो कर रह जाती है.” 

“देखो, अभी तक मेरी शादी भी नहीं हुई और तुम कहां कहां तक पहुंच गए... अच्छा अब ये बताओ मुझे बुलाया क्यों था? सुनकर शुभम थोड़ा गंभीर हो गया.

“तो सुनो, मॉम कहा करती थीं, किसी से हमेशा के लिए जुदा हो रहे हो तो उससे सब पिछला लेन-देन चुकता कर लो.., यानि दिल से माफ़ी मांग लो और माफ़ी दे दो. वरना वो उधारी प्रेत बनकर पीछा करती है... मैं जानता हूं नव्या, मैंने तुम्हें बहुत हर्ट किया है. तुम शादी कर सेटल होना चाहती थी और मैं बंधन से भाग रहा था. मेरी वजह से, तुम जिसे प्यार करती थी, उससे शादी नहीं कर पाई और जिससे शादी कर रही हो,  पता नहीं उससे कभी प्यार कर पाओगी या नहीं... मैं जानता हूं, लाइफ़ में क़दम क़दम पर तुम्हारे दिल से मेरे लिए बहुत बद्दुआएं निकलेंगी... तो हर उस चोट के लिए जो मेरे कारण तुम्हें पहुंची है या आगे पहुचेगी,  मैं तुमसे माफ़ी मांगता हूं... हो सके तो मुझे दिल से माफ़ कर देना..” शुभम की बात सुनकर नव्या बेहद इमोशनल हो गई.

“आज बड़े ज्ञान की बातें कर रहे हो..., कुछ ज़्यादा ही स्वीट बनने की कोशिश नहीं कर रहे? इतना सॉरी उसी दिन बोल देते तो शायद हम अलग ना हुए होते! तुम्हारे प्रॉमिस ना सही, तुम्हारी सॉरी के सहारे इंतज़ार कर लेती तुम्हारा...”

“सॉरी बोलना आसान होता है नव्या, लेकिन ख़ुद को बदलना मुश्क़िल. ना तुम अपनी ज़िद छोड़ती और ना मैं...होना वही था जो हुआ. ख़ैर छोड़ो, एक और भी रीज़न था तुमसे मिलने का, ये देखों मैं क्या लाया हूं? तुम्हारा वेडिंग गिफ़्ट... खोलकर देखो.” 

नव्या ने गिफ़्ट बॉक्स खोलकर देखा तो वही सुंदर सा नेकलेस था, जिसे कभी उसने शुभम से वैलेनटाइन्स डे गिफ़्ट में मांगा था, मगर वो यह कहकर टाल गया था, अभी मेरे पास इतना महंगा गिफ़्ट ख़रीदने के लिए पैसे नहीं है.

“तुम्हारे पास तो इसे ख़रीदने को पैसे नहीं थे?” नव्या हैरानी से बोली.

शुभम शरारती हंसी हंसा, “इसे ख़रीदने के लिए तो थे, मगर इसके मिलने के बाद तुम जो और दूसरे गिफ़्ट मांगने शुरु कर देती, उनके लिए नहीं थे इसलिए पहली बार ही मना कर दिया था.” 

नव्या ने शुभम की कमर पर जोर से धौल जमा दिया. 

“हाऊ मीन यू आर...”

“वैसे भी मैंने सोचा है कि अगले दो साल तक कोई गर्लफ्रेंड नहीं बनाऊंगा तो फिर मेरी अच्छी-ख़ासी सेविंग हो ही जाएगी...तो अभी मैं इसे अफ़ोर्ड कर सकता हूं.” 

नव्या पहले चिढ़ी, फिर बड़े प्यार से उसे पहन लिया. उस पेंडेंट को छूकर नव्या को लगा जैसे शुभम हमेशा के लिए उसमें समा गया है... ठीक उसके धड़कते दिल के पास. जिस प्यार को उसने बड़ी शिद्दत से कहीं दबाया था, वह उछालें मारकर बाहर आने को तड़पने लगा. भीतर बहुत कुछ उमड़ने-घुमड़ने लगा. कुछ बादल छा रहे थे, कुछ छट रहे थे.

“तुम मेरे लिए कोई गिफ़्ट नहीं लाई, लाइक पार्टिंग गिफ़्ट?” 

मन के दोराहे पर खड़ी नव्या थोड़ी संभली. कुछ सोचकर उसने पर्स खोला और शुभम के हाथों में चिली स्प्रे और चाकू थमा दिया.

“ये क्या?”

“ये मेरा ट्रस्ट है शुभम... तुम पर...जो हमेशा रहेगा...मैं तुम्हें कभी ब्लॉक नहीं करूंगी... ना अपने फ़ोन से, ना ज़िंदगी से... क्या हुआ जो हम हमसफ़र नहीं बन सके, मगर तुम हमेशा मेरी ज़िंदगी का हिस्सा रहोगे...अटूट हिस्सा... 

शुभम ने कार साइड में रोक ली. वो भावुक होकर नव्या से लिपट पड़ा. 

 

“जानती हो, ये ट्रस्ट ही दुनिया का सबसे ख़ूबसूरत गिफ़्ट है जो कोई किसी को दे सकता है. मगर मैंने तुम्हारा ट्रस्ट तोड़ दिया...तुम्हारा साथ नहीं निभा पाया...” शुभम नव्या की बाहों में उफ़नती नदी सा बह रहा था और वो किसी बांध सी उसे अपने भीतर ज़ज्ब कर रही थी... ऐसा ही होता है इंसान, ख़ुद को कितना भी टफ़ समझ ले, मगर होता वो मोम ही है, भावनाओं की आंच ज़रा सी तेज़ हुई नहीं, पिघलकर बहने लगता है...

“आई स्टिल लव यू नव्या... क्या हम सब गुज़रा भूलकर, वापस पहले जैसे नहीं हो सकते?”

“अभी कुछ देर पहले तुमने ही कहा था ना, सॉरी बोलना आसान होता है लेकिन ख़ुद को बदलना मुश्क़िल... सो फ़ाइनली होना तो वही था, जो हुआ...और अभी नहीं होगा तो आगे किसी दूसरे दिन होगा... हमारे लिए बेहतर यही है कि ये सिलसिला यहीं रोककर आगे बढ़ जाएं...तकलीफ़ होगी मगर संभल जाएंगे.” शुभम चुपचाप सुनता रहा. वो अपने आगोश में नव्या की गरमाहट महसूस करता रहा...उस छुअन को ज़्यादा से ज़्यादा समेट लेने की कोशिश करता रहा... मगर नव्या मुट्ठी के रेत सी फिसलती रही... उसके हाथों से, उसकी किस्मत से...  

“अच्छा अब यू-टर्न लो और मुझे घर छोड़ दो, बहुत देर हो गई है.” शुभम जैसे किसी ख़्वाब से बाहर आया. उसने गहरी सांस छोड़ते हुए गाड़ी घुमा ली. वह जानता था, इस दर्द को उसे ख़ुद ही संभालना होगा, क्योंकि वह उसका अपना दिया हुआ था. लौटते हुए दोनों के बीच ख़ामोशी पसरी रही. उनके मन की बात एफ़एम पर बज रहा गाना कह रहा था, जिंदगी के सफ़र में गुज़र जाते हैं जो मुक़ाम, वो फिर नहीं आते...          

        

 







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